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Explained: आखिर क्यों आर्टेमिस-1 मून मिशन लॉन्च की दूसरी कोशिश भी हुई नाकाम? जानिए इससे जुड़ी हर बड़ी बात

NASA Moon Mission Artemis- I:आर्टेमिस-1 मून मिशन रॉकेट के दूसरे लॉन्च की कोशिशों में भी नाकाम रहा है. पहली बार की तरह दूसरी बार भी फ्यूल लीक होने से ये स्पेस में नहीं जा पाया.नासा के लिए ये अहम है.

NASA's Artemis-1 Rocket Launch 2 Attempt Failed: फ्लोरिडा (Florida) में कैनेडी स्पेस सेंटर (Kennedy Space Center) में ग्राउंड टीमों ने शुक्रवार शाम को नासा (NASA) के बड़े नेक्स्ट जेनरेशन के मून रॉकेट के दूसरी बार चंद्रमा (Moon) पर पहली परीक्षण उड़ान पर भेजने की तैयारी पूरी कर ली थी. पांच दिन पहले तकनीकी परेशानी की वजह से इस रॉकेट को चांद पर भेजने की पहली कोशिश नाकामयाब रही थी. हालांकि शनिवार को भी नासा का आर्टेमिस-1 (Artemis- I) मून मिशन रॉकेट दूसरे लॉन्च की कोशिश से पहले ही फ्यूल लीक की चपेट में आ गया.

अमेरिका के लिए नासा आर्टेमिस-1 मून मिशन नाक का सवाल है. इसके जरिए वह स्पेस में अपनी धाक जमा. चीन -रूस सहित दुनिया के अन्य देशों को पीछे छोड़ना चाहता है. रूस स्पेस रेस में अमेरिका का तगड़ा प्रतियोगी रहा है. आज हम इसी स्पेस रेस में दुनिया पर धाक जाने की कोशिश के लिए तैयार नासा के आर्टेमिस-1 (Artemis- I) मून मिशन के बारे में तफ़सील से जानेंगे कि इस मिशन के जरिए आखिर इंसान चांद पर जाने को इतना उतावला क्यों हैं ? शुरुआत आर्टेमिस-1 लॉन्च सिस्टम- एसएलएस (Space Launch System- SLS) रॉकेट पर ओरियन स्पेस कैप्सूल के अंतरिक्ष में उड़ान भरने की कोशिशों से करते हैं. 

कैसी तैयारी थी दूसरी कोशिश की

नासा (NASA) के अधिकारियों ने शनिवार की सुबह बताया था कि आर्टेमिस-1 (Artemis- I) मून मिशन के मैनेजर्स ने आज दोपहर तक रॉकेट लॉन्च करने की पुख्ता तैयारियां की थीं. 322 मीटर लंबे इस 32-मंजिला स्पेस लॉन्च सिस्टम- एसएलएस (Space Launch System- SLS) रॉकेट और इसके ओरियन स्पेस कैप्सूल (Orion Space Capsule) को चांद की कक्षा में भेजा जाना था. इसके साथ ही 10 छोटे सैटेलाइट्स यानी क्यूबसैट्स (CubeSats) भी स्पेस में रवाना होने थे. इस रॉकेट के जरिए चंद्रमा पर बगैर चालक दल का ऑरियन स्पेसक्राफ्ट रवाना किया जाना है. ये स्पेसक्रॉफ्ट एक महीने से भी अधिक वक्त के लिए वहां रहेगा.

नासा के अधिकारियों के मुताबिक इसके कामयाब होने से नासा (NASA) के चंद्रमा से मंगल (Mars)आर्टेमिस (Artemis Program) प्रोग्राम को शुरू करने को भी हरी झंडी मिलेगी. गौरतलब है कि आर्टेमिस-1 मून मिशन से आधी सदी पहले अपोलो लूनर मिशन (Apollo Lunar Missions) के तहत चांद पर अंतरिक्ष यान (Space Craft) भेजा गया था. ये संयुक्त राज्य (US) का तीसरा मानव अंतरिक्ष यान (Human Spaceflight) प्रोग्राम था. इसे प्रोजेक्ट अपोलो के तौर पर भी जाना जाता है. नेशनल एरोनॉटिक्स एंड स्पेस एडमिनिस्ट्रेशन के तैयार किए गए इस प्रोग्राम के जरिए 1968 से 1972 तक चंद्रमा की सतह पर इंसान को भेजने की तैयारी की गई और इसमें ये कामयाब भी हुआ. इसी के जरिए 1969 पहली बार इंसान ने चंद्रमा की सतह पर पहला कदम पर कदम रखा था.

