Explained: छह महीने बाद असरदार नहीं रहती कोरोना वैक्सीन, AIIMS की रिसर्च में खुलासा
AIIMS Research & Anti-Corona Vaccine: अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (All India Institute Of Medical Sciences) का एक शोध (Research) बताता है कि 6 महीने बाद एंटी कोरोना वैक्सीन का खास असर नहीं रहता.
AIIMS Research Anti-Corona Vaccine: कोरोना वायरस (Corona) और उसकी वैक्सीन को लेकर पूरी दुनिया में आए दिन नए-नए खुलासे होते रहते है. अब नई दिल्ली के अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (AIIMS) के एक शोध (Research) में पता चला है कि छह महीने बाद एंटी कोरोना वैक्सीन (Anti-Corona Vaccine) का असर इंसानी शरीर पर उतना प्रभाव नहीं छोड़ पाता है. इसका असर होना कम हो जाता है. एम्स (AIIMS) डॉक्टर्स (Doctors) के मुताबिक एक स्टडी में यह निकलकर सामने आया है कि कोराना की दोनों वैक्सीन लगाने के बाद लगभग दो सप्ताह से लेकर दो महीने तक यह वैक्सीन ओमिक्रोन (Omicron) से बचाव में मदद करती है. इसका असर इस अवधि में 52.2 फीसदी तक रहता है.
हजार से अधिक पर हुआ शोध
AIIMS ने यह शोध अपने ही हेल्थ वर्कर्स (Health Workers) पर किया. इस शोध के लिए हेल्थ वर्कर्स को इसलिए चुना गया कि लगातार संक्रमितों के संपर्क में रहने से इनके संक्रमित होने का खतरा अधिक होता है ताकि शोध के नतीजे अधिक कारगर साबित हों. शोध में एम्स में ओमिक्रोन संक्रमण (Infection) के दौरान अस्पताल के 11,474 हेल्थ वर्कर्स को शोध विषय बनाया गया. इनमें मेडिकल के छात्र, रेजिडेंट डाक्टर, फैकल्टी के सीनियर डॉक्टर, नर्सिंग कर्मचारी, पैरामेडिकल स्टाफ सहित अन्य वर्कर्स शामिल रहे. इसका उद्देश्य दोबारा हुए ओमिक्रोन संक्रमण पर इस वैक्सीन के प्रभाव को नोट करना था. इसमें शामिल 83 फीसदी हेल्थकर्मी टीके के दोनों डोज ले चुके थे. इन 88 फीसदी ने कोवैक्सीन (Covaxin)और 11 फीसदी ने कोविशील्ड (Covishield) टीका लिया था.
ओमिक्रोन के संक्रमण के वक्त एम्स के 2527 हेल्थ वर्कर्स संक्रमित हुए. कोरोना की पहली व दूसरी लहर के दौरान लगभग 28.40 फीसदी (1007) हेल्थ वर्कर्स फिर से ओमिक्रोन संक्रमण की चपेट में आए थे. इस दौरान जो हेल्थ कर्मी कोरोना के संक्रमण से बच गए थे. उनमें से 1520 हेल्थ वर्कर्स यानि19.17 फीसदी भी ओमिक्रोन संक्रमण के शिकार हुए थे. इनमें से 98.4 फीसदी में हल्का और 1.6 फीसदी हेल्थ कर्मचारियों में मिड लेवल का संक्रमण पाया गया था.
ये निकला शोध का नतीजा
अध्ययन में पाया गया कि जिन हेल्थ कर्मियों को वैक्सीन की दोनों डोज लिए 14 से लेकर 60 दिन हुए थे, उनमें ओमिक्रोन का संक्रमण कम पाया गया. इन पर कोरोना से बचाव के लिए वैक्सीन का असर 52.5 फीसदी कारगर साबित हुआ. उधर दूसरी तरफ जिन्हें वैक्सीन लिए 61 से 120 दिन हुए थे, उन पर टीके का असर 35.2 फीसदी रहा, जबकि 121 से 180 दिन के बीच वैक्सीन की असर हेल्थ कर्मीयों पर 29.4 फीसदी रहा.
स्टडी में यह देखा गया कि जैसे-जैसे वक्त बीतता जाता है टीके (Vaccine) के असर में भी कमी आती जाती है. इस वजह से छह महीने (Six Month) बाद यह वैक्सीन ओमिक्रोन के खिलाफ उतनी कारगर नहीं रहती है. छह महीने बाद वैक्सीन का खास असर नहीं पाया गया. इसलिए जिन हेल्थ कर्मियों को वैक्सीन लगाए हुए छह महीने से अधिक का वक्त बीत चुका था वो ओमिक्रोन से अधिक संक्रमित पाए गए.
लांसेट में भी है इसका जिक्र
अंतरराष्ट्रीय मेडिकल जर्नल लांसेट रीजनल हेल्थ साउथ-ईस्ट एशिया (The Lancet Regional Health- Southeast Asia) ने भी एम्स की इस स्टडी को गंभीरता से लिया गया है और अपने जर्नल में इसे प्रकाशित किया है. उधर इस स्टडी में शामिल मेडिसिन विभाग के एसोसिएट प्रोफेसर डा. अरविंद कुमार (Arvind Kumar) का कहना है कि इस स्टडी से साफ हो गया है कि यदि वैक्सीन लगाए तीन से चार महीने का वक्त बीत चुका है तो जोखिम भरे हालातों में काम करने वाले हेल्थ कर्मियों सतर्कता डोज लेनी ही चाहिए, लेकिन इसमें इस बात का भी ध्यान रखा जाना चाहिए कि नियत वक्त से पहले ये डोज नहीं लेनी चाहिए. स्टडी में यह भी पाया गया कि अल्फा, डेल्टा, गामा या किसी अन्य तरह के वैरिएंट (Variant) का ओमिक्रोन संक्रमण होने के बाद शरीर की प्रतिरोधक क्षमता बेहतर हो जाती है.
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