Afghanistan Crisis: 15 अगस्त 2021. ये वह तारीख है जब पूरी दुनिया मौन होकर देखती रह गई और तालिबान ने राजधानी काबुल समेत पूरे अफगानिस्तान पर कब्जा कर लिया. ये हार न सिर्फ अफगानिस्तान, बल्कि अमेरिका की भी मानी जा रही है. क्योंकि अफगानिस्तान में अमेरिका की 20 साल तक तालिबान से जंग होती रही. अरबों डॉलर अमेरिका ने इस जंग में खर्च किए. लेकिन फिर अचानक अमेरिका ने हाथ खड़े कर दिए और तालिबान ने पूरे अफगानिस्तान पर कब्जा जमा लिया. इसी वजह से अब पूरी दुनिया अमेरिका पर उंगलियां उठा रही है.
जब अमेरिका ने तालिबान को सत्ता से उखाड़ फेंका था....
अफगानिस्तान में लगभग दो दशकों में सुरक्षा बलों को तैयार करने के लिए अमेरिका और नाटो द्वारा अरबों डॉलर खर्च किए जाने के बावजूद तालिबान ने पूरे अफगानिस्तान पर कब्जा कर लिया. कुछ ही दिन पहले, एक अमेरिकी सैन्य आकलन ने अनुमान लगाया था कि राजधानी के तालिबान के दबाव में आने में एक महीना लगेगा.
काबुल का तालिबान के नियंत्रण में जाना अमेरिका के सबसे लंबे युद्ध के अंतिम अध्याय का प्रतीक है, जो 11 सितंबर 2001 को अलकायदा प्रमुख ओसामा बिन लादेन की साजिश वाले आतंकवादी हमलों के बाद शुरू हुआ था. ओसामा को तब तालिबान सरकार द्वारा आश्रय दिया गया था. एक अमेरिकी नेतृत्व वाले आक्रमण ने तालिबान को सत्ता से उखाड़ फेंका था. तब से अफगानिस्तान में अमेरिका तालिबान से लड़ रहा है.
अमेरिका सरकार ने तालिबान को दी ढील!
अमेरिका सालों से तालिबान युद्ध से बाहर निकलने की कोशिश कर रहा है. अमेरिका के तत्कालीन राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के नेतृत्व में वॉशिंगटन ने फरवरी 2020 में तालिबान के साथ एक समझौते किया था. ये समझौता अफगानिस्तान में विद्रोहियों के खिलाफ सैन्य कार्रवाई को सीमित करता है. इस समझौते ने तालिबान को अपनी ताकत जुटाने और प्रमुख क्षेत्रों पर कब्जा करने के लिए तेजी से आगे बढ़ने की अनुमति दी. वहीं राष्ट्रपति जो बाइडन ने इस महीने के अंत तक अफगानिस्तान से सभी अमेरिकी सैनिकों की वापसी की अपनी योजना की घोषणा कर दी. इसके बाद तालिबान ने एक-एक कर सभी राजधानियों पर कब्जा जमाना शुरू कर दिया.
अमेरिका ने तालिबान से लड़े बिना किया समर्पण?
अमेरिका ने पिछले महीने चेतावनी दी थी कि अमेरिकी सेना के पास अफगान की रक्षा करने के लिए बहुत कम या कोई साधन नहीं है. जबकि मार्च 2021 तक अफगानिस्तान में सुरक्षा संबंधी पुनर्निर्माण पर 88.3 अरब डॉलर खर्च किया गया था. अफगान सरकार की सेवा करने वाले 300,699 फौजियों की तुलना में तालिबान के पास 80,000 सैनिक हैं, फिर भी पूरे देश को कुछ ही हफ्तों में प्रभावी ढंग से खत्म कर दिया गया है. क्योंकि सैन्य कमांडरों ने कुछ ही घंटों में बिना किसी लड़ाई के आत्मसमर्पण कर दिया.
ऐसे सवाल उठ रहा है कि सवाल यह है कि क्या अफगानिस्तान के लिए जारी किए गए उस पैसे को अच्छी तरह से खर्च किया गया था? अगर खर्च किया गया तो जमीन पर लड़ाई के नतीजे क्यों नहीं सामने आए? अफगानिस्तान में तख्तापलट के बाद अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने कहा है कि तालिबान का विरोध किए बिना काबुल का पतन होना अमेरिकी इतिहास की सबसे बड़ी हार के रूप में दर्ज होगा.
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