कोरोना की वजह से पूरी दुनिया तबाह है. हर देश में ये महामारी बर्बादी के निशान छोड़ती जा रही है. लेकिन अगर बात सबसे ज्यादा बर्बादी की हो, तो फिर वो अमेरिका ही है. वो देश जो कभी खुद को दुनिया का बेताज बादशाह समझता था, उसे एक वायरस के आगे घुटने टेकने पड़े हैं. अभी तक इस वायरस से पूरी दुनिया में 2.70 लाख से ज्यादा मौतें हुई हैं और इनमें से भी 76 हजार से ज्यादा मौतें अकेले अमेरिका में हुई हैं. ये आंकड़ा हर रोज बढ़ता ही जा रहा है. अमेरिका के डॉक्टर और वैज्ञानिक इससे निबटने की हर संभव कोशिश कर रहे हैं, लेकिन फिलहाल नतीजा सिफर है. वहीं अमेरिका के राष्ट्रपति ट्रंप इस पूरे मामले के लिए चीन को जिम्मेदार ठहरा रहे हैं और चीन इन सबके लिए अमेरिकी चुनाव को दोष दे रहा है.


अभी दोनों देश एक दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप लगा ही रहे हैं कि अमेरिका में बेरोजगारी का आंकड़ा सामने आ गया है. अमेरिका के लेबर डिपार्टमेंट ने 8 मई को जो आंकड़ा जारी किया है, उसके मुताबिक अमेरिका में अप्रैल महीने में 2.5 करोड़ लोगों की नौकरियां खत्म हुई हैं. आंकड़े बता रहे हैं कि अमेरिका में फिलहाल बेरोजगारी की दर 14.7 फीसदी है, जबकि इसी फरवरी में ये बेरोजगारी दर 3.5 फीसदी थी. इससे पहले जब साल 2008-09 में दुनिया भर में आर्थिक मंदी आई थी, तो उस समय भी अमेरिका में बेरोजगारी की दर में इजाफा हुआ था और ये अक्टूबर 2009 में 10 फीसदी तक पहुंच गई थी. तब अमेरिका में 80 लाख से भी ज्यादा लोग बेरोजगार हुए थे.

अमेरिका ने बेरोजगारी के रूप में अपना सबसे खराब दौर 1933 में देखा था जब दुनिया वैश्विक मंदी की चपेट में थी, जिसकी शुरुआत अमेरिका से ही हुई थी. उस वक्त अमेरिका में बेरोजगारी की दर 25 फीसदी तक पहुंच गई थी. अब भी अमेरिकी अर्थशास्त्री इस बात की आशंका जता रहे हैं कि अमेरिका में मई के महीने में बेरोजगारी की दर 20 फीसदी को पार कर जाएगी, क्योंकि अगले कुछ महीनों तक तो अर्थव्यवस्था का पटरी पर लौटना नामुमकिन दिख रहा है. एक अनुमान ये भी है कि बेरोजगारी की ये रफ्तार 2021 तक भी जारी रह सकती है.

लगातार बढ़ती बेरोजगारी पर अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप कह रहे हैं कि जल्द ही सारी नौकरियां वापस आएंगी और अगला साल अमेरिका के लिए अद्भुत साल होगा. लेकिन फिलहाल ये मुमकिन होता नहीं दिख रहा है. अमेरिका में बेरोजगारों को मिलने वाली सुविधाओं के लिए इतने आवेदन एक साथ आ रहे हैं कि अब वहां के रोजगार दफ्तर को नई-नई भर्तियां करनी पड़ रही हैं. फिर भी दफ्तर के लोग और वहां के कंप्यूटर बेरोजगारों का आंकड़ा इकट्ठा नहीं कर पा रहे हैं, क्योंकि संख्या बहुत ज्यादा है. अमेरिका में बेरोजगारी की दर इससे मापी जाती है कि वहां के कितने लोग रोजगार की तलाश में हैं. दफ्तर इसी का आंकड़ा इकट्ठा कर रहा है.

वहीं अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप हर रोज नई-नई चुनौतियों से जूझ रहे हैं. अब उनके एक सहायक को कोरोना का संक्रमण हो गया है, तो ट्रंप को भी हर रोज कोरोना का टेस्ट करवाना होगा. वहीं देश के तीन सबसे बड़े शहर न्यू यॉर्क, शिकागो और लॉस एंजिल्स में हर रोज कोरोना के मामले भयंकर रफ्तार से बढ़ रहे हैं. वहीं अब दुनिया के कुछ विशेषज्ञ इस बात की ओर भी इशारा कर रहे हैं कि जैसे 1990 में सोवियत संघ का पतन हो गया था, वैसे ही कोरोना की वजह से अमेरिका अपनी बादशाहत खो देगा. दुनिया के तमाम देश और खास तौर से चीन इस बात पर नज़र गड़ाए है कि क्या इस वायरस की वजह से अमेरिका को इतना नुकसान झेलना पड़ेगा कि दुनिया भर के तमाम देशों से उसका वर्चस्व खत्म हो जाए.