कोई भी बाग या फूल का पौधा तब तक खूबसूरत नहीं लगता जबतक वहां कई रंगबिरंगी तितलियां न दिखे. तितलियां हमें बहुत कुछ सिखाती हैं. वो हमसे कहती हैं कि अपने जीवन को रंगों से भर दो, तरह तरह के रंग जो आस-पास हैं उसे जीवन में समेट लो. लाल रंग अपने सशक्त विचारों के लिए अपनाओं, पीला रंग उमंग और उल्लास के लिए अपनाओं, गुलाबी रंग प्यार और विश्वास के लिए अपनाओ, आसमानी रंग ऊंची उड़ान के लिए अपनाओ, हरा रंग जागृति और चेतना के लिए अपनाओ, काला रंग खुद को निर्भिक बनाने के लिए अपनाओ, सफ़ेद आत्मिक उन्नति और शांति के लिए अपनाओ और पीला नई उमंग और उल्लास के लिए जिदंगी में अपनाओ. तितलियां जीवन को सजाने के लिए रंगों का सहारा लेने को कहती है.


अब आपको लग रहा होगा कि अचानक आज हम तितलियों का जिक्र क्यों करने लगे हैं. दरअसल एक रिपोर्ट के मुताबिक तितलियां कम हो रही हैं. दिल्ली-NCR में तितलियों की 67 प्रजातियों पर पिछले पांच साल का अध्ययन कहता है कि तितलियों की संख्या लगातार कम हो रही है. 2017 में जहां 75 प्रजातियों की तितलियां थीं, 2022 में उनकी संख्या 67 पर आ गई हैं. 


तितलियों का जिक्र करते हुए आज हम आपको बताने वाले हैं कि साहित्य में भी तितलियों को कई रूपक के तौर पर इस्तेमाल किया गया है. उन्हीं में से एक प्रेमिका भी है. अदब की भाषा में 'तितली' लड़कियों के लिए भी इस्तेमाल होती रही है.


वहीं हम सब जानते हैं कि देश में आज भी कन्या भ्रूण हत्या कई जगहों पर होती है. कन्या भ्रूण हत्या आमतौर पर मानवता और विशेष रूप से समूची स्त्री जाति के विरुद्ध सबसे जघन्य अपराध है. बेटे की इच्छा और दहेज़ की प्रथा ने ऐसी स्थिति को जन्म दिया है जहां बेटी का जन्म किसी भी कीमत पर रोका जाता है. 


हक़ीकत ये है कि प्रकृति के लिए तितलियों की कम संख्या और समाज के लिए लड़कियों की कम संख्या चिंताजनक विषय है. ज़रा सोचिए ऐसा समाज जहां लड़कियां न हो तो क्या वो किसी भयानक जंगल से कम नहीं दिखाई देगा. मशहूर शायरा अंजुम रहबर की भाषा में कहें तो


जंगल दिखाई देगा अगर ये यहां न हों


सच पूछिए तो शहर की हलचल है बेटियां


साहित्य में 'तितली' 


जिदंगी के अलग-अलग रंगों की जिक्र जब आता है तो सबसे जरूरी और खास रंग प्रेम का रंग है. तितलियों और भंवरों का प्रेम जगजाहिर है. प्रेम हमें सिखाता है कि स्वतंत्र उड़ना कोई गुनाह नहीं है. तितली भी यही सिखाती है. तितली और भंवरों का प्रेम इतना मशहूर है कि प्यार करने वाले युवाओं की जोड़ियों को भी तितली और भंवरा कह कर लोग संबोधित करते हैं. 


साहित्य में कई रचनाकारों ने तितली शब्द का इस्तेमाल 'लड़की' या 'प्रेमिका' के लिए किया है जबकि भंवरा शब्द लड़के का प्रतीकात्मक शब्द है. उदाहरण के लिए ज़ुबैर अली ताबिश का ये शेर देखिए


कोई तितली निशाने पर नहीं है
मैं बस रंगों का पीछा कर रहा हूँ.


