'तांडव' विवाद पर बोले विवेक अग्निहोत्री: हिंदुओं की भावना को आहत करने की विदेशी साजिश
Tandav Controversy- बढ़ते राजनीतिक विवाद और पुलिस शिकायत के बीच खुद अमेजन प्राइम वीडियो ने भी इस पूरे मसले पर चुप्पी साध रखी है. लेकिन इस सीरीज को लेकर फिल्म निर्देशक विवेक अग्निहोत्री ने एबीपी न्यूज़ से खास बातचीत करते हुए इसे बहुसंख्यक हिंदुओं के खिलाफ विदेशी ताकतों की साजिश ठहराया है.
मुंबई: अमेजन प्राइम वीडियो पर हाल ही में रिलीज हुई वेब सीरीज 'तांडव' पर लगे हिंदुओं के धार्मिक भावनाओं को आहत करने के इल्जाम पर अभी तक 'तांडव' से जुड़े किसी भी कलाकार अथवा इससे जुड़े अन्य शख्स ने कोई बयान जारी नहीं किया है. बढ़ते राजनीतिक विवाद और पुलिस शिकायत के बीच खुद अमेजन प्राइम वीडियो ने भी इस पूरे मसले पर चुप्पी साध रखी है. लेकिन इस सीरीज को लेकर फिल्म निर्देशक विवेद अग्निहोत्री ने एबीपी न्यूज़ से खास बातचीत करते हुए इसे बहुसंख्यक हिंदुओं के खिलाफ विदेशी ताकतों की साजिश ठहराया है.
एबीपी न्यूज़ से खास बातचीत करते हुए विवेक अग्निहोत्री ने कहा, "मैं बोलने की आजादी के पक्ष में हूं. इसके तहत कोई कुछ भी बोल या बना सकता है मगर बोलने की आजादी तब गलत होती है जब विधिवत कैम्पेन की तरह इसका इस्तेमाल किसी देश, समाज, संस्कृति विशेष, एक ग्रुप खिलाफ किया जाता है. अब मुझे एक तरह से विश्वास हो गया है कि ये सब एक किसी एक डिजाइन के तहत हो रहा है. ओटीटी को एक राजनीतिक हथियार की तरह इस्तेमाल किया जा रहा है और इसके लिए जिम्मेदार हैं वहां बैठे तमाम एक्जीक्यूटिव्स."
विवेक कहते हैं, "ये ज्यादातर बड़े ओटीटी प्लेटफॉर्म्स अमेरिकी हैं और इनमे चीन और मीडिल ईस्ट का पैसा लगा हुआ है. ऐसे में इन ओटीटी प्लेटफॉर्म्स को भारत की संस्कृति, हेरिटेज, भविष्य या इस देश की ताकत में कोई रूचि नहीं है. इनका इंटरेस्ट है कि कैसे ज्यादा से ज्यादा लोगों तक अपनी बात पहुंचाई जाए. ऐसे ओटीटी प्लेटफॉर्म्स में जो एक्जीक्यूटिव्स बैठे हुए हैं, वो सारे के सारे वामपंथी विचारधारा के लोग हैं और इन्होंने ओटीटी को अपने राजनीतिक एजेंडे के खिलाफ इस्तेमाल करने की शुरुआत कर दी है जो कि गलत है और मैं उसी का विरोध करना चाहता हूं."
क्या धार्मिक प्रतीकों का इस्तेमाल कर अपनी बात कहना गलत है? इसपर विवेक अग्निहोत्री कहते हैं, "भगवान शिवा के बारे में हिंदू लोग खुद तरह से तरह बात करते हैं. गणेश भगवान के बारे में भी बातें होती हैं. लेकिन अगर आपकी नीयत साफ है और आप सिर्फ ह्यूमर के लिए और क्रिएटिव लिबर्टी के लिए ऐसा कर रहे हैं तो मुझे नहीं लगता कि देश में किसी को भी उसपर आपत्ति होती है. असली आपत्ति की बात तब आती है जब लोगों को उसके पीछे की असली मंशा क्या है, ये समझ में आ जाता है. 'तांडव' में जो कुछ दिखाया गया है, उसके पीछे की नीयत के बारे में एक बच्चा तक बता सकता है."
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'तांडव' में दर्शायी गयी बातों पर अपनी नाराजगी जाहिर करते हुए विवेक पूछते हैं, "क्या भारत में किसान आंदोलन, शाहीन बाग, दलित आंदोलन, लिंचिंग जैसी घटनाएं ही होती हैं? ऐसी चीजें बार बार दर्शाकर बहुसंख्यक समाज को शर्मसार करने के लिए, उनकी आस्था को तोड़ने के लिए ओटीटी प्लेटफॉर्म्स का इस्तेमाल किया जा रहा है. अगर आप वामपंथी भाषा बोलते हैं तो ओटीटी के एक्जीक्यूटिव्स आपको आसानी से कमीशन कर लेंगे और अगर आप राष्ट्र की भाषा बोलते हैं और आप बहुसंख्यक की बात कहना चाहते हैं तो इनके साथ आपको काम करने का मौका ही नहीं मिलेगा."
विवेक कहते हैं, "हिंदू प्रतीकों का ही इस्तेमाल क्यों किया का रहा है और वो भी इतनी आपत्तिजनक तरह से? किसी और धर्म के प्रतीकों का इस्तेमाल कर क्यों नहीं ये लोग अपनी बात रखते हैं?" विवेक कहते हैं कि अगर धर्म का इस्तेमाल राजनीतिक मंशाओं की पूर्ति के लिए किया जाएगा तो उसका रिएक्शन भी तो होगा और 'तांडव' को लेकर अब यही हो रहा है.
कश्मीरी पंडितों पर अपनी अगली फिल्म 'द कश्मीर फाइल्स' की शूटिंग पूरी कर चुके विवेक अपनी इस फिल्म के खिलाफ जारी फतवे के बारे में कहते हैं, "मैं ऐसे किसी भी फतवे और धमकियों से नहीं डरता हूं."