16 मार्च, 2020. संयुक्त सचिव सुधेश कुमार शाही के नाम से भारत का एक राजपत्र जारी हुआ. इसमें साफ तौर पर लिखा गया था कि संविधान के अनुच्छेद 80 का इस्तेमाल करते हुए भारत के राष्ट्रपति राज्यसभा के लिए रंजन गोगोई को नामित करते हैं. इस राजपत्र के सामने आने के साथ ही हंगामा हो गया. विपक्षी दल कांग्रेस के नेता रणदीप सुरजेवाला और अभिषेक मनु सिंघवी ने हमला कर दिया. सुरजेवाला ने ट्वीट कर कहा कि या तो राज्यपाल, चेयरमैन और राज्यसभा वरना तबादले झेलो या इस्तीफा देकर घर जाओ. वहीं अभिषेक मनु सिंघवी ने पूर्व केंद्रीय मंत्री और बीजेपी के वरिष्ठ नेता रहे अरुण जेटली की बात याद दिलाते रिटायरमेंट के बाद जजों को राज्यसभा भेजे जाने के फैसले पर सवाल उठाए और कहा कि साल 2012 में अरुण जेटली ने कहा था कि रिटायरमेंट के बाद कम से कम दो साल तक जज को कोई पद नहीं दिया जाना चाहिए. वहीं असदुद्दीन ओवैसी ने तो ट्वीट कर कह दिया कि क्या यह इनाम है, लोग जजों की स्वतंत्रता पर कैसे यकीन करेंगे, कई सवाल हैं. इसके अलावा बीजेपी के पूर्व नेता यशवंत सिन्हा के साथ ही माकपा नेता सीताराम येचुरी और भाकपा नेता मोहम्मद सलीम ने भी सवाल उठाए हैं.
पहले कहा गया कांग्रेसी, फिर लगे सत्ता पक्ष से करीबी के आरोप
ये तो बात रही विपक्ष की, जिसने अपना काम किया. लेकिन ये वहीं जस्टिस रंजन गोगोई हैं, जिन्होंने जब देश के चीफ जस्टिस रहे दीपक मिश्रा के खिलाफ चार जजों के साथ प्रेस कॉन्फ्रेंस की तो याद दिलाया जाने लगा कि इनके पिता कांग्रेस से मुख्यमंत्री रह चुके हैं. और ये वहीं जस्टिस रंजन गोगोई हैं, जिन्होंने चीफ जस्टिस बनने के बाद एनआरसी, सबरीमाला, राफेल और फिर राम मंदिर पर फैसले दिए, तो लोग इन्हें सरकार का करीबी बताने लगे. अब इन्हें राज्यसभा भेजा जा रहा है तो आप तथ्यों के आधार पर खुद से तय कर सकते हैं कि क्या सही है और क्या गलत. आप टाइमिंग पर सवाल खड़े कर सकते हैं कि क्यों सरकार ने रिटायर्ड जस्टिस के मनोनयन पर इतनी जल्दबाजी दिखाई. लेकिन फिलहाल हम आपको ये बताने की कोशिश कर रहे हैं कि सिर्फ देश के रिटायर्ड चीफ जस्टिस होने के नाते उनके राज्यसभा मनोनयन पर सवाल खड़े करना गलत है. क्यों, इसका भी जवाब दे देते हैं.
कांग्रेस के जमाने में भी राज्यसभा पहुंचे थे रिटायर्ड जस्टिस
देश के 21वें चीफ जस्टिस थे जस्टिस रंगनाथ मिश्रा. वो 25 सितंबर, 1990 से 24 नवंबर, 1991 तक देश के चीफ जस्टिस रहे. लेकिन कांग्रेस ने 1998 में उन्हें राज्यसभा भेज दिया, जहां वो 2004 तक सदस्य रहे थे. देख सकते हैं कि रिटायरमेंट और राज्यसभा जाने के बीच छह साल से ज्यादा का अंतर था. थोड़ा और पीछे चलते हैं. साल था 1983. जून का महीना था और इंदिरा गांधी प्रधानमंत्री थीं. उन्होंने जनवरी 1983 में सुप्रीम कोर्ट के जज की पोस्ट से रिटायर हुए रिटायर्ड जस्टिस बहरुल इस्लाम को राज्यसभा में भेजा था. जस्टिस बहरुल इस्लाम सुप्रीम कोर्ट में जज बनने से पहले 1962 से 1972 तक राज्यसभा के सांसद रह चुके थे. 1972 में उन्होंने राज्यसभा की सदस्यता से इस्तीफा दे दिया था, क्योंकि उन्हें तब के आसाम और नागालैंड हाई कोर्ट में जज के तौर पर नियुक्त किया गया था. थोड़ा और पीछे चलिए. देश के 11वें चीफ जस्टिस थे जस्टिस हिदायतुल्लाह. 25 फरवरी 1968 से 16 दिसंबर, 1970 तक वो देश के चीफ जस्टिस रहे. रिटायरमेंट के करीब साढ़े सात साल बाद वो देश के उपराष्ट्रपति बने. 31 अगस्त, 1979 से 30 अगस्त, 1984 तक पद पर रहे. दो बार वो देश के ऐक्टिंग प्रेसीडेंट भी रहे. एक बार तब जब वो चीफ जस्टिस थे यानि कि 20 जुलाई 1969 से 24 अगस्त 1969 तक. और दूसरी बार तब जब वो देश के उपराष्ट्रपति थे यानि 6 अक्टूबर, 1982 से 31 अक्टूबर 1982 तक.
