कोरोना का इलाज खोजने की हर संभव कोशिश की जा रही है, लेकिन फिलहाल कामयाबी हाथ लगती नहीं दिख रही है. विश्व स्वास्थ्य संगठन कह रहा है कि दुनिया भर के डॉक्टर करीब 70 टीकों पर काम कर रहे हैं, जिनमें से तीन क्लिनिकल स्टेज में हैं और बाकी 67 प्री क्लिनिकल स्टेज में. यानि कि कोशिशें जारी हैं, लेकिन मंजिल अभी दूर है.


और इसी दूरी को कम करने के लिए अब डॉक्टर और वैज्ञानिक सुपर कंप्यूटर का सहारा ले रहे हैं. इन कंप्यूटर्स के जरिए वैज्ञानिक ये समझने की कोशिश कर रहे हैं कि कोरोना वायरस का कम्युनिटी ट्रांसमिशन कैसे हो रहा है, इंसान के शरीर को कोरोना कैसे प्रभावित कर रही है और इस बीमारी का संभावित इलाज और दवा क्या हो सकती है. डॉक्टर इन कंप्यूटर्स के रिजल्ट को बेहद उम्मीद के साथ देख रहे हैं, क्योंकि इन्हीं सुपर कंप्यूटर्स ने जीका और इबोला जैसी महामारी से लड़ने में डॉक्टरों की मदद की थी.


एक आम कंप्यूटर के मुकाबले सुपर कंप्यूटर महीनों का काम सेकेंडों में कर देते हैं. इसके अलावा डॉक्टर अपने हाथ से जिस रिसर्च को करने में एक साल लगा देते हैं, उसे ये कंप्यूटर मिनटों में कर देते हैं, क्योंकि इनकी प्रोसेसिंग पावर बहुत ज्यादा होती है. अब चूंकि कोरोना वायरस को सामने आए चार महीने से ज्यादा का वक्त बीत चुका है, तो अब डॉक्टरों के पास इस वायरस से जुड़ी तमाम जानकारियां और आंकड़े इकट्ठे हो गए हैं. सुपर कंप्यूटर्स को इन तमाम आंकड़ों के विश्लेषण में लगाया गया है. फिलहाल मौजूद जिन दवाइयों के जरिए कोरोना से संक्रमित मरीज का इलाज किया जा रहा है, सुपर कंप्यूटर उन दवाइयों के कंपाउंड का अध्ययन कर रहे हैं. जानकारी के मुताबिक कोरोना वायरस की सतह पर नुकीलापन है, जिसके जरिए वो इंसान की कोशिकाओं को बेधकर शरीर में घुस जा रहा है. सुपर कंप्यूटर कुछ ऐसे एंटीवायरल ड्रग्स की तलाश में लगे हैं, जिनके जरिए कोरोना वायरस के नुकीलेपन को खत्म किया जा सके, जिससे कि वो शरीर में दाखिल ही न हो सके.


अमेरिका में इस काम में लगे सुपर कंप्यूटर्स को थोड़ी सफलता मिली है. कंप्यूटर्स को दवाओं के करीब 8,000 कंपाउंड और 77 ऐसे मॉलिक्यूल्स या कण मिले हैं, जो वायरस के खिलाफ काम कर सकते हैं. अब कंप्यूटर्स इन कंपाउंड और मॉलिक्यूल्स की लिस्ट को और छोटा करने की कोशिश कर रहे हैं ताकि उन कंपाउंड्स और मॉलिक्यूल्स की लिस्ट बनाई जा सके, जो कोरोना वायरस को शरीर में घुसने से रोक सके. इसके अलावा ये कंप्यूटर्स कोरोना वायरस के प्रोटीन संरचना का भी अध्ययन कर रहे हैं ताकि इसकी वैक्सीन बनाई जा सके, जिससे कि इंसानों के शरीर में इसकी प्रतिरोधक क्षमता विकसित की जा सके.


दुनिया के कई देश और खास तौर पर अमेरिका में इस कंप्यूटर का इस्तेमाल बड़े पैमाने पर किया जा रहा है. आईबीएम, गूगल और अमेज़न जैसी कंपनियों के अलावा रिसर्च इंस्टिट्यूट और यूनिवर्सिटिज़ जैसे एमआईटी और कॉर्नी मेलन सरकारी लैब और नासा जैसी संस्था के साथ सुपर कंप्यूट को लेकर कोविड 19 का इलाज खोजने में जुटे हुए हैं.


जापान ने अपने देश के सबसे बेहतरीन सुपर कंप्यूटर फुगाकू को इस काम में लगा रखा है. फुगाकू के कंप्यूटर की नेक्स्ट जेनरेशन है और के अब तक दुनिया का सबसे तेज कैलकुलेशन करने वाला सुपर कंप्यूटर है. आसानी से अंदाजा लगा सकते हैं कि जापान ने दांव पर क्या लगा रखा है. वहीं चीन में आर्टिफिशल इंटेलिजेंस के लिए इस्तेमाल होने वाले सुपर कंप्यूटर तिन्हे 1 को भी कोविड 19 के मरीजों की चेस्ट को स्कैन करने के लिए लगाया गया है.


वहीं भारत की सरकारी संस्था सेंटर फॉर डेवलपमेंट ऑफ अडवांस कंप्यूटिंग नेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ वायरॉलजी, आईआईटी, इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ साइंस एजुकेशन एंड रिसर्च, काउंसिल ऑफ साइंटिफिक एंड इंडस्ट्रियल रिसर्च और डिपार्टमेंट ऑफ बायोटेक्नॉलजी के साथ मिलकर कोरोना का इलाज खोजने में जुटी हुई है.