मून मिशन रॉकेट लॉन्च पहली कोशिश नाकाम

स्पेस सेंटर के डिप्टी प्रोग्राम  मैनेजेर जेरेमी (Jeremy) ने शुक्रवार को बताया था कि गुरुवार रात किए गए टेस्ट से पता चला कि तकनीशियनों ने फ्यूल लीक करने वाली एक लाइन की मरम्मत की है. आर्टेमिस मिशन मैनेजर माइक सराफिन (Mike Sarafin) ने गुरुवार रात बताया था कि इसी वजह से नासा का इस रॉकेट को 5 दिन पहले सोमवार को चंद्रमा पर लॉन्च करने वाला पहला ऑपरेशन टाल दिया था. इसी वजह से नासा ने प्रारंभिक लॉन्च ऑपरेशन को रोकने के फैसले में लिया था.

दरसअसल सोमवार 29 अगस्त को नासा ने फ्लोरिडा के तट के  कैनेडी स्पेस सेंटर से इसे छोड़ने की पूरी तैयारी कर ली थी, लेकिन आखिरी वक्त में रॉकेट के इंजन के टेम्प्रेचर सेंसर में आई खराबी, इन्सुलेशन फोम में आई कुछ दरारें, हाइड्रोजन रिसाव और खराब मौसम जैसी कई ऐसी वजहें रही जिससे इसे नहीं छोड़ा गया. काउंट डाउन  रोकने के साथ ही इसकी उड़ान पर ब्रेक लगा दिए गए थे.

दूसरी कोशिश की दो घंटे की लॉन्च विंडो

केप कैनावेरल (Cape Canaveral) में यूएस स्पेस फोर्स के लॉन्च वेदर ऑफिसर मेलोडी लोविन (Melody Lovin) ने बताया कि दूसरी कोशिश में इसे लॉन्च करने के लिए दो घंटे की लॉन्च विंडो रखी गई थी. लॉन्च विंडो (Launch Window) से मतलब किसी खास मिशन को लॉन्च करने के वक्त से है. दरअसल दो घंटे के अंदर इसे स्पेस के लिए रवाना कर दिया जाना था. उन्होंने कहा कि इस लॉन्च के लिए पहले ही पूर्वानुमान लगा लिया गया था और इसके लिए 70 फीसदी परिस्थितियां अनुकूल थी. इस्टर्न डे लाइट टाइम (EDT) के मुताबिक इसे दोपहर 2.17 मिनट पर शनिवार को लॉन्च करना था, लेकिन फिर वहीं दिक्कत आ गई. अगर इंडियन स्टैंडर्ड टाइम (IST) के मुताबिक लिया जाए तो ये रात 11.47 का वक्त है.

इससे पहले लोविन का कहना था कि शनिवार को लॉन्च की दूसरी  कोशिश के लिए मौसम भी बहुत अच्छा दिख रहा था. उनका कहना था कि मौसम या किसी भी वजह से किसी भी दिन लॉन्च में रुकावट आने की संभावना लगभग तीन में से एक बार की ही थी. लोविन कहती हैं कि कि लॉन्च विंडो के लिए मौसम के किसी भी तरह से शो-स्टॉपर होगा यानी रुकावट पैदा करने की संभावना भी नहीं थी, लेकिन उनकी ये उम्मीद नामउम्मीदी में बदल गई जब  आर्टेमिस-1 मून मिशन के रॉकेट लॉन्च से पहले फ्यूल लीक की समाधान नहीं हो सका.

