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Caste Census: जातिगत जनगणना पर मोदी सरकार को घेर रही कांग्रेस, लेकिन खुद लागू करने से हर बार किया परहेज

Caste Census: राहुल गांधी ने कहा कि हम मोदी सरकार पर लगातार जातीय जनगणना को लेकर दबाव बनाएंगे. हम ओबीसी जनगणना को रिलीज कराएंगे और दलित और ओबीसी आबादी को उनका हक दिलाने का काम करेंगे.

Caste Census Congress: कांग्रेस नेता राहुल गांधी को मानहानि मामले में सजा सुनाए जाने के बाद ओबीसी समुदाय के अपमान की बात सामने आई, बीजेपी नेताओं ने इसे लेकर कांग्रेस को जमकर घेरा. इसके बाद विपक्ष ने मौके का फायदा उठाते हुए जातिगत जनगणना का मुद्दे से बीजेपी को घेरने की कोशिश की. कांग्रेस ने कहा कि बीजेपी अगर वाकई ओबीसी समुदाय या दलितों के हितों को लेकर सोच रही है तो उसे जातिगत जनगणना करानी चाहिए. जिससे जरूरतमंद लोगों को उनका हक मिल सके. हालांकि भले ही कांग्रेस विपक्ष में बैठकर जातिगत जनगणना को लेकर हल्ला मचा रही हो, लेकिन इस मसले पर कांग्रेस सरकार का भी रुख कभी साफ नहीं रहा. आइए बताते हैं कैसे... 

कर्नाटक में राहुल गांधी ने उछाला मुद्दा 
कर्नाटक में चुनाव से ठीक पहले राहुल गांधी ने खुद जातिगत जनगणना के मुद्दे पर सीधे पीएम मोदी को घेरा. उन्होंने कर्नाटक में सरकार से पूछा कि उन्होंने ओबीसी के लिए क्या किया है. राहुल ने कहा, "नौ साल हो गए, नरेंद्र मोदी जी ने ओबीसी से वोट लिया. आप मुझे बताइए कि मोदी जी ने ओबीसी के लिए क्या किया. मोदी जी ओबीसी से वोट ले लेते हैं मगर ओबीसी को ताकत कभी नहीं दी. नरेंद्र मोदी जी अगर करनी है तो काम की बात कीजिए. यूपीए सरकार के दौरान 2011 में हमने जनगणना की थी, जिसमें हमने पूछा कि आपकी जाति क्या है. इसका पूरा डेटा सरकार के पास है. नरेंद्र मोदी जी ने डेटा पब्लिक नहीं किया, इसे छिपाया है. मोदी जी अगर आप वाकई में ओबीसी को ताकत देना चाहते हैं तो डेटा जारी कर बता दीजिए कि देश में कितने ओबीसी हैं. आरक्षण पर 50 फीसदी के कैप को भी हटाइए. मैं जानता हूं कि ये काम नरेंद्र मोदी कभी नहीं कर सकते हैं."

इस दौरान राहुल गांधी ने कहा कि हम मोदी सरकार पर लगातार इसे लेकर दबाव बनाएंगे. हम ओबीसी जनगणना को रिलीज कराएंगे और दलित और ओबीसी आबादी को उनका हक दिलाने का काम करेंगे. इस दौरान उन्होंने वादा किया कि जिनती आबादी उतना हक दिलाने काम किया जाएगा. 

कर्नाटक में कांग्रेस सरकार ने कराया था सर्वे
अब राहुल गांधी के बयान के बाद ये साफ हो गया कि 2024 लोकसभा चुनावों तक कांग्रेस जातिगत जनगणना के मुद्दे को जमकर उछालेगी. कांग्रेस इसे बीजेपी की हिंदुत्व पॉलिटिक्स का काट मानकर चल रही है. हालांकि कांग्रेस ने सरकार में रहते हुए जातिगत जनगणना तो कराई, लेकिन इसे लागू नहीं किया. कर्नाटक में भी ऐसा ही देखने को मिला. जहां जातिगत सर्वे तो कराया गया, लेकिन इसे जारी नहीं किया गया. 

किसी मुख्यमंत्री ने नहीं दिखाई हिम्मत
कर्नाटक में कांग्रेस ने 2013 में स्पष्ट बहुमत हासिल कर सरकार बनाई थी, जिसके बाद सिद्धारमैया को मुख्यमंत्री पद सौंपा गया. इसके ठीक एक साल बाद यानी 2014 में एजुकेशन एंड सोशल सेंसस कराया गया. इसके आदेश खुद सिद्धारमैया ने दिए थे, लेकिन जब जातिगत जनगणना की ये रिपोर्ट सरकार के पास आई तो इसे जनता के सामने नहीं लाया गया. इसके बाद अब तक किसी ने भी इस रिपोर्ट को आलमारी से बाहर निकालने की जहमत नहीं उठाई है. फिर चाहे वो खुद सिद्धारमैया हों, कुमारस्वामी हों, बीएस येदियुरप्पा हों या फिर बसवराज बोम्मई... हर मुख्यमंत्री ने इस मसले पर चुप्पी साधे रखी. 

