Karnataka Election: 2014 के बाद से जिस ध्रुवीकरण के दम पर चल रही थी मोदी लहर, कांग्रेस ने कर्नाटक में उसी दांव से बीजेपी को किया चित
Karnataka Election: क्योंकि येदियुरप्पा को हटाकर बोम्मई को सीएम बनाने का फैसला बैकफायर कर गया था, वहीं भ्रष्टाचार के मुद्दे पर पार्टी बुरी तरह घिर गई थी. ऐसे में बीजेपी ने ध्रुवीकरण करने की कोशिश की.
कर्नाटक विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने बीजेपी को चारों खाने चित कर दिया. कांग्रेस ने रिकॉर्ड 135 सीटों पर जीत दर्ज की और अब राज्य में सरकार बनाने जा रही है. इन चुनाव नतीजों को लेकर तमाम तरह के एनालिसिस सामने आ चुके हैं, जिनमें बीजेपी की हार और कांग्रेस की जीत की वजहों को बताया जा रहा है, लेकिन क्या आप जानते हैं कि कर्नाटक में बीजेपी को उसी के हथियार से चोट लग गई? बीजेपी ने चुनाव के दौरान ऐसे तमाम मुद्दों को उछाला, जिसने ध्रुवीकरण हो और बाकी राज्यों की तरह कर्नाटक में भी बीजेपी हवा का रुख बदलने में कामयाब रहे. हालांकि ऐसा नहीं हुआ, बल्कि कांग्रेस ने बीजेपी के दांव से उसे ही गहरी चोट पहुंचाने का काम कर दिया. आइए जानते हैं कैसे...
बजरंग बली से लेकर टीपू सुल्तान तक...
दरअसल 2014 के बाद से बीजेपी ने लगभग हर चुनाव में हिंदुत्व का कार्ड चला और जमकर ध्रुवीकरण किया. इसका सीधा फायदा बीजेपी को हुआ और एक के बाद एक तमाम राज्यों में पार्टी ने सरकार बनाई. कर्नाटक में भी बीजेपी की यही कोशिश थी. वोटिंग से ठीक पहले बीजेपी की तरफ से ऐसे मुद्दे निकाले गए, जिनसे किसी तरह ध्रवीकरण हो और बीजेपी के पाले में वोट आएं. बजरंग बली, टीपू सुल्तान, मुस्लिम आरक्षण को खत्म करना, द केरला स्टोरी, हिजाब, अजान और हलाला जैसे मुद्दों को लेकर माहौल गरम करने की कोशिश हुई.
क्योंकि येदियुरप्पा को हटाकर बोम्मई को सीएम बनाने का फैसला बैकफायर कर गया था, वहीं भ्रष्टाचार के मुद्दे पर पार्टी बुरी तरह घिर गई थी. ऐसे में बीजेपी के पास पीएम मोदी को प्रोजेक्ट करना और ध्रुवीकरण जैसे ही रास्ते बचे थे. साउथ के राज्य में हिंदुत्व कार्ड खेलना बीजेपी का एक प्रयोग था, जो बुरी तरह से फेल साबित हुआ. बीजेपी को फायदा पहुंचाने की जगह इसने सीधे कांग्रेस को फायदा पहुंचाया, जिसका नतीजा ये रहा कि कांग्रेस ने रिकॉर्ड 135 सीटों पर जीत हासिल कर ली.
आखिर क्या होता है ध्रुवीकरण
अब जिस शब्द ध्रुवीकरण का सबसे ज्यादा जिक्र हो रहा है, उसका मतलब आपको समझाते हैं. सीधी भाषा में अगर समझें तो राजनीतिक उद्देश्य के लिए किसी भी समुदाय या वर्ग के वोटों को बांट देना ध्रुवीकरण कहलाता है. इसमें जनभावना से जुड़े किसी एक मुद्दे को ढाल बनाकर लोगों के बीच रखा जाता है और इससे बड़े वर्ग के वोट तोड़कर अपने पाले में लाने का काम होता है. ध्रुवीकरण का सबसे बड़ा फायदा ये होता है कि इसमें अपना वोट बैंक तो सेफ रहता ही है, लेकिन जो दूसरे का बड़ा वोट बैंक होता है उसे अलग-थलग कर दिया जाता है. पिछले कई दशकों से देश की राजनीति में अलग-अलग तरीके से ध्रुवीकरण होता रहा है. जिनमें जातीय आधार, धर्म के आधार पर, विचारधारा के आधार पर, आर्थिक आधार पर, लिंग के आधार पर और शैक्षणिक आधार पर ध्रुवीकरण किया जाता है.
