बॉलीवुड की सदाबहार अभिनेत्री रेखा (Rekha) ने यूं तो अपने करियर में एक से बढ़कर एक फिल्मों में काम किया लेकिन उमराव जान उनके करियर के लिए मील का पत्थर साबित हुई थी. 1982 में आई मुजफ्फर अली द्वारा निर्देशित इस फिल्म को आज भी रेखा की किरदार अदायगी और अपने बेहतरीन गानों के लिए देखा जाता है. इस फिल्म के गाने मशहूर संगीतकार खय्याम ने लिखे थे. खय्याम साहब तो अब इस दुनिया में नहीं हैं लेकिन उनके द्वारा बनाए गए उमराव जान के गाने आज भी सिनेप्रेमियों के दिलों में ताज़ा है.


 



इस फिल्म के लिए खय्याम साहब को सर्वश्रेष्ठ संगीतकार का राष्ट्रीय पुरस्कार और फ़िल्मफ़ेयर पुरस्कार भी मिला था. कुछ सालों पहले खय्याम साहब को एक अवॉर्ड समारोह में अपने बेहतरीन सिनेमाई सफर के लिए लाइफटाइम अचीवमेंट अवॉर्ड से नवाज़ा गया था. इस अवॉर्ड को उन्हें देने के लिए मंच पर रेखा को बुलाया गया था. रेखा को देखते ही खय्याम साहब भाव-विभोर हो गए थे. उन्होंने कहा था कि अगर किसी ने उमराव को देखा है तो उसमें केवल रेखा को देखा है.




रेखा ने उमराव को जीवंत कर दिया. इसके बाद रेखा ने अपनी सफलता का श्रेय खय्याम साहब को देते हुए कहा, अगर खय्याम साहब नहीं होते तो रेखा नहीं होती. आर्टिस्ट तो मैं बचपन से थी लेकिन मुझे वजूद खय्याम साहब की वजह से मिला. आज मैं कहीं भी जाती हूं तो रेखा बाद में बोला जाता है, पहले कहा जाता है उमराव आ गई. इसके बाद रेखा ने उमराव जान के सभी गानों की तारीफ की और जाते-जाते एक गाना गाकर सबका दिल लूट लिया...


ये क्या जगह है दोस्तों, ये कौन सा दयार है
हद-ए-निगाह तक जहाँ गुबार ही गुबार है
ये क्या जगह है दोस्तों...
बुला रहा क्या कोई चिलमनों के उस तरफ़
मेरे लिये भी क्या कोई उदास बेक़रार है
ये क्या जगह है...