हिंदी सिनेमा की ट्रेजेडी क्वीन यानी मीना कुमारी भले ही आज हमारे बीच ना हों लेकिन अपनी फिल्मों के जरिए वो आज भी लाखों दिलों में बसती हैं. मीना के जन्म के समय उनके माता-पिता की आर्थिक स्थिती इतनी खराब थी कि उन्होंने मीना को यतीम खाने में छोड़ने का फैसला कर लिया. उनके पिता मीना को यतीम खाने के बाहर रख भी आए लेकिन कुछ देर के बाद जब मन नहीं माना तो वापस घर लेकर आ गए.


पैसों के लिए मीना कुमारी को 7 साल की छोटी सी उम्र में फिल्मों में काम करना पड़ा. छोटी सी उम्र में मीना कुमारी अपने परिवार का खर्चा उठाया करती थीं. कहते हैं गरीब का बच्चा जल्दी बड़ा हो जाता है, बेबी मीना भी बहुत जल्दी बड़ी हो गईं. सपोर्टिंग रोल में मीना ने 'सनम', 'तमाश' और 'लाल हवेली' जैसी कई फिल्में की फिर साल 1952 में फिल्म आई जिसका नाम था 'बैजू बावरा' (Baiju Bawra), जिसने बतौर लीड एक्ट्रेस मीना कुमारी को हिंदी सिनेमा में पहचान दिलाई. इस फिल्म से पहले एक सेट पर मीना कुमारी की मुलाकात मशहूर डायरेक्टर कमाल अमरोही से हुई, उस वक्त मीना ने कमाल को सलाम किया तो उन्होंने मीना को अनदेखा कर दिया, ये बात मीना कुमारी के दिल में बैठ गई.


कुछ समय बाद मीना कुमारी के पिता ने उन्हें बताया कि कमाल अमरोही तुम्हें एक फिल्म के लिए साइन करना चाहते हैं,ये सुनकर मीना को वही बात याद आ गई और पिता से कह दिया कि मैं उनके साथ काम नहीं करुंगी. पिता ने कहा कि बहुत बड़ा डायरेक्टर है. पिता की बात सुनकर मीना ने कहा- 'बड़ा है तो क्या? जो मेरे सलाम का जवाब नहीं दे सकता मैं उसके साथ काम क्यों करूं.'हालांकि, पिता के बहुत समझाने पर मीना कुमारी, कमाल अमरोही से मिली और फिल्म साइन की, ये बात और है कि वो फिल्म कभी बनी ही नहीं. 


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