Dara Shikoh: दिल्ली के इतिहास में कई तारीखें इतनी अहम हैं कि उस दिन जो घटनाएं हुई हैं अगर न होतीं तो शायद तस्वीर कुछ और होती. साल 1659 और तारीख थी 30 अगस्त. इस दिन औरगंजेब ने शाहजहां के सबसे प्रिय बेटे और अपने बड़े भाई दारा शिकोह की गला काटकर हत्या कर दी. दिल्ली सल्तनत की लड़ाई में यह एक खूनी तारीख के तौर पर याद की जाती है.


मुगल बादशाह शाहजहां के उत्तराधिकारी उनके बड़े बेटे दारा शिकोह थे. दारा शिकोह एक विचारक, कवि, धर्मशास्त्री होने के साथ-साथ सैन्य मामलों के कुशल जानकार थे. कहा जाता है कि बादशाह शाहजहां बेटे दारा से इतना प्रेम करते थे कि वो उन्हें किसी भी जंग में हिस्सा नहीं लेने देते थे. यह भी कहा जाता है कि शाहजहां अपनी सभी संतानों में से दारा शिकोह को सबसे ज्यादा चाहते थे, जो उनके अन्य दूसरे बेटों को पसंद नहीं था. शाहजहां के इसी प्रेम ने दारा शिकोह और उनके छोटे भाइयों में दरार पैदा कर दी.  दारा शिकोह को 1633 में शाहजहां ने अपना उत्तराधिकारी बनाया था. यह फैसला दारा के भाइयों को स्वीकार नहीं था. 


दारा का समानता में विश्वास
शाहजहां के चार बेटे दारा शिकोह, औरंगजेब, शाह शुजा, मुराद बख्श थे. दिल्ली का अगला उत्तराधिकारी होने के नाते दारा शिकोह एक ऐसा भारत बनाना चाहते थे जो बादशाहत के साथ में दर्शन, सूफीवाद और आध्यात्मिकता को महत्व देता हो. यही नहीं दारा अपने समकालीन प्रमुख हिंदू, बौद्ध, जैन, ईसाई और मुस्लिम सूफियों के साथ धार्मिक विचार-विमर्श किया करते थे. इसका साफ मतलब है कि वो सभी धर्मों को एक समान महत्तव देते थे. इतिहासकार मानते हैं कि उनकी हिंदू धर्म में गहरी रूचि थी और वो समानता में विश्वास रखते थे. 


शाहजहां का दूसरा बेटा औरंगजेब
औरंगजेब का पूरा नाम मोहिउद्दीन मोहम्मद औरंगजेब था. वह सन 1618 में पैदा हुआ. पिता शाहजहां के कहने पर वो दक्कन का गवर्नर बना. 1647 में इसे हिन्दुकुश के बल्ख और बदख्शां के प्रांतों में विद्रोह को दबाने के लिए भेजा गया. वहीं 1649 में और 1652 में कंधार में भी हुई बगावत शांत करने की भी जिम्मेदारी दी गई. औरंगजेब इन सैन्य अभियानों में विफल रहा. लेकिन इन असफलताओं ने उसे एक चालाक शासक और सेनापति बना दिया.


शाहजहां का तीसरा बेटा शाह शुजा 
शाह शुजा शाहजहां का तीसरा बेटा था. शाह शुजा को बंगाल और उड़ीसा का प्रभारी बनाया गया था. वह बांग्लादेश के बारा कटरा नाम की जगह पर रहता था. 


शाहजहां का चौथा बेटा मुराद बख्श
मुराद बख्श शाहजहां का चौथा बेटा था. मुराद बख्श को शाहजहां के शासन के दौरान गुजरात को गवर्नर बनाया गया था. 


दारा का उदार चरित्र
दारा शिकोह को उदार चरित्र का माना जाता है. दारा ने काशी (वाराणसी) से पंडितों को बुलाकर उनकी मदद से हिंदू धर्म के 'उपनिषदों' का फारसी में अनुवाद करवाया था. यही नहीं उपनिषदों का फारसी अनुवाद होने के बाद यह यूरोप पहुंचा और वहां लैटिन भाषा में भी उनका अनुवाद किया गया. यही वजह है कि हिंदू झुकाव वाले इतिहासकारों का मानना है कि अगर औरंगजेब की जगह दारा शिकोह मुगल सल्तनत की गद्दी पर बैठते तो हिंदुस्तान के हालात कुछ और होते. दरअसल, आम धारणा के साथ-साथ इतिहासकार मानते हैं कि औरंगजब एक सख्त, कट्टर और भेदभाव करने वाला मुसलमान शासक था.       


