पिछले कुछ महीनों में कांग्रेस, आप सहित कई विपक्षी पार्टियों ने बीजेपी पर केंद्रीय जांच एजेंसियों (सीबीआई) के दुरुपयोग का आरोप लगाया है. अब इसी लिस्ट में एआईएडीएमके का नाम भी जुड़ गया है. दरअसल हाल ही में स्टालिन सरकार ने अपने राज्य में केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) की सामान्य सहमति वापस ले ली है. ऐसा फैसला लेने वाला तमिलनाडु देश का 10वां राज्य होगा.
सामान्य सहमति वापस लेने का मतलब है कि अब सीबीआई को राज्य में किसी भी मामले में जांच करने के लिए तमिलनाडु सरकार की मंजूरी लेनी होगी. तमिलनाडु सरकार चाहे तो सीबीआई के जांच की मांग को खारिज भी कर सकती है.
गृह मंत्रालय की तरफ से जारी किए गए आदेश में लिखा गया, 'दिल्ली स्पेशल पुलिस एस्टेब्लिशमेंट एक्ट, 1946 के तहत अब सीबीआई को तमिलनाडु में किसी भी मामले की जांच करने से पहले सरकार से अनुमति लेनी होगी.
बता दें कि स्टालिन सरकार के इस फैसले के एक दिन पहले ही प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने एक्साइज मंत्री सेंथिल बालाजी को मनी लॉन्ड्रिंग के मामले में गिरफ्तार किया था.
तो क्या पहले बिना अनुमति के जांच कर सकती थी सीबीआई?
सीबीआई यानी केंद्रीय जांच एजेंसिया भले ही केंद्र सरकार के अधीन है, लेकिन किसी मामले की जांच तभी कर सकती है जब उन्हें हाईकोर्ट, सुप्रीम कोर्ट या केंद्र से आदेश मिलता है. अगर मामला राज्य का तो राज्य सरकार से इस जांच की अनुमति लेनी होती है.
जिसका मतलब है कि सामान्य सहमति वापस लिए जाने से पहले भी सीबीआई तमिलनाडु में राज्य सरकारी की अनुमति लेती थी. लेकिन पहले स्टालिन सरकार ने सामान्य सहमति दी हुई थी, इसलिए उस वक्त जांच करने की अनुमति आसानी से मिल जाती थी.
हालांकि अगर किसी मामले की जांच के लिए सुप्रीम कोर्ट या हाई कोर्ट आदेश देती है, तो ऐसी स्थिति में जांच एजेंसी को राज्य सरकार की अनुमति लेने की जरूरत नहीं होगी.
किन राज्यों में लगी है सीबीआई की एंट्री पर बैन
तमिलनाडु के पहले झारखंड, पंजाब, तेलंगाना, पश्चिम बंगाल, मेघालय, छत्तीसगढ़, केरल, मिजोरम और राजस्थान में केंद्रीय जांच एजेंसी की एंट्री पर रोक लगाई जा चुकी है.
महाराष्ट्र में भी जब महाविकास अघाड़ी की सरकार थी उस वक्त भी सीबीआई की एंट्री बैन की गई थी. हालांकि पिछले साल जैसे ही सत्ता बदली राज्य सरकार ने एक बार फिर सीबीआई को 'सामान्य सहमति' दे दी थी.
इन राज्यों में बैन के बाद भी हो रहे हैं जांच
वर्तमान में बंगाल और झारखंड दो ऐसे राज्य हैं जहां राज्य सरकार की अनुमति के बिना भी सीबीआई जांच कर रही है. बंगाल में शिक्षक नियुक्ति घोटाला की जांच सीबीआई और ईडी दोनों कर रहे हैं. यह जांच भी राज्य सरकार की मर्जी के खिलाफ है. यहां बाध्यता ये है कि इस जांच का आदेश सीधा कलकत्ता हाईकोर्ट ने दिया है.
स्टालिन सरकार को क्यों लेना पड़ा ये फैसला
दरअसल बीते बुधवार यानी 14 जून को तमिलनाडु के बिजली और आबकारी मंत्री वी. सेंथिल बालाजी को प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने तमिलनाडु के परिवहन विभाग में नौकरियों के बदले नकदी घोटाले के मामले में बुधवार को गिरफ्तार किया था.
बालाजी तमिलनाडु में मुख्यमंत्री एमके स्टालिन नीत सरकार में केंद्रीय एजेंसी की इस तरह की कार्रवाई का सामना करने वाले पहले मंत्री हैं. इस कार्रवाई के बाद मुख्यमंत्री स्टालिन कहा कि जब बालाजी ने जांच में पूरी तरह सहयोग का आश्वासन दिया है तो लंबी पूछताछ की क्या जरूरत है. उन्होंने कहा कि क्या ईडी की इस तरह की अमानवीय कार्रवाई उचित है. बालाजी 2014-15 में अपराध के समय अन्नाद्रमुक में शामिल थे और उस समय परिवहन मंत्री थे.
सीबीआई एंट्री बैन पर बीजेपी ने क्या कहा
तमिलनाडु बीजेपी अध्यक्ष के अन्नामलाई स्टालिन सरकार के इस कदम के बाद कहा कि सीएम ने ऐसा फैसला एजेंसी की जांच के "डर" के चलते लिया है. उन्होंने आरोप लगाया कि सीएम स्टालिन पर चेन्नई मेट्रो में ठेका देने के लिए एक कंपनी से 200 करोड़ रुपये लिए हैं.