इस मिशन के मैनेजर्स ने भी माना है कि इंजन के मुद्दे के साथ-साथ एक अलग परेशानी भी इस रॉकेट लॉन्च को खतरे में डाल रही थी. रॉकेट के इन्सुलेट फोम में दरारें थी लेकिन उन्होंने स्वीकार किया कि अन्य परेशानियों भी इस रॉकेट के लॉन्च में देरी का इशारा कर रही है. उन्होंने बताया कि इसे स्पेस में भेजने के लिए इगनाइट करने से पहले मेन इंजनों में का ठंडा होने जरूरी है. बिल्कुल वैसे ही जैसे इसमें (-420) डिग्री फ़ारेनहाइट पर बहता हाइड्रोजन फ्यूल (Hydrogen Fuel) होता है. ऐसा न होने पर इससे होने वाली क्षति का नतीजा ये होता है कि अचानक से इंजन बंद हो सकता है और उड़ान रद्द हो सकती है. हालांकि, नासा ने बाद में पोस्ट किया कि लॉन्च नियंत्रकों ने रिसाव के बाद तरल हाइड्रोजन के प्रवाह को कोर चरण में फिर से शुरू कर दिया.

हालांकि इस मून मिशन के रॉकेट के स्पेस में लॉन्चिंग की दूसरी कोशिश की नाकामयाबी भी लोगों के उत्साह को नहीं रोक पाई. इस अंतरिक्ष प्रक्षेपण प्रणाली (Space Launch System) रॉकेट को ऊंची उड़ान देखने के लिए हजारों लोगों की भीड़ ने तट को जाम कर दिया. लंबे श्रम दिवस अवकाश सप्ताहांत की वजह से स्थानीय अधिकारियों को पहले ही भारी भीड़ की उम्मीद थी. ग्रीक पौराणिक कथाओं में अपोलो (Apollo) की जुड़वां बहन के नाम पर रखे गए 4.1 अरब डॉलर की परीक्षण उड़ान नासा के आर्टेमिस कार्यक्रम (Artemis Program) की तरफ पहला कदम है.

आखिर क्या है आर्टेमिस-1

मिशन आर्टेमिस- I ( Artemis- I) संयुक्त राज्य की अंतरिक्ष एजेंसी नासा की अगुवाई में एक रोबोट और मानव चंद्रमा अन्वेषण प्रोग्राम है. इस मिशन में नासा के साथ यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी, जापान एयरोस्पेस एक्सप्लोरेशन एजेंसी और कनाडाई अंतरिक्ष एजेंसी भी शामिल हैं. मिशन आर्टेमिस- I एसएलएस रॉकेट और ओरियन कैप्सूल दोनों के लिए पहला सफर है. इसे बोइंग कंपनी (Boeing Co-BA.N) और लॉकहीड मार्टिन कॉर्प ( Lockheed Martin Corp -LMT.N) ने नासा के साथ अनुबंधों के तहत बनाया गया है.

चंद्रमा के चारों ओर एसएलएस (Space Launch System- SLS) रॉकेट और इसके ओरियन कैप्सूल को लॉन्च किया जाना है और ये  37 दिनों बाद इस सफर से वापस लौटेगा. इसमें ओरियन (Orion) एक खोज यात्रा वाहन के तौर पर काम करेगा जो चालक दल को अंतरिक्ष में ले जाएगा. आपातकालीन स्थिति आने पर वह सुरक्षित निकास की सुविधा देगा. इसके साथ ही अंतरिक्ष यात्रा के दौरान चालक दल को सुरक्षित रखेगा और गहरे अंतरिक्ष के वेग से दोबारा सुरक्षित वापसी संभव करेगा. यह नासा के नए भारी-भरकम रॉकेट, स्पेस लॉन्च सिस्टम पर लॉन्च किया जा रहा है. हालांकि इस मून मिशन के स्पेस में लॉन्च करने की नासा की दोनों ही कोशिशों तकनीकी खामी की वजह से मुक्कमल नहीं हो पाई हैं. 

