पूरी दुनिया में आज भी सरहदों, मज़हबों और वक्त के दायरे में जिस एक चीज को बांधा नहीं जा सकता वो इश्क़ ही है. वही इश्क़ जिसकी लंबी चौड़ी परिभाषा गढ़ने से बेहतर है एक ऐसे शख्स का नाम ले लेना जो आज अपने आप में उस इश्क़ की कहानीकार हैं. हम बात कर रहे हैं अमृता प्रीतम की, जिनकी आज जयंती है. आमतौर पर लोग जिंदगी जीते हैं और कविता लिखते हैं लेकिन अमृता जैसे कुछ लोग ही हैं जिन्होंने जिंदगी लिखा और कविता को जिया है.
अमृता के लिए इमरोज़ उनके घर की छत थे तो वहीं साहिर छत के ऊपर का खुला आसमान. अमृता ने साहिर से प्यार किया और इमरोज ने अमृता से. फिर इन तीनों ने मिलकर इश्क की वह दास्तां लिखी जो अधूरी होते हुए भी मुक़्कमल हो गई. आइए आज अमृता जी की जयंती पर उनसे और साहिर से जुड़ा एक दिलचस्प किस्सा बताते हैं. अमृता और साहिर लुधियानवी की मुलाकात साल 1944 में हुई थी. पहली मुलाकात के दौरान दोनों ही लाहौर के प्रीत नगर में स्थित मुशायरे में पहुंचे थे. अमृता और साहिर के बीच कोई अनकहा रिश्ता पहली नजर से ही था. पहली बार मिलते ही साहिर और अमृता एक दूसरे को दिल दे बैठे. हालांकि दोनों ने कभी इस बात का इजहार नहीं किया. दोनों के बीच की खामोशी बहुत कुछ बयां कर गई.
चंदर वर्मा और डॉ सलमान आबिद की किताब 'मैं साहिर हूं" में साहिर और अमृता के बीच का एक दिलचस्प किस्सा बयां किया गया है. किताब में साहिर ने अमृता के लिए लिखा है हम जब भी करीब होते, मैंने ये बहुत बार महसूस किया कि अमृता बहुत शिद्दत से मेरे चेहरे और उंगलियों पर गौर करती थी. मुझे कभी कभी ये भी गुमान होता था कि शायद मेरे जाने के बाद वो मेरे तसव्वुर में रहती होगी. एक बार मुझे बहुत तेज बुखार हुआ और इसी हालत में मैं अमृता के घर पहुंच गया. पूरे जिस्म में तेज दर्द हो रहा था और सांस लेने में भी बहुत दिक्कत हो रही थी. मेरे मना करने पर भी अमृता ने मुझे कुर्सी पर बैठी हालत में ही मेरे पीठ, छाती, गले और माथे पर बिना रुके बाम लगाती रही. जिस मोहब्बत से अमृता ने बाम लगाया मेरा आधा दर्द ऐसे ही छूमंतर हो गया.
साहिर ने आगे कहा कि ये एहसास उनके लिए काफी नया था. इस वाकये के बाद मै बहुत देर तक रुमानी कैफियत में रहा और बहुत खुश था. इसी रुमानी एहसास के चलते मैंने अमृता पर नज्म लिख दी. ये नज्म थी...
मैंने जिस वक्त तुझे पहले पहल देखा था
तू जवानी का कोई ख़्वाब नज़र आई थी
हुस्न का नग़्म-ए-जावेद हुई थी मालूम
इश्क़ का जज़्बा-ए-बेताब नज़र आई थी
ऐ तरब-ज़ार जवानी की परेशाँ तितली
तू भी इक बू-ए-गिरफ़्तार है मालूम न था
तेरे जल्वों में बहारें नज़र आती थीं मुझे
तू सितम-ख़ुर्दा-ए-इदबार है मालूम न था
साहिर से पहली मुलाकात
दकियानूसी, पिछड़े और सामंती देश में प्रेम, विवाह, रिश्तों और साथ की नई परिभाषा गढ़ने वाली महान लेखक अमृता प्रीतम की आज 103वीं जयंती है. उनका जन्म 31 अगस्त 1919 को ब्रिटिश भारत में गुजरांवाला, पंजाब (जो अब पाकिस्तान में है) में हुआ था. आइये जानते हैं कैसे हुई थी उनकी साहिर से मुलाकात
इश्क कब किससे हो जाए कौन कह सकता है. अमृता को भी कहां मालूम था कि शादी शुदा होते हुए भी वो साहिर को दिल दे बैठेंगी. साल 1944 में लाहौर में स्थित प्रीत नगर में एक मुशायरे के दौरान दोनों की मुलाकात हुई थी. इस के बाद दोनों के मुलाकातों का सिलसिला शुरू हो गया. दोनों के बीच एक अलग सा रिश्का बन गया दोनों घंटों एक दूसरे के पास बैठते तो थे, लेकिन बिल्कुल खामोश होकर. साहिर से इश्क अमृता की आंखों और दिल में था लेकिन उसे ज़बान तक आने में वक्त लग रहा था.
अपनी आत्मकथा ‘रसीदी टिकट’ की भूमिका में अमृता प्रीतम लिखती हैं, "साहिर चुपचाप मेरे कमरे में सिगरेट पिया करता. आधी पीने के बाद सिगरेट बुझा देता और नई सिगरेट सुलगा लेता. जब वो जाता तो कमरे में उसकी पी हुई सिगरेटों की महक बची रहती. मैं उन सिगरेट के बटों को संभाल कर रखतीं और अकेले में उन बटों को दोबारा सुलगाती. जब मैं उन्हें अपनी उंगलियों में पकड़ती तो मुझे लगता कि मैं साहिर के हाथों को छू रही हूँ. इस तरह मुझे सिगरेट पीने की लत लगी."
महज 16 वर्ष की उम्र में हुई शादी
अपनी कविताओं से सबके दिलों में बसने वाली अमृता की शादी महज 16 साल की उम्र में लाहौर के अनारकली बाजार के एक प्रमुख होजरी व्यापारी और एक संपादक के बेटे प्रीतम सिंह से हुई थी. प्रीतम सिंह से शादी के बाद ही उनके नाम के आगे पति का नाम यानी प्रीतम शब्द जुड़ा था. हालांकि इस शादी में उन्हें कभी वो प्यार नहीं मिला जिसकी उन्हें तलाश थी. अमृता ने 33 सालों तक इस शादी को निभाा और पति प्रीतम सिंह के साथ 33 साल बिताए थे. इसी बीच अमृता के जीवन में शायरी के जादूगर और गज़लों के सरताज साहिर लुधियानवी का आना हुआ. कुछ लोगों को मानना है कि साहिर ही वो वजह थे जिसके कारण अमृता और प्रीतम सिंह का रिश्ता टूटा था, दोनों 1960 में अलग हो गए थे.