राज्यपाल भी बनते रहे हैं सुप्रीम कोर्ट-हाई कोर्ट के रिटायर्ड जज
ये तो रही बात राज्यसभा की. लेकिन देश के रिटायर्ड जस्टिस को राज्यों का राज्यपाल बनाने का भी चलन रहा है. देश के 40वें चीफ जस्टिस रह चुके पी सथाशिवम जब 26 अप्रैल 2014 को चीफ जस्टिस पद से रिटायर हुए, तो 5 सितंबर, 2014 को ही उन्हें केरल का राज्यपाल बना दिया गया. सुप्रीम कोर्ट की पहली महिला जज रहीं एम फातिमा बीवी को भी रिटायरमेंट के बाद 1997 में तमिलनाडु का राज्यपाल बना दिया गया. पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट के जज रहे सुखदेव सिंह कैंग जब जम्मू-कश्मीर हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस से रिटायर हुए तो साल 1997 में उन्हें केरल का राज्यपाल बनाया गया था. मई 1952 में सुप्रीम कोर्ट के जज की पोस्ट से रिटायर होने वाले जस्टिस एस फजल अली पहले ऐसे जज थे, जिन्हें किसी राज्य का राज्यपाल बनाया गया था और ये राज्य था ओडिशा. इसके अलावा बॉम्बे हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस पद से रिटायर हुए एमसी छागला को जवाहर लाल नेहरू ने अमेरिका में भारत का राजदूत बनाकर भेजा था. बाद में वो ब्रिटेन में हाई कमीश्नर भी बने. वो केंद्र में शिक्षा और विदेश मंत्री भी रह चुके थे. 1973 में सुप्रीम कोर्ट से रिटायर हुए जस्टिस केएस हेगड़े रिटायरमेंट के बाद जनता पार्टी के टिकट पर दक्षिण बैंगलोर से सांसद बने थे और लोकसभा के अध्यक्ष भी रहे थे.
साथी जज ने भी उठाए हैं सवाल
ये तमाम उदाहरण बताते हैं कि पहले की सरकारों ने रिटायर्ड जजों को राज्यसभा या लोकसभा या राज्यों का गवर्नर बनाया है. लेकिन तब की सरकारों ने रिटायरमेंट और नियुक्ति के बीच दो साल से ज्यादा का ही अंतर बरकरार रखा है. जाते-जाते एक बात और बता देते हैं. और ये बात भी सुप्रीम कोर्ट के एक रिटायर्ड जस्टिस ने ही कही है. नाम है रिटायर्ड जस्टिस मदन बी लोकुर. जस्टिस रंजन गोगोई की बेंच में रह चुके हैं. उनके साथ चीफ जस्टिस रहे दीपक मिश्रा के खिलाफ प्रेस कॉन्फ्रेंस कर चुके हैं. एक अंग्रेजी अखबार से बात करते हुए उन्होंने कहा है कि रिटायर्ड जस्टिस रंजन गोगोई का मनोनयन कोई हैरानी वाली बात नहीं है, हैरानी सिर्फ इस बात पर है कि इतनी जल्दी नॉमिनेशन मिल गया. ये न्यायपालिका की स्वतंत्रता, निष्पक्षता और अखंडता को फिर से परिभाषित करता है. क्या आखिरी गढ़ गिर गया है? इसका जवाब आप खुद तलाशिए.
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(Source: ECI/ABP News/ABP Majha)
पहले भी तो राज्य सभा जाते रहे हैं रिटायर्ड जज, फिर क्यों हुआ जस्टिस गोगोई पर विवाद?
अविनाश राय, एबीपी न्यूज़
Updated at:
17 Mar 2020 09:00 PM (IST)
जस्टिस रंजन गोगोई. देश के मुख्य न्यायाधीश रह चुके हैं. अब रिटायर्ड हैं. और रिटायरमेंट के बाद वो राज्यसभा जा रहे हैं. लेकिन कुछ लोगों ने रिटायर्ड जस्टिस गोगोई के मनोनयन पर सवाल उठाए हैं. लेकिन ये पहली बार नहीं हुआ है कि कोई जज रिटायरमेंट के बाद राज्यसभा में जा रहा हो.
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