ये स्पेसक्रॉफ्ट की स्पेस में बगैर ड्राइवर की उड़ान है. हालांकि इस उड़ान के बाद साल 2024 के मिशन में इसमें अंतरिक्ष (Astronauts) यात्री जाएंगे.अभी इसे उसी तरह से बनाया गया है और इसलिए इसमें तीन पुतले (Mannequins) भेजे जा रहे हैं जो पूरी तरह से इंसान जैसे बनाए गए हैं. इन पुतलों में दो फिमेल और एक मेल की तरह डिजाइन किया गया है. यदि ये दो पहले आर्टेमिस मिशन कामयाब होते हैं, तो नासा का लक्ष्य अंतरिक्ष यात्रियों को चंद्रमा की सतह पर (Lunar Surface) पर फिर से भेजना है. इसमें साल 2025 की शुरुआत में चंद्र सतह पर पैर रखने वाली पहली महिला भी शामिल होंगी, हालांकि कई विशेषज्ञों का मानना ​​​​है कि  इस मिशन की समय सीमा कुछ साल आगे  खिसकने की संभावना है. नासा ने चंद्रमा के नजदीक जाने से पहले उसकी सतह से 60 मील ऊपर ओरियन उपग्रह से परीक्षण की योजना बनाई है 

अपोलो मिशन से अलग है मिशन आर्टेमिस

अपोलो मिशन से बिल्कुल अलग नासा की चंद्रमा के लिए इन नई उड़ानों का मकसद चांद की सतह और उसकी कक्षा में लंबा, स्थायी बेस बनाना है. जो आगे चलकर आखिरकार मंगल (Mars) पर मानव अभियानों को साकार करेगा. इस दिशा में नासा का पहला कदम स्पेस लॉन्च सिस्टम है. ये अपोलो युग (Apollo Era) के शनि वी रॉकेट (Saturn V Rocket) के बाद से अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा का अभी तक का सबसे बड़ा वर्टिकल लॉन्च सिस्टम-वीएलसी (Vertical Launch System-VLS)  है. वीएलएस समुद्री सतह पर संचालन के लिए डिज़ाइन किए गए सैन्य पोत‍ों या जहाजों और पनडुब्बियों जैसे गतिमान नौसैनिक प्लेटफार्मों से मिसाइलों को रखने और दागने की एक उन्नत प्रणाली है.

माना जा रहा था कि यदि किसी वजह से आर्टेमिस- I मिशन के रॉकेट को स्पेस में भेजने की कोशिश फिर से नाकाम होती है तो नासा आने वाले सप्ताह के सोमवार या मंगलवार को फिर से कोशिश कर सकता है. यही शनिवार को हुआ है और नासा की ये दूसरी कोशिश भी नाकाम हो गई है. एक और लॉन्चिंग की कोशिश से पहले एक रॉकेट अपने लॉन्च टॉवर पर कितनी देर तक रह सकता है इसके लिए भी नियम तय किए गए हैं.

इसके तहत रॉकेट को वापस असेंबली बिल्डिंग (Assembly Building) में ले जाने की जरूरत होगी. असेंबली बिल्डिंग वह जगह है जहां रॉकेट के अलग-अलग भागों को जोड़ा जाता है. जैसा कि स्पेस सेंटर के डिप्टी प्रोग्राम  मैनेजेर जेरेमी पार्सन्स ( Jeremy Parsons) ने बताया कि इस तरह के कदमों में कुछ दिनों या एक सप्ताह की तुलना में अधिक देरी भी हो सकती है. 

गौरतलब है कि एसएलएस (SLS) और ओरियन (Orion) एक दशक से अधिक वक्त से विकसित होने की प्रक्रिया से गुजर रहे हैं. इसमें वर्षों की देरी होने से बैलूनिंग कॉस्ट (Ballooning Costs) बढ़ गई है. बैलूनिंग कॉस्ट का मतलब लोन चुकाने की अनियमित किस्त के तौर पर भुगतान की गई एक बड़ी राशि से है. बीते साल की तुलना में ये कम से कम 37 डॉलर बिलियन तक पहुंच गई है. उधर नासा कह रहा है कि इससे आर्टेमिस प्रोग्राम ने एयरोस्पेस उद्योग के लिए दसियों हजार नौकरियों पैदा की हैं तो और एयरोस्पेस उद्योग की अर्थव्यवस्था में अरबों डॉलर दिए हैं.

