Explained : क्या है पूल टेस्टिंग, जिससे और ज्यादा कोरोना टेस्ट कर पाएगा इंडिया?
कोरोना के सैंपल्स ज्यादा से ज्यादा लिए जा सकें और ज्यादा से ज्यादा लोगों की जांच की जा सके, भारत में इसकी हर मुमकिन कोशिश हो रही है. पूल टेस्टिंग भी इसी कोशिश का एक हिस्सा है.
भारत में कोरोना के मामले लगातार बढ़ते ही जा रहे हैं. अभी तक कुल 18,985 मामले सामने आए हैं, जिनमें से 603 लोगों की मौत हो चुकी है और 3,259 लोग ठीक होकर अपने घर जा चुके हैं. भारत में जैसे-जैसे टेस्ट्स की संख्या बढ़ती जा रही है, कोरोना पॉजिटिव की भी संख्या बढ़ती जा रही है. जिन इलाकों में कोरोना पॉजिटिव की संख्या ज्यादा है या फिर जिन इलाकों को हॉट स्पॉट घोषित किया गया है, वहां तो सामान्य तौर पर लोगों की ज्यादा जांच की जा रही है, लेकिन जिन इलाकों में कोरोना का संक्रमण कम है, वहां पर कम सैंपल इकट्ठे किए जा रहे हैं. कम संक्रमण वाले इलाकों में भी ज्यादा से ज्यादा सैंपल टेस्ट किए जा सकें, इसके लिए इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च ने एक एडवाइजरी जारी की है औऱ कहा है कि इन इलाकों में अब पूल टेस्टिंग होगी.
अब ये पूल टेस्टिंग क्या है और ये कैसे काम करती है, इसे समझने की कोशिश करते हैं. आप ओला या उबर जैसी टैक्सी सर्विस का इस्तेमाल करते होंगे. कभी-कभी ऐसा भी होता होगा कि आपके पास थोड़ा वक्त ज्यादा हो और ओला-उबर वाले पैसे ज्यादा चार्ज कर रहे हों तो आपने शेयरिंग का ऑप्शन इस्तेमाल किया होगा. यानि कि टैक्सी एक और उसमें दो या फिर दो से ज्यादा अलग-अलग राइडर. इस शेयरिंग राइड को पूल राइड भी कहते हैं. पूल टेस्टिंग भी ऐसी ही है.
अभी फिलहाल भारत में कोरोना की जांच के लिए जो सबसे प्रचलित तरीका है वो है RT-PCR का. इसमें नाक या गले से सैंपल लेते हैं और फिर उसका टेस्ट करके इस सैंपल के कोशिकाओं की तुलना कोरोना के वायरस की कोशिकाओं से करते हैं. अगर लक्षण मिलते हैं तो फिर सैंपल को आगे के लिए भेज दिया जाता है. अगर लक्षण नहीं मिलते हैं, तो सैंपल को तुरंत ही निगेटिव करार दे दिया जाता है. एक-एक सैंपल की जांच में यही तरीका अपनाया जाता है. पूल टेस्टिंग में कुछ सैंपल एक साथ लिए जाएंगे और सबको मिलाकर एक सैंपल बनाया जाएगा और उनकी जांच की जाएगी. अगर ये सैंपल पॉजिटिव पाया जाता है तो फिर सभी लोगों का अलग-अलग टेस्ट किया जाएगा. और अगर सभी को मिलाकर बनाया गया सैंपल निगेटिव पाया जाता है, तो फिर सबको कोरोना फ्री घोषित कर दिया जाएगा. इसे ही पूल टेस्टिंग कहा जा रहा है.
पूल टेस्टिंग के दो मकसद हैं. पहला तो ये है कि अधिक से अधिक सैंपल की जांच कर ली जाए और दूसरा ये है कि सैंपल जांच में खर्च होने वाली रकम और वक्त दोनों को बचाया जाए. इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च की गाइडलाइन कहती है कि पूल टेस्टिंग में भी एक वक्त में पांच से ज्यादा लोगों का सैंपल नहीं लिया जा सकता है. ICMR के मुताबिक लखनऊ की किंग जॉर्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी में पूल टेस्टिंग पर रिसर्च हुई है. इस रिसर्च में पाया गया है कि अगर पांच से ज्यादा लोगों के सैंपल एक साथ लिए जाएंगे तो फिर रिजल्ट सही नहीं आएगा और पूल टेस्टिंग का मकसद पूरा नहीं हो पाएगा.
ICMR के मुताबिक पूल टेस्ट के लिए सैंपल उन्हीं इलाकों से इकट्ठा किए जाएंगे, जहां पर कोरोना पॉजिटिविटी का रेट 2 से 5 फीसदी तक है. अगर वहां पर कोरोना पॉजिटिव की संख्या इससे ज्यादा है तो फिर एक-एक सैंपल लिया जाएगा, वहां पर पुल टेस्टिंग नहीं होगी. इसके अलावा जो लोग कोरोना पॉजिटिव लोगों के संपर्क में आए हैं, डॉक्टर हैं, नर्स हैं या फिर अस्पताल के वो कर्मचारी हैं जो कोरोना पॉजिटिव लोगों के संपर्क में आ सकते हैं, तो उनका भी पूल टेस्ट नहीं किया जाएगा, बल्कि उन लोगों में हर एक का अलग-अलग सैंपल लिया जाएगा और अलग-अलग टेस्ट किया जाएगा.