दुनिया का सबसे ताकतवर मुल्क है अमेरिका. दुनिया की करीब चार फीसदी आबादी इस देश में रहती है. लेकिन इस देश में कोरोना का कहर इतना ज्यादा है कि कोरोना की वजह से दुनिया में हुई कुल मौतों में से 24 फीसदी मौतें अमेरिका में ही हुई हैं. इसे आंकड़ों से समझने की कोशिश करते हैं. दुनिया में अभी तक कोरोना से मरने वालों की संख्या है 1,45,533. अकेले अमेरिका में 34,784 लोगों की मौत हुई है.


अमेरिका के लिए ये आंकड़ा कितना खतरनाक है, इसे पिछले 24 घंटे के उदाहरण से समझ सकते हैं. जॉन्स हॉपकिन्स यूनिवर्सिटी के आंकड़ों के मुताबिक 24 घंटे के अंदर अमेरिका में कुल 4,491 लोगों की मौत हुई है. 24 घंटे के अंदर इतनी मौतें दुनिया के किसी भी देश में नहीं हुई हैं. इसके अलावा अमेरिका में कोरोना के अब तक कुल 6,76,676 मामले सामने आ चुके हैं. पूरे देश में हर 2.5 मिनट में एक आदमी की मौत कोरोना की वजह से हो रही है. वहीं हर 6 मिनट में न्यू यॉर्क का एक आदमी कोरोना की वजह से अपनी जान गंवा रहा है.


ये स्थिति उस देश की है, जहां पर दुनिया का सबसे बेहतरीन हेल्थ सिस्टम है. यही वजह है कि जब जनवरी के आखिर में अमेरिका में कोरोना के मामले सामने आने शुरू हुए और विश्व स्वास्थ्य संगठन ने अमेरिका को इसकी चेतावनी भी दी, तब भी ट्रंप को कोई फर्क नहीं पड़ा. उन्होंने कहा कि स्थितियां नियंत्रण में हैं. लेकिन फिर स्थितियां इतनी खराब हो गईं कि 14 मार्च को ट्रंप ने कोरोना को नेशनल इमरजेंसी घोषित कर दिया. यूरोप से आने वाली फ्लाइट्स रोक दीं, लोगों को सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करने को कहा, लेकिन अमेरिका के लोगों ने सरकार की बात नहीं मानी और फिर स्थितियां खराब हो गईं.


अमेरिका इस महामारी के लिए तैयार नहीं था. नतीजा ये हुआ कि मार्च के आखिर तक 33 करोड़ की आबादी वाले देश में मात्र 10 लाख लोगों का ही टेस्ट हो पाया था, जबकि ट्रंप ने कहा था कि कम से कम 50 लाख लोगों की जांच की जाएगी. लेकिन जैसे-जैसे जांच का दायरा बढ़ा, कोरोनो के आंकड़े भी बढ़ते गए. फिलहाल अमेरिका ने करीब 33 लाख से भी ज्यादा कोरोना टेस्ट किए हैं, जिनमें से 1 लाख 45 हजार से ज्यादा लोग कोरोना पॉजिटिव पाए गए हैं.


ये आंकड़ा लगातार बढ़ता ही जा रहा है. इसकी एक तो वजह ये है कि अमेरिका लगातार ज्यादा टेस्ट कर रहा है. दूसरी वजह ये है कि अमेरिका में मोटापे और डायबिटिज के पेशेंट ज्यादा हैं. कोरोना का असर ऐसे लोगों पर तुरंत हो जाता है, जो अमेरिका में दिख भी रहा है. इसी को रोकने के लिए अमेरिका में भी लॉकडाउन किया गया है. देश की कुल आबादी के करीब 95 फीसदी हिस्से को घरों में ही कैद रहने को कहा गया है, लेकिन अमेरिकी मान नहीं रहे हैं. कुछ अमेरिकियों ने तो यहां तक कह दिया है कि भले ही वो कोरोना से मर जाएंगे, लेकिन वो पार्टी में जाना नहीं छोड़ेंगे. ऐसे ही लोगों से निबटने के लिए राष्ट्रपति ट्रंप की ओर से 50,000 जवानों को तैनात किया गया है.


लेकिन अगर ये फैसले वक्त रहते ले लिए गए होते, तो शायद अमेरिका को अपने वक्त की सबसे बड़ी त्रासदी नहीं झेलनी पड़ती. अमेरिका कमें कोरोना का पहला मामला सामने आया था 19 जनवरी, 2020 को. वॉशिंगटन का ये मरीज चीन के वुहान से लौटा था. लेकिन तब अमेरिका ने इसपर ध्यान नहीं दिया. फरवरी की शुरुआत में टेस्टिंग तो शुरू हुई लेकिन वो भी बेहद सीमित पैमाने पर. 29 फरवरी, 2020 को वॉशिंगटन में कोरोना की वजह से पहली मौत हुई और तब संक्रमितों की कुल संख्या करीब 1500 थी. लेकिन तब भी ट्रंप ने कहा कि सब ठीक है. इससे ज्यादा खतरा तो फ्लू से होता रहा है.


लेकिन जैसे-जैसे दिन बीतते गए, अमेरिका की हालत खराब होती गई. दुनिया को भी पता चलने लगा कि सबसे बेहतरीन हेल्थ सिस्टम वाले अमेरिका का दावा कितना खोखला है. अमेरिका में डॉक्टरों के पास पर्याप्त पीपीई किट नहीं थीं. नजीता ये हुआ कि डॉक्टरों को एक ही किट कई बार इस्तेमाल करनी पड़ी और संक्रमण फैल गया. वक्त रहते अमेरिका में पीपीई और टेस्टिंग किट की सप्लाई तक नहीं हो पाई, क्योंकि पहले से कोई तैयारी नहीं थी. और जब तक ट्रंप तैयारी करते, मेडिकल सुविधाओें के लिए बजट अलॉट करते, मेडिकल इमरजेंसी की घोषणा करते, स्थितियां हाथ से निकल गई थीं. नतीजा ये हुआ है कि इस महामारी से सबसे ज्यादा मौतें अमेरिका में ही हुई हैं.