इंसान के चंदा मामा तक के सफर के खास पहलू

20 फरवरी 1947 को पहली बार जीवित जीव के तौर पर फल वाली मक्खियां अंतरिक्ष में भेजी गईं थी. इसके बाद चूहे, बंदर से लेकर कुत्ते तक अंतरिक्ष में भेजे गए. पहली बार अंतरिक्ष में जाने का मौका लाइका नाम की कुतिया को 1957 में मिला था हालांकि सोवियत संघ की भेजी इस कुतिया की मौत हो गई थी. NASA अपोलो 11 मिशन के में चांद पर जाने वाला कुत्ता स्नूपी बेहद चर्चा में आया था. बाद में चार्ल्स एम. स्कूल्ट्ज ने अपनी कॉमेडी सीरीज 'पीनट्स' में इस कुत्ते को जगह दी. 

आज से 53 साल पहले 20 जुलाई 1969 को अमरीकी अंतरिक्ष यात्री नील आर्मस्ट्रॉन्ग चंद्रमा पर पर कदम रखने वाले पहले इंसान थे तो 61 साल पहले यूरी गागरिन 12 अप्रैल, 1961 को अंतरिक्ष में जाने वाले पहले शख्स थे.

साल 1969 से 1972 तक 6 अपोलो लूनर मिशनों के दौरान 12 अंतरिक्ष यात्री चंद्रमा का सफर पूरा कर धरती पर लौट आए हैं. यह चंद्रमा की सतह पर मनुष्यों के कदम रखने वाला इकलौता अंतरिक्ष उड़ान (Spaceflights) मिशन  था. हालांकि अमेरिका और सोवियत संघ के शीत युद्ध के युग में अपोलो की अंतरिक्ष दौड़ में रुकावट आई. लेकिन नासा के 1969 के 50 साल बाद के नए लूनर मिशन का फोकस विज्ञान पर अधिक केंद्रित है. इसमें वह अंतरराष्ट्रीय साझेदारी के तहत यूरोप, जापान और कनाडा की अंतरिक्ष एजेंसियों को साथ लेकर चल रहा है. स्पेसएक्स (Spacex) जैसे वाणिज्यिक रॉकेट उद्यम इसी का एक उदाहरण हैं.

नासा का मिशन आर्टेमिस-1 स्पेसक्राफ्ट ‘ओरियन’ इंसान की जगह बिल्कुल इंसान की तरह डिजाइन किए तीन पुतलों को लेकर 3 सितंबर 2022 को चंद्रमा के चक्कर लगाने के सफर पर रवाना होने वाला था. इस आर्टेमिस-1 मून मिशन की खास बात है कि इस मिशन में महिला इंजीनियर्स की भागीदारी 30 फीसदी है.

इन हाईटेक पुतलों में दो पुतले औरतों और एक बिल्कुल आदमी जैसे बनाए गए हैं.जर्मनी के ऐरोस्पेस सेंटर डीएलआर के बनाए पुतलों के समूह फैंटम्स में हेल्गा, जोहर और मूनिकिन कैंपोस शामिल हैं. इसमें कैंपोस पुरुष है. होल्गा और जोहर को स्पेस में औरतों के शरीर पर पड़ने वाले रेडिएशन के प्रभाव को चेक करने के लिए बनाया गया. जोहर को रेडिएशन से बचाव की जैकेट एस्ट्रोरेड से लैस किया गया है. 

इसके साथ ही आर्टेमिस-1 में ओरियन की सीट के नीचे पहले 3 दिनों में ही फैल जाने वाले सूखे फ्रिज्ड यीस्ट को रखा जाएगा. जमीन पर लौटने के बाद इसके डीएनए का परीक्षण किया जाएगा.

