वक़्त के सितम, कम हसीं नहीं, आज हैं यहां, कल कहीं नहीं- ज़हर दिए जाने पर भी चुप रहीं थीं लता दीदी
Lata Mangeshkar Death: लता दीदी जब 33 साल की थीं तभी उन्हें जहर देकर मारने की कोशिश की गई थी.
Lata Mangeshkar Death: देश की मशहूर गायिका और स्वर कोकिला लता मंगेशकर का निधन हो गया है. उनके निधन से बॉलीवुड इंडस्ट्री के साथ साथ करोड़ो फैंस के बीच शोक की लहर है. बॉलीवुड से जुड़े दिग्गजों से लेकर तमाम वरिष्ठ राजनेता उनके निधन को अपूर्णीय क्षति बता रहे हैं. लेकिन क्या आपको पता है कि 92 साल की उम्र में दुनिया को अलविदा कहने वाली लता दीदी जब 33 साल की थीं तभी उन्हें जहर देकर मारने की कोशिश की गई थी.
अपनी जिंदगी की इस कहानी से लता मंगेशकर ने खुद ही पर्दा हटाया था. दरअसल अपने एक इंटव्यू में लता दीदी ने अपनी जिंदगी से जुड़ी एक ऐसी दर्दनाक घटना साझा की थी जिसे सुनकर सभी भौचक्के रह गए थे. उन्होंने इस कहानी को बेपर्दा करते हुए कहा, 'हम मंगेशकर्स इस बारे में बात नहीं करते, क्योंकि यह हमारी जिंदगी का सबसे भयानक दौर था. यह बात साल 1963 की है, उन दिनों मुझे अचानक कमजोरी महसूस होने लगी थी, धीरे-धीरे ये कमजोरी इतनी बढ़ गई कि मैं बेड से भी बमुश्किल उठ पाती थीं. उन्होंने कहा कि हालात ये हो गया कि मैं अपने दम पर चल फिर भी नहीं सकती थी."
धीमा जहर दिया गया था
लता जी ने आगे बताया कि जब उन्होंने डॉक्टर्स से ट्रीटमेंट शुरू किया तो पता चला कि उन्हें धीमा जहर दिया गया था. लता दी ने कहा कि ये दौर मेरी जिंदगी में किसी परीक्षा से कम नहीं था. हालांकि इलाज के बाद वे धीरे-धीरे ठीक हुईं. उन्होंने कहा कि डॉक्टर्स के ट्रीटमेंट और मेरा दृढ़ संकल्प मुझे वापस ले आया. तीन महीने तक बेड पर रहने के बाद मैं फिर से गाने रिकॉर्ड करने लायक हो गई थी."
सबूत के आभाव में नहीं लिया एक्शन
जब उनसे जहर देने वाले के बारे में पूछा गया तो वो कहती हैं कि उन्हें पता चल गया था कि जहर किसने दिया लेकिन हमने सबूत के आभाव में उसपर किसी तरह का एक्शन नहीं लिया. लाता दीदी ने बताया कि रिकवरी के दौरान मजरूह साहब हर शाम घर आते और उन्हें कविताएं सुनाया करते थे. इससे उनका दिल बहल जाता था. उन्होंने कहा कि उनकी रिकवरी के पीछे मजरूह सुल्तानपुरी की अहम भूमिका थी. अपनी व्यस्त शेड्यूल के बाद भी वह मेरी बीमारी के दौरान वे हर रोज मुझसे मिलने आते थे. यहां तक कि मेरे लिए डिनर में बना सिंपल खाना खाते थे और मुझे कंपनी देते थे. लता जी कहती हैं कि अगर मजरूह साहब न होते तो मैं उस मुश्किल वक्त से उबरने में सक्षम न हो पाती."
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