Xi Jinping Saudi Arabia Visit Explained: चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग (Xi Jinping) का तीन दिवसीय सऊदी अरब (Saudi Arabia) दौरा पूरा हो चुका है. वह बुधवार (7 दिसंबर) को सऊदी पहुंचे थे और शुक्रवार (9 दिसंबर) को वहां से वापस अपने देश के लिए रवाना हुए. जिनपिंग के इस दौरे का अलग-अलग तरीके से विश्लेषण हो रहा है.
CNN की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि जिनपिंग अपने सऊदी समकक्ष को यह दिखाने के लिए उत्सुक थे कि चीन कैसे दुनिया के सबसे बड़े तेल उपभोक्ताओं में से एक है और कैसे यह खाड़ी देश के साथ ऊर्जा, सुरक्षा और रक्षा समेत विकास के क्षेत्र में योगदान दे सकता है. जिनपिंग के रियाद पहुंचने पर दोनों देशों के बीच कई समझौतों पर हस्ताक्षर हुए हैं.
रिपोर्ट में कहा गया है कि चीनी राष्ट्रपति के इस दौरे को अमेरिका को नजरअंदाज करने के रूप में देखा गया है. अमेरिका ने सऊदी अरब के साथ अपने रणनीतिक संबंधों को आठ दशक से ज्यादा समय से मजबूत बनाया हुआ है लेकिन आज उसका पुराना साझेदार नए दोस्तों की तलाश में है, खासकर चीन की. अमेरिका को चिंता है कि चीन दुनियाभर में अपने प्रभाव क्षेत्र का विस्तार कर रहा है.
रिपोर्ट में कहा गया है कि सऊदी अरब ने धुव्रीकरण संबंधी धारणा को खारिज किया है और यह दिखाने की कोशिश की है कि बगैर आलोचना और हस्तक्षेप, वह चीन के साथ गहरी साझेदारी विकसित कर सकता है. रिपोर्ट के मुताबिक, सऊदी ने ऐसे रुख से लंबे समय से अपने पश्चिमी समकक्षों को नाराज किया है. आखिर क्या हैं जिनपिंग की सऊदी अरब यात्रा के मायने, आइये पांच मुख्य बातों में समझते हैं.
सऊदी अरब और चीन ज्यादातर नीतियों पर कर रहे गठबंधन
शी जिनपिंग के दौरे के दौरान सऊदी अरब और चीन ने करीब चार हजार शब्दों का एक साझा बयान जारी किया, जिसमें विभिन्न राजनीतिक मुद्दों और अन्य मसलों पर गंभीर सहयोग का वादा किया गया है. स्पेस रिसर्च, डिजिटल अर्थव्यवस्था, बुनियादी ढांचे से लेकर ईरान के परमाणु कार्यक्रम, यमन युद्ध और रूस-यूक्रेन युद्ध जैसे मुद्दों पर रियाद और बीजिंग ने यह दिखाया कि वे ज्यादातर प्रमुख नीतियों पर सहमत हैं.
रिपोर्ट में लेखक और विश्लेषक अली शिहाबी के हवाले से लिखा गया है, ''प्रमुख मुद्दों पर बहुत ज्यादा सहमति है.'' शिहाबी ने कहा, ''यह संबंध पिछले छह वर्षों से नाटकीय रूप से विकसित हो रहा है, इसलिए शी जिनपिंग की यह यात्रा बस उसका चरमबिंदू थी.'' रिपोर्ट के मुताबिक, दोनों देश परमाणु ऊर्जा के शांतिपूर्ण इस्तेमाल को लेकर सहयोग करने, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस जैसी आधुनिक तकनीकों के विकास पर मिलकर काम करने और ऊर्जा क्षेत्र में इनोवेशन के लिए भी सहमत हुए हैं.
सुरक्षा और तेल के लिए बड़ी योजनाएं
रिपोर्ट में कहा गया है कि बगैर लिखित समझौते और आपसी समझ के अनुसार, सऊदी अमेरिका को तेल देता है, जबकि अमेरिका उसे सैन्य सुरक्षा प्रदान करता है और ईरान जैसे उसके क्षेत्रीय शत्रुओं के साथ उसकी लड़ाई में उसका समर्थन करता है. सऊदी अमेरिका के साथ इस पारंपरिक समझौते से दूर जाने का इच्छुक है. उसे लगता है कि रियाद के वर्तमान जरूरत परिवर्तन लाने की है. चीन दुनिया का सबसे बड़ा तेल खरीदार है और सऊदी अरब इसका शीर्ष आपूर्तिकर्ता है.
सऊदी प्रेस एजेंसी ने शुक्रवार को बताया कि देश की राष्ट्रीय तेल कंपनी अरामको और शेडोंग एनर्जी ग्रुप ने कहा कि वे चीन में एकीकृत रिफाइनिंग और पेट्रोकेमिकल अवसरों पर सहयोग तलाश रही हैं. सऊदी पहले ही इस साल चीन के पूर्वोत्तर में रिफाइनरी और पेट्रोकेमिकल परिसर में अरामको के 10 बिलियन डॉलर के साथ अपना सबसे बड़ा निवेश कर चुका है. चीन सुरक्षा और रक्षा क्षेत्र को लेकर सऊदी अरब के साथ सहयोग करने का भी इच्छुक है, यह एक ऐसा क्षेत्र है जो कभी अमेरिका के लिए आरक्षित था. रिपोर्ट में कहा गया है कि ईरान से बढ़ते खतरों और क्षेत्र में अमेरिकी सुरक्षा मौजूदगी कम करने के लिए सऊदी अरब और उसके खाड़ी पड़ोसियों ने हाल में हथियार खरीदते समय पूर्व की ओर देखा है.