आर्टेमिस-1 में स्पेस क्राफ्ट में ऑडियो-वीडियो मैसेज भेजने के लिए एमॉजोन का वॉयस अस्सिटेंट कैलिस्टो भी जाएगा. इसके साथ ही इसमें रवाना होगा इसराइल की स्पेस एजेंसी का डेड सी से भेजा पत्थर और ग्रीक की देवी आर्टेमिस की 3 डी रेप्लिका. 

कॉमेडी सीरीज 'पीनट्स जिस पेन से बनी थी उसकी निब, अपोलो 11 मिशन के मेमेंटो (चांद की सतह से लाए छोटे पत्थर) और रॉकेट इंजन का छोटा टुकड़ा भी इस मिशन पर जाएंगे.

अपोलो-14 मिशन की तरह पेड़ों पर रेडिएशन का प्रभाव देखने के लिए आर्टेमिस-1 के सफर में कई नस्ल के पेड़ों के बीज भी शामिल होंगे. गौरतलब है कि नासा ने अपोलो 14 मिशन में बीज अंतरिक्ष में भेजे थे और बाद में इन्हें धरती पर लगाया गया और मून ट्री नाम दिया गया. 

छोटे बच्चों को अंतरिक्ष के बारे में जागरूक करने के लिए बीते दो साल से लीगो समूह (LIGO) नासा के साथ काम कर रहा है. लीगो के बनाए बच्चों के फेवरेट चार लीगो भी मिशन आर्टेमिस-1  के इस सफर का हिस्सा होंगे.

यही नहीं आर्टेमिस-1 में साथ देने वाले सारे देशों के झंडे, पिन और पैच भी इसके साथ जाएंगे. 37 दिनों के बाद  एयरक्रॉफ्ट के वापस आने पर इन्हें इन देशों को दिया जाएगा. नासा के 2024 के आर्टेमिस-2 मिशन में मानव अंतरिक्ष यात्री चांद पर कदम रखे बगैर ही  केवल चांद की कक्षा में चक्कर काटकर लौट आएंगे. साल 2025 के नासा के आर्टेमिस-3 ( Artemis-3 ) मून मिशन में अंतरिक्ष यात्रियों को चंद्रमा (Moon) की सतह पर उतारने की योजना है.

अमेरिका के लिए अहम है आर्टेमिस-1 मून मिशन

अमेरिका और सोवियत संघ में पहले से ही चांद पर धाक जमाने के लिए 60-70 के दशक में सैटेलाइट्स भेजे जाने की होड़ रही. गौरतलब है कि 1961 में सोवियत संघ के अंतरिक्ष यात्री यूरी गागरिन (Yuri Gagarin) अंतरिक्ष में उड़ान भरने वाले पहले शख्स थे. इससे अमेरिका के सोवियत संघ के साथ इस तकनीकी प्रतियोगिता में पीछे रह जाने की आशंकाओं को बल मिला था.

नतीजन गागरिन की उड़ान के एक दिन बाद ही यूएस हाउस कमेटी ऑन साइंस एंड एस्ट्रोनॉटिक्स की एक बैठक में कई कांग्रेसियों ने एक पुरजोर कार्यक्रम के लिए अपना समर्थन देने का वादा किया. इसका नतीजा 8 साल बाद ही 20 जुलाई 1969 को अमरीकी अंतरिक्ष यात्री नील आर्मस्ट्रॉन्ग चंद्रमा पर कदम रखने वाले पहले इंसान बने.

इस स्पेस रेस में भारत भी पीछे नहीं है. देश की स्पेस एजेंसी इसरो (ISRO) ने चंद्रयान-1 चांद पर 25 सितंबर 2009 को पानी की खोज कर डाली. चीन और रूस भी इस स्पेस रेस में पीछे नहीं रहने वाले हैं. उनकी चंद्रमा पर अंतरराष्ट्रीय लूनर  रिसर्च स्टेशन (Internation Lunar Research Station) बनाने की तैयारी में है. इस स्पेस रेस में चीन (China) और रूस (Russia) का गठबंधन अमेरिका सहित दुनिया के कई देशों को रास नहीं आ रहा है. अब देखना ये हैं कि इस स्पेस रेस दुनिया का कौन सा देश बाजी मारता है. 

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