1968 में विनोद खन्ना(Vinod Khanna) ने मन का मीत फिल्म से बॉलीवुड में कदम रखा था. जो जबरदस्त हिट रही थी तो वहीं ठीक इसके एक साल बाद अमिताभ बच्चन(Amitabh Bachchan) ने सात हिंदुस्तानी फिल्म से बॉलीवुड में कदम रखा. यानि दोनों ने लगभग एक साथ ही करियर की शुरूआत की थी. दोनों ने साथ में भी कई फिल्में कीं अमर अकबर एंथनी, मुकद्दर का सिकंदर, परवरिश, हेराफेरी जैसी हिट फिल्में दोनोंं ने साथ में दी. लेकिन फिर भी कुछ तो बात थी विनोद खन्ना(Vinod Khanna) में कि वो स्टारडम में धीरे धीरे अमिताभ पर भारी पड़ते दिख रहे थे. उनका चार्मिंग लुक और अंदाज़ दोनों ने अमिताभ से बेहतर था और उनके फैंस की लिस्ट में हर उम्र के लोग शामिल थे. लेकिन फिर ऐसा क्या हुआ कि देखते ही देखते ये चमकता सितारा आंखों से ओझल हो गया और इंडस्ट्री अमिताभ का एकछत्र राज कायम हो गया.
क्या महेश भट्ट की सलाह पड़ी भारी
1979 विनोद खन्ना के लिए काफी भारी गुजरा. क्योंकि इस साल उन्होंने अपने परिवार के 4 सदस्यों को खो दिया था. उनकी मां उनकी बहन दोनों का निधन हो गया था जिससे वो न केवल दुखी हुए, अकेले हुए बल्कि काफी घबरा भी गए थे उन्हें लगने लगा था कि अब उनका भी अंत तय है. मीडिया रिपोर्ट्स की माने को उस वक्त महेश भट्ट ने उन्हें ओशो की शरण में जाने की सलाह दी थी. जब विनोद खन्ना ने ओशो के प्रवचन सुने तो काफी अच्छा लगा था जिसके बाद वो महेश भट्ट के साथ उनके आश्रम गए थे और संन्यास भी ले लिया था.
5 सालों तक इंडस्ट्री से रहे दूर
कहा जाता है कि विनोद खन्ना तब तकरीबन 5 सालों तक इंडस्ट्री, इंडस्ट्री के लोगों से दूर रहे वो ओशो के साथ यूएस के आश्रम में भी रहे. लेकिन फिर 5 साल बाद उन्होंने वापसी की और हिट फिल्मों की झड़ी लगा दी. जिसे देख वाकई लगने लगा कि अगर कैमरे से दूरी विनोद खन्ना न बनाते तो आज उनका स्टारडम शायद बुलंदियों पर होता.
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