घरेलू मामलो में दखल नहीं चाहता है सऊदी अरब
रिपोर्ट में कहा गया है कि 1950 के दशक से चीन की सबसे पवित्र अवधारणाओं में से एक पारस्परिक मामलों में दखल न देने का सिद्धांत है. 1954 में चीन, भारत और म्यांमार के बीच शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व के पांच सिद्धांतों के रूप में इसे शुरू किया गया था, जिसे बाद में कई देशों ने अपनाया, जो शीत युद्ध के दौरान अमेरिका और सोवियत संघ के बीच चयन नहीं करना चाहते थे. आज सऊदी अरब इस अवधारणा को अपनी राजनीतिक बयानबाजी में अपनाने का इच्छुक है.
रिपोर्ट में कहा गया है कि एक दूसरे के आंतरिक मामलों में दखल न देने का मतलब शायद घरेलू नीति पर टिप्पणी नहीं करना या मानवाधिकारों के रिकॉर्ड की आलोचना नहीं करना है. शिहाबी के मुताबिक, बगैर दखल सहमत होने के सिद्धांत का अर्थ यह भी है कि जब जरूरत हो, आंतरिक मामलों पर निजी तौर पर चर्चा की जा सकती है.
क्या पेट्रोडॉलर में लेन-देन छोड़ रहे चीन-सऊदी अरब?
रिपोर्ट के मुताबिक, जिनपिंग ने अपनी यात्रा के दौरान, अपने गल्फ कोऑपरेशन काउंसिल (GCC) समकक्षों से चीनी मुद्रा का इस्तेमाल करते हुए तेल और गैस की बिक्री करने का आग्रह किया है. जिनपिंग ने कहा है कि इसके लिए शंघाई पेट्रोल और गैस एक्सचेंज का पूरी तरह इस्तेमाल होना चाहिए. यह कदम चीन को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी मुद्रा को मजबूत करने के अपने लक्ष्य के करीब लाएगा और अमेरिकी डॉलर को बहुत कमजोर करेगा, इससे अमेरिकी अर्थव्यवस्था संभावित रूप से प्रभावित होगी.
रिपोर्ट में कहा गया है कि तेल व्यापार के संबंध में अमेरिकी डॉलर को युआन से शिफ्ट करने को लेकर निर्णय का इंतजार किया जा रहा है लेकिन ऐसी कोई घोषणा नहीं हुई है. फिलहाल दोनों देशों ने यह स्पष्ट नहीं किया है कि वे पेट्रोडॉलर को छोड़ने पर विचार कर रहे है. जानकारों की नजर में, चूंकि चीन सऊदी का सबसे बड़ा तेल ग्राहक है, इसलिए अभी नहीं तो भविष्य में ऐसा निर्णय लिए जाने की संभावना है.
वाशिंगटन खुश नहीं
जिनपिंग की सऊदी यात्रा को लेकर अमेरिका ने शांत और कम प्रतिक्रिया दी है लेकिन जानकार अनुमान लगा रहे हैं कि बंद दरवाजों के पीछे अमेरिका की चिंता बढ़ गई है. यूएस नेशनल सिक्योरिटी काउंसिल में स्ट्रैटजिक कम्युनिकेशंस कोऑर्डिनेटर जॉन किर्बी ने यात्रा की शुरुआत में कहा, ''इसमें कोई आश्चर्य नहीं है कि शी जिनपिंग दुनियाभर और मध्य पूर्व में यात्रा कर रहे हैं और अमेरिका उस प्रभाव के प्रति सचेत है जिसे चीन दुनिया भर में विकसित करने की कोशिश कर रहा है.'' रिपोर्ट में संयुक्त अरब अमीरात के शारजाह विश्वविद्यालय के एक सहायक प्रोफेसर शाओजिन चाई के हवाले से लिखा गया, ''हो सकता है कि यह यात्रा चीन के प्रभाव को विस्तार न दे लेकिन इस क्षेत्र में अमेरिकी प्रभाव में लगातार गिरावट का संकेत देती है.''
वहीं, सऊदी अरब ने इस तरह की बातों को खारिज किया है. शुक्रवार को सऊदी अरब के विदेश मंत्री प्रिंस फैसल बिन फरहान अल सऊद ने एक संवाददाता सम्मेलन में जोर देकर कहा कि देश सभी पक्षों के साथ सहयोग पर केंद्रित है. उन्होंने कहा, ''प्रतिस्पर्धा एक अच्छी बात है और मुझे लगता है कि हम प्रतिस्पर्धी बाजार में हैं.'' उन्होंने कहा कि यह महत्वपूर्ण है कि सऊदी अरब अपने पारंपरिक साझेदार अमेरिका के साथ-साथ चीन जैसी अन्य उभरती अर्थव्यवस्थाओं के साथ पूरी तरह से जुड़ा हुआ है.
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