विशेष: ज़ोहराबाई अंबालेवाली- एक आवाज़, एक नग़मा जिसे दुनिया ने सराहा तो सही लेकिन याद नहीं रखा
ज़ोहराबाई अंबालेवाली ने हिंदी फिल्मों में कई बेहतरीन गाने गाए लेकिन फिर भी बहुत ही कम लोग हैं जो उनके बारे में जानते हैं
'ये रात फिर ना आएगी जवानी बीत जायेगी .…'
'सावन के बादलो उनसे ये जा कहो …तकदीर में यही था साजन मेरे ना रो'
‘दुनिया चढ़ाये फूल मैं आँखों को चढा दूं ,भगवान तुझे आज मैं रोना भी सिखा दूं
‘शायद वो जा रहे हैं’ ये बोल हैं फिल्म ‘मेला’ के, जो साल 1948 में रिलीज हुई, एक यादगार गीत जिसे गाया था ज़ोहराबाई अंबालेवाली ने. यूं तो ज़ोहराबाई ने हिंदी फिल्मों में कई बेहतरीन गाने गाए लेकिन फिर भी बहुत ही कम लोग हैं जो उनके बारे में जानते हैं. उनका जन्म पंजाब के अंबाला में एक संगीत घराने में हुआ था. कह सकते हैं गायिकी का ये हुनर उन्हें विरासत में मिला था. अपने दादा गुलाम हुसैन खान से ज़ोहराबाई ने संगीत की शिक्षा बचपन से ही लेनी शुरू कर दी थी, जिसके बाद 14 साल की छोटी सी उम्र में उन्होंने अपने गायिकी के करियर की शुरूआत भी कर दी थी. जिस उम्र में बच्चों को खेल-खिलौनों से फुरसत नहीं होती उस उम्र में ज़ोहराबाई ने अपनी जिंदगी की राह चुन ली थी.
ग्रामोफोन रिकॉर्ड के जरिए उनकी पहले गाने की रिकॉर्डिंग हुई औऱ पहला गाना ही सुपरहिट हो गया, वो गीत था- ‘छोटा सा बालमा मेरे आंगना में गिल्ली खेले’. पहले ही गाने के हिट होते ही ज़ोहराबाई ने एक के बाद एक कई गाने गाए, यू कहें तो उसके बाद ग्रामोफोन रिकॉर्ड्स की लाइन सी लग गई, इतना ही नहीं ज़ोहरा जान ऑफ अंबाला नाम से ऑल इंडिया रेडियो के दिल्ली, लाहौर और पेशावर रेडियो स्टेशनों में उनके गानों ने धूम मचा दी थी.
ज़ोहराबाई अंबालेवाली ने किस फिल्म में अपना पहला गाना, इसे लेकर आज भी काफी कन्फ्यूजन है, क्योंकि कुछ लोगों का मानना है कि 1938 में संगीतकार अनिल विश्वास ने सबसे पहले सागर मूवीटोन (Sagar Movietone) की फिल्म ‘ग्रामोफोन सिंगर’ के लिए उनसे गीत गवाया था, तो वहीं सूत्रों की माने तो संगीतकार प्राण सुख नायक ने उन्हें 1933 में फिल्म ’डाकू की लड़की’ में गाने का पहला मौका दिया था. इस फिल्म के बाद ज़ोहराबाई ने हिंदी फिल्मों में दर्जनों गाने गाए, मगर उन्हें जिस गाने से हिंदी सिनेमा में असली पहचान मिली वो ता ‘रतन’ फिल्म का गाना ‘अखियां मिलाके जिया भरमाके चले नहीं जाना’. ये गाना दर्शकों को बेहद पसंद आया और सुपरहिट हुआ, जिसके बाद ज़ोहराबाई फिल्मों की मशहूर गायिका बन गईं और ग्रामोफोन पर उनका करियर बुलंदियों को छूने लगा.
आपको जानकर हैरानी होगी कि 40 के दशक में ज़ोहराबाई ने अंबालेवाली ने ग्रामोफोन के लिए लगभग 1229 गाने गाए. फिल्म इंडस्ट्री में वक्त के साथ-साथ नए-नए सिंगर आते गए, फिर एक वक्त ऐसा भी आया जब 1953 की फिल्म ‘तीन बत्ती चार रास्ते’ के एक सहगान में ज़ोहराबाई अंबालेवाली को सिर्फ एक-आधी लाइन गाने का मौका दिया गया. काम मिलना लगभग बंद ही हो गया तो, तब ज़ोहराबाई ने फिल्मी दुनिया से सन्यास लेने में ही भलाई समझी और सिनेमा को अलविदा कह खुद को परिवार में बिजी कर लिया. साल 1990 में उन्होंने अपनी अंतिम सांसे ली और दुनिया को हमेशा हमेशा के लिए अलविदा कह दिया.