Explained: क्या है तलाक-ए-हसन और क्यों मुस्लिम महिलाएं इसे खत्म करने की मांग करते हुए पहुंचीं हैं सुप्रीम कोर्ट?
Talaq-E-Hasan In Supreme Court: तीन तलाक के बाद अब तलाक-ए-हसन का मामला भी तूल पकड़ता जा रहा है. मुस्लिम औरतें अब इसे लेकर सुप्रीम कोर्ट पहुंच रही हैं. जानिए क्या होता है तलाक-ए-हसन?
Talaq-E-Hasan In Supreme Court: दिल्ली उच्च न्यायालय (Delhi High Cour) ने दिल्ली पुलिस (Delhi Police) और एक मुस्लिम व्यक्ति से जवाब मांगा है, जिसने अपनी पत्नी को 'तलाक-ए-हसन' (Talaq-E-Hasan)के तहत तलाक का नोटिस भेजा है. उसकी पत्नी ने अदालत (High Court) से तलाक की इस प्रथा तलाक-ए-हसन को असंवैधानिक और भेदभावपूर्ण घोषित करने की मांग की थी. यहां याचिकाकर्ता ने अपने पति द्वारा भेजे गए पहले तलाक (Divorce) के नोटिस को अमान्य और असंवैधानिक करार देने के लिए अदालत का रुख किया है, क्योंकि यह उसके उचित अधिकारों का उल्लंघन है. महिला ने याचिका में पति औऱ ससुराल वालों पर दहेज उत्पीड़न (Dowry Case) का आरोप भी लगाया है. बताया गया है कि महिला की शादी सन् 2020 में हुई थी.
इससे पहले, जस्टिस ए एस बोपन्ना (Justice AS Bopanna) और विक्रम नाथ की सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) की अवकाश पीठ ने तलाक-ए-हसन मामले पर याचिकाकर्ता बेनज़ीर हीना (Benazir Heena) द्वारा प्रस्तावित प्रस्तावों पर ध्यान दिया, जिसमें महिलाओं के मौलिक और संवैधानिक अधिकारों के खिलाफ असंवैधानिक और प्रतिगामी के रूप में इस प्रथा को खत्म करने की मांग की गई थी.
क्या है तलाक-ए-हसन
तलाक-ए-हसन- तीन तलाक का ही एक रूप है, जिसमें मुस्लिम विवाह में पुरुषों द्वारा प्रचलित तलाक का एक अतिरिक्त-न्यायिक तरीका अपनाया गया है. जिसमें अपनी पत्नी से तलाक लेने के लिए तीन महीने में तीन बार 'तलाक' का उच्चारण कर पति तलाक ले सकता है. इस प्रकार, कोई भी मुस्लिम पुरुष अपनी शादी को इसके जरिए समाप्त कर सकता है, यदि वह लगातार तीन महीने तक हर महीने एक बार 'तलाक' शब्द कहता है.
एक-एक महीने बाद तीन महीने में जब तीसरी बार तलाक बोलता है. इन तीन महीनों के दौरान शादी लागू रहती है, लेकिन अगर इन तीन महीनों के अदंर पति-पत्नी में सुलह नहीं होती है और पति तीन महीने में तीन बार तलाक बोल देता है तो तलाक मान लिया जाता है.
तलाक-ए-हसन का इसलिए था प्रचलन
इस प्रकार के तलाक की घोषणा तब की जानी चाहिए जब पत्नी को मासिक धर्म नहीं हो रहा हो और तीनों घोषणाओं में से प्रत्येक के बीच एक महीने का अंतराल हो. परहेज की अवधि इन तीन लगातार तलाक के बीच की समय सीमा है. यानी कि संयम, या 'इद्दत' जो 90 दिनों यानी पत्नी के तीन मासिक चक्र या तीन चंद्र महीनों के लिए होता है. इस संयम की अवधि के दौरान, यदि पति या पत्नी अंतरंग संबंधों में सहवास करना या साथ रहना शुरू कर देते हैं, तो तलाक को रद्द कर दिया जाता है. इस प्रकार के तलाक को स्थापित करने का उद्देश्य तात्कालिक तलाक की बुराई को रोकना था.
लोग तलाक-ए-हसन के खिलाफ क्यों हैं?
कई मुस्लिम महिलाओं ने तीन तलाक प्रणाली के माध्यम से तलाक के बहाने अपने ससुराल वालों द्वारा शारीरिक शोषण और हिंसक धमकियों के मामले दर्ज कराए हैं.
तलाक-ए-हसन की याचिकाकर्ता बेनज़ीर हीना ने तलाक के इस्लामी रूप तलाक-ए-हसन को असंवैधानिक घोषित करने के लिए एडवोकेट-ऑन-रिकॉर्ड अश्विनी कुमार दुबे के माध्यम से एक याचिका दायर की थी, क्योंकि यह संविधान के अनुच्छेद 14, 15, 21 और 25 का उल्लंघन करता है. हिना ने कोर्ट से प्रार्थना की है कि मुस्लिम पर्सनल लॉ (शरीयत) आवेदन अधिनियम, 1937 की धारा 2, जो मुसलमानों को एकतरफा तलाक का अभ्यास करने की अनुमति देती है, को अब शून्य माना जाए.
कोर्ट भी है अब इस मामले पर गंभीर
बेनजीर हिना ने दावा किया है कि उनके पति यूसुफ ने उन्हें इस साल मई में, तलाक-ए-हसन प्रक्रिया के माध्यम से एकतरफा तलाक दिया था. शीर्ष अदालत ने इस मुद्दे पर शीघ्र सुनवाई के अनुरोध को ठुकरा दिया था.
हालांकि, 17 जून को एक अवकाश पीठ ने मामले की तत्काल सुनवाई का अनुरोध स्वीकार कर लिया था और यह सुझाव दिया गया था कि यदि कोई कार्रवाई नहीं की गई, तो महिला और उसके बच्चे को सुरक्षा प्रदान की जाएगी. महिला को पति की तरफ से तलाक की पहली और दूसरी दोनों नोटिस क्रमश: 19 अप्रैल और 19 मई को दी गयी थी.
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