सपनों की नगरी कहे जाने वाले मुंबई को अक्सर अपराध की काली दुनिया का सामना करना पड़ा है और मनोरंजन की दुनिया की कई हस्तियों को इसका खामियाजा भी भुगतना पड़ा है. कई बार इस टकराव की कहानी सुर्खियों में आ पाती हैं और कई बार गुमनामी के अंधेरे में खो जाती हैं. अंडरवर्ल्ड, दाऊद जैसे नाम मुंबई के लोगों के लिए अनजाने नहीं हैं. ऐसी ही एक आपराधिक गिरोह का शिकार बने थे ट्रेजडी किंग दिलीप कुमार और अमिताभ बच्चन अभिनीत 1982 की फिल्म 'शक्ति' के प्रोड्यूसर-मुशीर आलम.
मुशीर आलम के अपहरण की कहानी मुंबई पुलिस के रिटायर्ड अधिकारी इशाक इस्माइल बागवान ने 2018 में प्रकाशित अपनी किताब 'मी-अगेंस्ट द मुम्बई वर्ल्ड' में बयान की है. बागवान तीन दशक तक मुंबई पुलिस में रहे और एसीपी के पद से रिटायर हुए. उन्होंने अपने कार्यकाल में मुंबई की सड़कों पर हुई गैंगवार को देखा, 1993 का सिलसिलेवार बम धमाका देखा और 2008 में हुए आतंकवादी हमले को देखा. बागवान को मुंबई पुलिस के पहले मुठभेड़ को अंजाम के लिए भी जाना जाता है.
अपनी किताब में उन्होंने बताया है कि उस वक्त वह इंस्पेक्टर मधुकर जेंडे के अधीन मुंबई की अपराध शाखा में थे. मधुकर जेंडे उस वक्त के नामचीन पुलिस अधिकारी थे. वह चार्ल्स शोभराज को दो-दो बार गिरफ्तार करने के लिए जाने जाते हैं. बागवान ने कहा कि एक दिन उन्हें बताया कि अभिनेता दिलीप कुमार मुंबई पुलिस मुख्यालय में पुलिस कमिश्र जुलियो रिबेरो से मिलने आये हैं. उन्हें लगा कि वह हथियार के लाइसेंस के लिए या ऐसी ही किसी चीज के लिए आये होंगे. उन्हें लेकिन तब आश्चर्य हुआ, जब पुलिस आयुक्त ने मधुकर जेंडे को ऑफिस में बुलाया. मधुकर उन्हें भी साथ लेकर अंदर गये.
पुलिस कमिश्नर के कार्यालय में दिलीप कुमार दो अन्य लोगों के साथ बैठे थे, जिनका परिचय मुशीर और रियाज के रूप में कराया गया. यह वास्तव में मुशीर-रियाज की जोड़ी थी, जो कई फिल्मों के नामचीन प्रोड्यूसर थे. मुशीर खान ने बताया कि कुछ दिन पहले उन्हें हाजी अली के पास अपराधियों ने रोका. उनकी आंखों पर पट्टी बांधी और उन्हें जबरन अपने ठिकाने पर ले गये. अपराधियों ने उनसे 20 लाख रुपये मांगे और उन्हें तब ही छोड़ा गया, जब उन्होंने उसी दिन कुछ रकम दी और बाकी रकम जल्द ही देने को कहा.
मुशीर यह नहीं बता पा रहे थे कि अपहरण करने वाले कौन थे और उन्हें कहां ले जाया गया था. बागवान कहते हैं कि उनके वरिष्ठ इंस्पेक्टर मधुकर यह भांप गये कि वह मुशीर से कुछ पूछना चाहते हैं. इंस्पेक्टर मधुकर ने तब उन्हें मुशीर से सवाल पूछने की जिम्मेदारी दी. मुशीर से बागवान ने पूछा कि उन्हें अपहरण वाली जगह से अपराधियों के ठिकाने पर पहुंचने में कितना समय लगा. उस जगह से कैसी गंध आ रही थी. कैसी आवाजें आ रही थीं. इमारत में कैसी सीढ़ियां थीं, कितनी सीढ़ियां थीं. उन्होंने और भी कई सवाल पूछे.
मुशीर के जवाबों के आधार पर उस इमारत की खोजबीन शुरू की गई और आखिरकार पुलिस को सफलता हाथ लगी. स्थानीय पुलिस और पुलिस के खबरियों की मदद से यह पता लगाया कि कौन सी गैंग उस इमारत को अपने ठिकाने के रूप में इस्तेमाल करती है. पता चला कि इस अपहरण के पीछे पठान गैंग का हाथ था. माफिया करीम पठान का रिश्तेदार अमीरजादा और आलमजेब डॉन दाऊद इब्राहिम के बड़े भाई साबिर की हत्या के बाद से अंडरग्राउंड था. इसके कारण उनके पास पैसों की किल्लत हो गई थी.
दोनों आरोपियों की धरपकड़ के लिए जाल बिछाया गया. ऐसा संदेह था कि ये दोनों आरोपी गुजरात के गैंगस्टर अब्दुल लतीफ के शरण में थे. इसी अब्दुल लतीफ का किरदार शाहरूख खान ने अपनी फिल्म रईस में निभाया है. अहमदाबाद से अमीरजादा गिरफ्तार किया गया और पूछताछ से अपहरण की पूरी कहानी खुलकर सामने आई. मुशीर के एक सहयोगी के मातहत एक प्रोडक्सन असिस्टेंट पठान गैंग का मुखबिर के रूप में काम कर रहा था.
यह असिस्टेंट अमीरजादा से मिला था और वह उसके अच्छे बर्ताव से प्रभावित हो गया था. उसे अमीरजादा ने पारिवारिक समारोहों में भी बुलाया था. इस मेलमिलाप के पीछे की मंशा का जब असिस्टेंट को पता चला तो उसने दूरी बनाने की कोशिश की लेकिन तब तक वह गैंगस्टर के जाल में फंस चुका है. असिस्टेंट से कहा गया था कि वह फिल्म इंडस्ट्री के उन लोगों की जानकारी दे, जिनके पास काला धन है या जिनके विवाद कानूनी तरीके से नहीं निपट पा रहे हैं. ऐसे में उसने मुशीर का नाम बता दिया. बाद में अमीरजादा और आलमजेब भी दाऊद गैंग द्वारा मार गिराये गये. इस तरह, अपहरण के शिकार हुए प्रोड्यूसर के लिए अपराध की दुनिया से हुआ यह टकराव जानलेवा साबित नहीं हुआ.
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