ऊपर हमनें लिखा कि प्रेम आजाद होने का नाम है...इसमें कोई बंदिश नहीं होती. इसमें कोई जबरदस्ती नहीं होती कि प्रेमी प्रेमिका से कहे कि तुम केवल मुझसे ही प्रेम कर सकती हो. प्रेम तो समर्पण का भाव है जबरन यहां कुछ नहीं होता है.


शायरी की जुबान में युवा अपने जज्बात जब बयां करते हैं तो लड़की को 'तितली' कहते हुए संबोधित करते हैं और जानते हैं कि तितलियां आजाद होती हैं और आजाद लड़कियां प्रेम में अपने फैसले खुद लेती हैं.


तितली वो ही फूल चुनेगी जिस पर उसका दिल आये
इक लड़की के पीछे इतनी मारामारी ठीक नहीं..


दरअसल, प्रेम बहुत अलबेला होता है. प्रेम में पड़ने पर व्यवहार में सख्त कहे जाने वाला मर्द भी किसी झरने सा बहने लगता है.उसकी प्रेयसी की अल्हड़ सी चंचल बातूनी आंखें अपने आशिक को जब प्यार से देखती है तो फूलों की मृदुता, बारिश की शीतलता और तितली की रंगीनियां उस आशिक के आंखों में उतर आती हैं. पुरुष उस चाहत में खो कर पिघल जाता है. 


हिन्दी साहित्य में जयशंकर प्रसाद का नाम हिन्दी कवि, नाटककार, कहानीकार, उपन्यासकार के रूप से प्रख्यात है. 'तितली' शिर्षक से उनकी मशहूर उपन्यास है. तितली सामाजिक पृष्ठभूमि पर लिखित जयशंकर प्रसाद का दूसरा उपन्यास है. इसके अलावा मनोज शर्मा की कहानी 'तितली' भी काफी मशहूर है. बचपन में हम सबने कभी न कभी बाल साहित्य का हिस्सा रही 'तितली रानी' कहानी भी जरूर पढ़ी होगी.


ऐसा नहीं कि तितलियों का जिक्र सिर्फ भारतीय साहित्य में हुआ है. बारबरा वुड जो  रोमांस उपन्यासों की एक अमेरिकी लेखिका हैं, उनकी सबसे मशहूर उपन्यास है Butterfly. इसमें  रोडियो ड्राइव पर एक विशेष पुरुषों की दुकान के ऊपर बटरफ्लाई नामक एक निजी क्लब है, जहां महिलाएं अपनी गुप्त कामुक कल्पनाओं को पूरा करने के लिए स्वतंत्र रहती हैं. यह उपन्यास काफी चर्चित है.


लफ्ज़ कागजों पर बैठते ही नहीं


कई बार ऐसा होता है कि प्रेमी अपनी प्रेमिका के लिए कविता या प्रेम पत्र लिखने की कोशिक करता है और वो काफी कोशिशों के बाद भी लिख नहीं पाता... गुलज़ार साहब ने अपनी नज़्म में इसी कश्मकश को बयां करते हुए तितली लफ्ज़ का इस्तेमाल किया है..


नज़्म उलझी हुई है सीने में, 
मिसरे अटके हुए हैं होठों पर
उड़ते-फिरते हैं तितलियों की तरह
लफ्ज़ कागजों पर बैठते ही नहीं


बचपन की वो तितली वाली कविता जो हम सबने सुनी और पढ़ी हैं


तितली उड़ी, उड़ ना सक़ी कविता हम सबने बचपन में जरूर सुनी होगी. यह कविता दशकों से बच्चों को याद कराया जाता रहा है. 


तितली उड़ी, उड़ ना सक़ी
तितली उड़ी, उड़ ना सक़ी
बस पे चढ़ी, सीट ना मिली
सीट ना मिली, तो रोने लगी


ड्राइवर ने कहा, आजा मेरे पास


ड्राइवर ने कहा, आजा मेरे पास
तितली बोली, हट बदमाश
हट बदमाश, मेरा घर है पास