धर्म के नाम पर ध्रुवीकरण
सबसे ज्यादा ध्रुवीकरण जातीय और धर्म के नाम पर होता है. धर्म के आधार पर ध्रुवीकरण करने के लिए देखा जाता है कि कौन से धर्म के लोग हमारे पाले में है, ऐसे में वो मुद्दे उठाए जाते हैं, जिनसे बड़े स्तर पर इस समुदाय के लोग आकर्षित हों. उदाहरण के लिए इसे ऐसे समझते हैं कि किसी एक पार्टी के खिलाफ जमकर एंटी इनकंबेंसी है, लोग नौकरी, बेरोजगारी, महंगाई और बाकी अहम मुद्दों पर एकजुट नजर आ रहे हैं. ऐसे में सत्ता में काबिज वो पार्टी किसी ऐसे मुद्दे को जनता के बीच छोड़ देती है, जिससे बाकी मुद्दे गौण हो जाते हैं. तमाम मुद्दों पर एकजुट हुए लोगों में से एक बड़ा तबका धर्म के आधार पर बंट जाता है और सत्ताधारी पार्टी के नुकसान की संभावना कम हो जाती है.
कैसे उल्टा पड़ा बीजेपी का दांव
बीजेपी को ये अच्छी तरह से पता था कि हवा उसके विपरीत बह रही है, ऐसे में ध्रुवीकरण ही एकमात्र ऐसा रास्ता है जिससे पार्टी को बचाया जा सकता है, लेकिन ये दांव उल्टा पड़ गया. इसका नतीजा ये रहा कि कर्नाटक में जितने भी सेक्युलर वोट अलग-थलग पड़े थे, वो एकजुट हो गए. इस पूरे सेक्युलर वोट बैंक ने सीधे कांग्रेस को चुना और चुनाव में उसे जमकर वोट पड़े. इसकी तस्वीर वोट प्रतिशत के आंकड़े दिखा रहे हैं. जिनमें बीजेपी का वोट प्रतिशत तो कम नहीं हुआ, लेकिन कांग्रेस के वोट प्रतिशत में बड़ा इजाफा हो गया.
इस बार बीजेपी को कर्नाटक में कुल 36% वोट पड़े और पार्टी को महज 66 सीटें मिलीं. वहीं इससे पहले यानी 2018 के चुनाव में बीजेपी का वोट शेयर 36.22% था, जबकि सीटें 104 थीं. यानी पार्टी का वोट प्रतिशत तो उतना ही रहा, लेकिन सीटें लगभग आधी हो गईं.
अब अगर कांग्रेस की बात करें तो पार्टी के वोट शेयर में करीब 4 फीसदी का इजाफा हुआ है. पिछले चुनाव में जहां कांग्रेस का वोट शेयर 38.04% था, वहीं इस बार वो बढ़कर 42.9% हो गया. इसे सीटों के हिसाब से देखें तो पिछली बार कांग्रेस को 78 सीटें मिली थीं, वहीं इस बार रिकॉर्ड 135 सीटों पर जीत दर्ज की है.
कैसे बंट गए वोट
बीजेपी ने जो दांव चला था, उससे कोशिश ये थी कि कांग्रेस के वोट बैंक में सेंध लगाई जाए और उसे नुकसान पहुंचाया जा सके. लेकिन ऐसा होने की जगह हिंदू वोट दो हिस्सों में बंट गए. पहला वो जो कट्टर बीजेपी समर्थक है और दूसरे वो जो सेक्युलर हैं, यानी धर्म के आधार पर नहीं बंटते हैं. सेक्युलर वोट सीधे कांग्रेस के पाले में चला गया. वहीं मुस्लिम वोट भी एकजुट होकर कांग्रेस की तरफ झुक गए. मुस्लिम आरक्षण को खत्म कर लिंगायत और वोक्कालिगा को बांटने का दांव भी बीजेपी के काम नहीं आया, इन दोनों समुदायों के वोट भी टूटकर सीधे कांग्रेस की झोली में गिरे. लिंगायत समुदाय से आने वाली 70 में से करीब 54 सीटें कांग्रेस ने हासिल कीं, वहीं 19 पर बीजेपी को जीत मिल पाई. यानी इस बार बीजेपी कर्नाटक में अपने ही ट्रैप में फंस गई.