अन्नामलाई ने एएनआई से बात करते हुए कहा-
सीबीआई के दुरुपयोग के कैसे और कितने आरोप
पिछले कुछ महीनों से विपक्ष कई बार ये दोहरा नजर आया है कि केंद्रीय एजेंसियों को मोदी सरकार विपक्ष को 'काबू' में करने के लिए इस्तेमाल कर रही है.
कुछ दिन पहले ही दिल्ली के पूर्व उप-मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया की गिरफ्तारी चर्चा में रही. सीबीआई ने ये गिरफ्तारी राजधानी दिल्ली की साल 2021 की शराब नीति में अनियमितताओं के सिलसिले में की थी. सिसोदिया की गिरफ्तारी के बाद आम आदमी पार्टी सहित कई विपक्षी दलों ने इस जांच को राजनीति से प्रेरित बताया है. पार्टियों ने कहा कि केंद्र सरकार सिर्फ उन्ही राज्यों के मंत्रियों और नेताओं को निशाना बना रही है जिस राज्य में विपक्षी पार्टियों की सरकार है.
ठीक इसी तरह पिछले कुछ दिनों से छत्तीसगढ़ में भी एक और केंद्रीय जांच एजेंसी यानी ईडी काफी ज्यादा सक्रिय है. इस राज्य में कांग्रेस सरकार के मंत्रियों और कई नौकरशाहों को अक्टूबर 2022 से ही कुछ-कुछ दिनों के अंतराल पर पूछताछ के लिए समन किया जा रहा है और कई गिरफ्तारियां की जा चुकी हैं. ये मामला साल 2020 में हुए कोयला घोटाले से जुड़ा हुआ है.
विपक्षी राजनेताओं पर कसता शिकंजा
साल 2022 के मार्च में लोकसभा में वित्त मंत्रालय ने बताया था कि साल 2004 से 2014 तक ईडी ने 112 जगहों पर छापेमारी की और 5346 करोड़ की संपत्ति जब्त की गई.
साल 2014 से लेकर 2022 के आठ सालों के बीजेपी के शासनकाल में ईडी ने 3010 रेड की और लगभग एक लाख करोड़ की संपत्ति अटैच की गई.
राजनेताओं के खिलाफ ईडी के मुकदमों के आंकड़े
'इंडियन एक्सप्रेस' की साल 2022 में छपी एक रिपोर्ट के अनुसार पिछले आठ सालों में राजनीतिक लोगों के खिलाफ ईडी के मामले चार गुना बढ़े हैं.
वहीं साल 2014 से लेकर 2022 के बीच ईडी 121 बड़े राजनेताओं से जुड़े मामलों की जांच कर रही है, जिनमें से कुल 115 नेता विपक्षी पार्टियों से हैं यानी कुल जांच कर रहे राजनेताओं का 95 फीसदी मामले विपक्षी नेताओं के ख़िलाफ़ हैं.
अब यूपीए की बात करें तो साल 2004 से लेकर 2014 के बीत ईडी ने 26 नेताओं की जांच की थी जिसमें 14 नेता विपक्षी पार्टियों के थे.
दिसंबर 2022 में लोकसभा में केंद्र सरकार ने कहा कि हमारे कोई ऐसा आंकड़ा डेटा नहीं है जो इस बात की जानकारी देता है कि कितने और किस पार्टी के सांसदों और विधायकों के खिलाफ केस दर्ज किए गए हो. उन्होंने आगे कहा कि हम आम मामले और राजनेताओं के मामलों को बिल्कुल अलग तरीके से नहीं देखते हैं.'
राजनेताओं के खिलाफ सीबीआई के मुकदमों के आंकड़े
यूपीए के दस सालों की सरकार में कुल 72 राजनेता सीबीआई के जांच के दायरे में आए थे. इनमें से 43 नेता विपक्ष के थे यानी लगभग 60 प्रतिशत.
वहीं साल 2014 से 2022 तक एनडीए सरकार में 124 नेता सीबीआई के जांच के दायरे में आए और इनमें से 118 नेता विपक्षी पार्टी के थे यानी 95 फ़ीसदी विपक्ष के नेता है.
इन विपक्षी नेताओं पर भी सीबीआई और ईडी शिकंजा कस चुका है
सत्येंद्र जैन: आम आदमी पार्टी के नेता सत्येंद्र जैन को ईडी ने कथित मनी लॉन्ड्रिंग मामले में पिछले साल मई में गिरफ़्तार किया था और वह तबसे जेल में बंद हैं.
संजय राउत: शिवसेना के नेता संजय राउत को अगस्त 2022 को मुंबई में प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने गिरफ़्तार किया था. संजय राउत पर मुंबई के गोरेगांव में सिद्धार्थ नगर के एक चॉल में 672 फ़्लैटों के पुनर्निमाण के मामले में ज़मीन के हेरफेर का आरोप था. हालांकि गिरफ्तारी के लगभग तीन महीने बाद 10 नवंबर 2022 को उन्हें सशर्त ज़मानत दी गई.
अनिल देशमुख: नवंबर 2021 में महाराष्ट्र के पूर्व गृह मंत्री और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) के वरिष्ठ नेता अनिल देशमुख को प्रीवेंशन ऑफ़ मनी लॉन्ड्रिंग एक्ट की धारा 19 के तहत गिरफ़्तार किया था.
नवाब मलिक: इसके अलावा राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के नेता नवाब मलिक को भी 24 फ़रवरी 2021 को ईडी ने गिरफ़्तार कर जेल भेज दिया था.