बॉलीवुड में साल 2013 में एक फिल्म रीलिज़ हुई थी. नाम था कृष 3. इस फिल्म के विलेन काल ने एक वायरस बनाया था, जिसका एंटीडोट सिर्फ उसके खून से बन सकता था. लेकिन फिल्म के हीरो कृष और विलेन काल का डीएनए एक जैसा था तो कृष के खून से भी एंटीडोट बन गया और फिर मुंबई तबाही से बच गई.


वो फिल्म थी. लेकिन फिलहाल दुनिया के सामने असली तबाही है. और ये तबाही भी वायरस के रूप में ही सामने है. इसका भी एंटीडोट बनाने की कोशिश चल रही है. इलाज खोजा जा रहा है, लेकिन कामयाबी हाथ नहीं लग पा रही है. ये वायरस लैब में बनाया हुआ नहीं है कि किसी के पास उसका एंटीडोट हो. इसलिए तलाश जारी है. और इसी कड़ी में भारत के वैज्ञानिकों ने कृष जैसा तरीका अपनाने की कोशिश की है. भारत में इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (आईसीएमआर) ने वैज्ञानिकों और डॉक्टरों को प्लाज्मा थेरेपी पर काम करने की इजाजत दे दी है. इस तकनीक को कहते हैं कॉनवैलीसेंट प्लाज्मा थेरेपी, जिसका इस्तेमाल पहले भी कई बीमारियों के इ्लाज में किया जाता रहा है. इस तकनीक के तहत कोरोना की वजह से पहले बीमार और अब ठीक हो चुके लोगों के प्लाज्मा को कोरोना की वजह से अब भी बीमार लोगों के शरीर में ट्रांस्प्लांट किया जाएगा.


अभी हाल ही में अमेरिका के फूड एंड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन ने अमेरिका में क्लिनिकल ट्रायल के लिए इस तकनीक का इस्तेमाल करने की मंजूरी दी थी. अब सवाल ये है कि ये तकनीक काम कैसे करती है. इस तकनीक को समझने के लिए सबसे पहले खून की बनावट को समझना होगा. मोटा-मोटी समझें तो खून के चार हिस्से होते हैं. लाल रक्त कण, श्वेत रक्त कण, प्लाज्मा और प्लेटलेट्स. जो लाल रक्त कण और श्वेत रक्त कण हैं, वो प्लाज्मा में ही तैरते रहते हैं. इसके अलावा प्लाज्मा में ही रोग प्रतिरोधक क्षमता होती है, जिसे एंटीबॉडीज कहते हैं. यही एंटीबॉडीज किसी रोग से लड़ती है. जब एक बार ये एंडीबॉडी किसी रोग से लड़ लेती है और जीत जाती है तो फिर कुछ कोशिकाएं उस रोग को हमेशा के लिए याद कर लेती हैं. अगर फिर से उस रोग का हमला होता है तो एंटीबॉडीज के साथ ये कोशिकाएं भी उस बीमारी से लड़ने लगती हैं और जल्दी-जल्दी एंटीबॉडीज बनाने लगती हैं.


इसी वजह से अब भारत के डॉक्टरों और वैज्ञानिकों ने ये तय किया है कि कोरोना की वजह से पहले बीमार हुए और फिर उससे ठीक हुए लोगों के शरीर से प्लाज्मा निकाला जाए और उसे कोरोना से पीड़ित के शरीर में ट्रांसप्लांट किया जाए. मकसद ये है कि निकाले गए प्लाज्मा में वो एंटीबॉडीज मौजूद होंगी, जो कोरोना से लड़ती हैं, इसलिए ये एंटीबॉडीज नए शरीर में जाकर भी बीमारी से लड़ पाएंगी. हालांकि इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च ने इस प्रयोग के लिए सिर्फ उन्हीं लोगों को चुना है, जो कोरोना से गंभीर रूप से प्रभावित हैं और वेंटीलेटर पर हैं. चूंकि अभी ये इलाज का आधिकारिक तरीका नहीं है और इसका ट्रायल चल रहा है, इसलिए गंभीर रूप से बीमार मरीजों पर ही इसका ट्रायल किया जाएगा. इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च के डॉक्टर मनोज मुरहेकर ने इस बात की तस्दीक की है कि इस तकनीक के जरिए दुनिया के दूसरे देशों में सफल इलाज हुआ है.


दुनिया में जब इबोला वायरस ने तबाही मचाई थी, तब भी प्लाज्मा थेरेपी के जरिए इलाज खोजने की सफल कोशिश हुई थी. इसके लिए विश्व स्वास्थ्य संगठन की ओर से विस्तार से एक गाइडलाइन जारी की गई थी. इसमें इबोला से बीमार होकर ठीक हुए लोगों का खून और प्लाज्मा निकालकर उससे इबोला संक्रमित लोगों का इलाज किया गया था और इसमें सफलता मिली थी. अब एक बार फिर से कोरोना से बचने के लिए भी इसी तकनीक का इस्तेमाल करने की कवायद हो रही है. चीन के वैज्ञानिकों ने इसी तकनीक के जरिए 10 मरीजों का सफल इलाज करने का दावा भी किया है. चीनी वैज्ञानिकों का दावा है कि प्लाज्मा ट्रांस्प्लांट करने के तीन दिनों के अंदर कोरोना पीड़ित लोगों में सुधार दिखने लगा था.

अब ये दावा तो चीन का है. भारत में ये तकनीक कितनी कारगर होती है, आने वाले दिनों में पता चल ही जाएगा. कोरोना से पीड़ित होने के बाद ठीक होकर अपने-अपने घर गए केरल के लोगों ने अपना प्लाज्मा देने की हामी भर दी है. हम सिर्फ इस बात की उम्मीद जता सकते हैं कि वैज्ञानिकों का ये प्रयोग सफल हो और दुनिया को इस बीमारी से जल्द से जल्द निजात मिले.