तेरी खुशबू में बसे खत: फिल्म से प्रेरित होकर फौज में भर्ती हुए थे Vikram Batra, अब उन पर ही बनी Shershaah
विक्रम बत्रा (Vikram Batra) आखिरी सांस तक देश के लिए लड़ते रहे. जब आंखें बंद हो रही थी तो मरने का गम नहीं था बल्कि तिरंगे को लहराता देखने की इच्छा मन में बसी थी. उन पर बनी है फिल्म शेरशाह (Shershaah).
Vikram Batra Shershaah: विक्रम बत्रा कारगिल युद्ध (Kargil War) के हीरो थे. पर्दे पर आने वाले हीरो नहीं, बल्कि वो हीरो जिन्होंने असली यूनिफॉर्म पहली, जिन्होंने असली जंग लड़ी, जिन्होंने असल में दुश्मनों का सामना किया और जिन्होंने सीने पर असली गोलियां खाई. लेकिन आखिरी सांस तक देश के लिए लड़ते रहे. जब आंखें बंद हो रही थी तो मरने का गम या डर नहीं था बल्कि तिरंगे को लहराता देखने की इच्छा मन में बसी थी और उनका ये ख्वाब पूरा भी हुआ... प्वॉइंट 4875 से दुश्मनों को खदेड़कर उस चोटी पर तिरंगा लहराने का वचन विक्रम बत्रा (Vikram Batra) ने किया था और उसे निभाया भी.
जब तक सांसे थीं और सीने में हिम्मत वो लड़ते रहे और जीत गए. लेकिन ऐसा जज्बा भला 25 साल के नौजवान में आया कहां से? क्योंकि जिस उम्र में नौजवानों की आंखों में सुनहरे भविष्य के सपने तैर रहे होते हैं उस उम्र में विक्रम बत्रा ने देश की रक्षा के आगे हर सपने का बलिदान कर दिया और हमें शान से सिर उठाकर जीने का अवसर दिया. कहा जाता है कि फौजियों पर आधारित सीरियल और फिल्म देखने और फौजियों के बीच रहने के कारण ही उनमें फौजी बनने का ख्वाब पनपा था. लेकिन आज देखिए उन्हीं विक्रम बत्रा पर फिल्म बनी है जिसका नाम है शेरशाह (Shershaah).
ऐसे हुई फौजी बनने के ख्वाब की शुरूआत
विक्रम बत्रा और उनके जुड़वां भाई विशाल बत्रा दोनों ही शुरुआत से ही खेलों में दिलचस्पी रखते थे. लिहाजा स्कूल के दिनों में दोनों खूब बढ़-चढ़ कर स्पोर्ट्स कॉम्पिटिशन में हिस्सा लेते और न जाने इस दौरान दोनों ने ही कितनी ट्रॉफी अपने नाम की. बचपन में टीवी पर एक सीरियल आता था परमवीर चक्र. उस वक्त विक्रम और विशाल दोनों ही सातवीं-आठवीं क्लास में थे. तब दोनों पड़ोसियों के घर जाकर ये शो देखते और फौजियों की वीरता पर आधारित इसी शो को देखकर पहली बार इनके भीतर फौजी बनने के सपने ने जन्म लिया.
इसके अलावा इनका स्कूल भी कैंट एरिया में था, जिसके चलते इनके दोस्त भी फौजी परिवारों से थे और चारों तरफ इन्हें फौजी ही दिखते थे. यहीं से आर्मी यूनिफॉर्म के प्रति इनका प्यार और बढ़ता गया और फिर स्कूल के बाद विक्रम बत्रा और विशाल बत्रा दोनों ने ही फौज ज्वॉइन करने की तैयारी शुरू कर दी. 1997 में जब बॉर्डर फिल्म रिलीज हुई तो इसे विक्रम ने 8 बार देखा था और इस फिल्म ने उन्हें फौजी बनने के लिए और भी प्रभावित किया. विक्रम ने पहली ही कोशिश में बाजी मार ली. लेकिन विशाल इसमें सेलेक्ट नहीं हो सके.
कारगिल युद्ध के हीरो रहे विक्रम बत्रा
विक्रम बत्रा वो धरती का लाल, देश का हीरो और ऐसा सपूत जिसकी शहादत और हौसले के चर्चे सदियों तक होंगे. मरने के बाद भी जो अमर रहे वही तो असली हीरो है. वाकई सही कहा था विक्रम बत्रा ने, एक फौजी के रुतबे से बड़ा कोई रुतबा नहीं होता है. पगड़ी की शान से बड़ी और कोई शान नहीं होती है. अपने देश से बड़ा कोई धर्म नहीं होता.
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