कर्नाटक के पिछड़ा वर्ग आयोग के अध्यक्ष जय प्रकाश हेगड़े ने एनडीटीवी के साथ बातचीत में बताया कि इसे लेकर पिछड़ा वर्ग आयोग ने सरकारों को लिखा भी था, लेकिन कुछ भी असर नहीं हुआ. उन्होंने कहा, "हमने दो बार सरकार को लिखा और पूछा कि इस रिपोर्ट का क्या करना है, लेकिन अब तक इस पर कोई भी जवाब नहीं आया है." रिपोर्ट्स के मुताबिक इस सर्वे को कराने में सरकार ने कुल 163 करोड़ रुपये खर्च किए थे. इसके बावजूद पिछले कई सालों से जातिगत जनगणना की ये रिपोर्ट सरकारी आलमारियों में धूल खा रही है. 

2011 में भी हुई थी जातिगत जनगणना 
भारत में 1931 के बाद जातिगत जनगणना नहीं हुई थी. हालांकि इसके बाद अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति का डेटा दिया गया, लेकिन ओबीसी और अन्य जातियों के आंकड़े सामने नहीं आए. कांग्रेस नीत यूपीए सरकार ने 2011 की जनगणना में जातिगत जनगणना को शामिल किया. बताया गया कि कांग्रेस इसके पक्ष में नहीं थी, लेकिन मुलायम सिंह यादव और लालू यादव के दबाव में आकर इसे भी जनगणना में शामिल किया गया. हालांकि बाद में इसे जारी नहीं किया गया. इसके पीछे तर्क दिया गया कि इसमें काफी सारी खामियां थीं. जिसके चलते इसे जारी नहीं किया जा सका. 2014 के बाद मोदी सरकार केंद्र में आई, लेकिन उसने भी जातिगत जनगणना की धूल को साफ करने की कोशिश नहीं की. इसके लिए एक आयोग बनाने की बात जरूर हुई थी, लेकिन इस आयोग के सदस्य ही पूरे नहीं हो पाए. जिसके बाद फिर से मामला ठंडे बस्ते में चला गया. 

जातिगत जनगणना का मुद्दा विपक्ष में रहकर ही आता है याद
यानी भले ही कांग्रेस लगातार बीजेपी को जातिगत जनगणना को लेकर घेर रही हो, लेकिन सत्ता में रहते हुए उसने भी इसकी रिपोर्ट को जारी करने की हिम्मत नहीं दिखाई थी. वहीं बीजेपी की अगर बात करें तो सत्ता में रहते हुए पार्टी जातिगत आंकड़ों को जारी करने से इनकार कर रही है, लेकिन जब वो विपक्ष में थे तो इस मुद्दे को उनकी तरफ से भी जमकर उछाला गया था. बीजेपी नेताओं का कहना था कि सामाजिक न्याय के लिए ओबीसी और अन्य जातियों की जनगणना जरूरी है. हालांकि 2021 में केंद्रीय गृह राज्यमंत्री नित्यानंद राय ने केंद्र सरकार ने एससी-एसटी के अलावा किसी और जाति की जनगणना के आदेश नहीं दिए हैं. 

आंकड़े जारी करने से क्यों बच रही सरकारें?
अब हर पार्टी विपक्ष में आकर जातिगत जनगणना को लेकर चिंता जाहिर करने लगती है और सत्ता में पहुंचते ही इससे पल्ला क्यों झाड़ने लगती है? इस सवाल का जवाब जानने के लिए हमने पॉलिटिकल एक्सपर्ट शिवाजी सरकार से बात की. जिसमें उन्होंने कहा, "मंडल कमीशन ने जब लागू किया गया तो इसमें जातियों के आंकड़े भी शामिल थे. इसके बाद जातिगत वैमनस्य बढ़ गया, जो आज भी जारी है. राजनीतिक दल ओबीसी आरक्षण को नहीं नकार पाते हैं. सरकार आंकड़े जारी करने से इसलिए भी डर रही है कि उस समुदाय के लिए रिजर्वेशन देना पड़ सकता है. देश में सरकारी नौकरियां पहले से ही कम हो रही हैं, बेरोजगारी बढ़ गई है. ऐसे में ओबीसी समाज का समाधान राजनीतिक दलों के पास नहीं रह गया है. राजनीतिक दल विपक्ष में रहकर ओबीसी के हितों की बात तो करते हैं, लेकिन सत्ता में आते ही भाषा एक जैसी हो जाती है. इसीलिए इस मुद्दे का सामाधान होना मुश्किल है."

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