दारा शिकोह बादशाह बनता तो क्या होता?
दिल्ली यूनिवर्सिटी के राजधानी कॉलेज में इतिहास के प्रोफेसर संतोष कुमार यादव के मुताबिक, "दारा शिकोह बादशाह था, लेकिन वो कभी बन नहीं पाया."  वो कहते हैं कि दारा शिकोह अकबर की तरह सोचता था और जो साझी विरासत को लेकर आगे चलता था. क्योंकि वो सभी धर्मों को मानता और उनको सम्मान देता था इसलिए अगर वो हिंदुस्तान का बादशाह बनता तो हो सकता है कि हिंदू-मुस्लिम के बीच विवाद नहीं होता. दरअसल, हिंदुस्तान का जो आज का संविधान है उससे दारा शिकोह की सोच मेल खाती है. यानी कि उसकी सोच में कट्टरता की जगह नहीं थी. 


प्रोफेसर संतोष कुमार कहते हैं कि दारा शिकोह की किताब 'मज्म उल बहरैन' से उसकी सोच का पता चलता है. प्रोफेसर यादव का कहना है कि औरंगजेब जब 16 साल का था तब उसे शाहजहां ने राज्य के विस्तार की जिम्मेदारी दे दी और दक्कन रवाना कर दिया. औरंगजेब ने इस अभियान में सफल रहा है और फतेह हासिल की. औरंगजेब  तलवारबाजी के जरिए युद्ध कौशल सीख रहा था. वहीं दूसरी तरफ दारा शिकोह राजमहल में बैठकर सूफी स्टाइल में विभिन्न समाजों के बीच में पूल बनाने का काम कर रहा था. इसको इस तरह से भी कहा जा सकता है कि दारा शिकोह सूफीवाद और भक्ति दोनों को आगे बढ़ा रहा था.    


प्रोफेसर संतोष यादव कहते हैं कि ये वो समय था जिसके बारे में कहा जाता है कि "तख्त और ताबूत" के लिए ही ज्यादातर लड़ाइयां होती थीं. कोई भी बादशाह और शहजादा इससे समझौता नहीं करता था. ऐसे में राजा को या तो तख्त मिलता था या फिर ताबूत. शाहजहां के तीन बेटे जमीन पर काम कर रहे थे, लेकिन दूसरी तरफ दारा शिकोह राजमहल में बैठकर पिता शाहजहां के ज्यादा करीबी होने के कारण जो चाहता था वो करता था. इस बात की चिढ़ औरंगजेब सहित उसके अन्य दो भाइयों में थी. दारा के बादशाह बनने के कम आसार थे क्योंकि हालात और औरंगजेब के युद्ध कौशल की वजह से उसका पलड़ा भारी था. 


प्रोफेसर यादव कहते हैं, 'दारा शिकोह और औरंगजेब की शिक्षा एक ही तरीके से हुई थी. शाहजहां को दारा शिकोह के प्रति ज्यादा लगाव था. औरंगजेब दक्कन में रहा और दारा शिकोह दरबार में, औरंगजेब को इस बात की चिढ़ थी. बादशाह पिता के कहने पर औरंगजेब ने राज्य का दक्कन में कुशल नेतृत्व किया वहीं दारा दरबार में बैठकर कूटनीति, बौद्धिक बातें कर रहा था ,यह बात दारा के ख़िलाफ़ गयी.'


बौद्धिक दारा शिकोह
दारा शिकोह ने फारसी में संस्कृत के कई उपनिषदों का अनुवाद कराया. उसके इस काम या संग्रह को सिर्र-ए-अकबर के नाम से जाना जाता है. दारा हिंदी अरबी और संस्कृत भाषा सहित कई भाषाएं जानता था. 


मुसलमानों ने भी औरंगजेब का विरोध किया
एक आम धारणा है कि औरंगजेब कट्टर स्वभाव का था, हालांकि इसपर भी कई मत हैं. औरंगजेब के कट्टर स्वभाव के कारण ही आज उसका विरोध किया जाता है. लेकिन संतोष कुमार यादव के मुताबिक सिर्फ हिंदुओं ने ही नहीं मुसलमानों ने भी औरंगजेब का विरोध किया था. इसका उदाहरण देते हुए उन्होंने कहा, "औरंगजेब के काजी ने ही उसका विरोध किया था. वहीं मक्का के शरीफ ने भी औरंगजेब का विरोध इस बात पर किया था कि उसके पिता शाहजहां जिंदा हैं और औरंगजेब बादशाह बन बैठा. उन्होंने औरंगजेब की तरफ से भेंट या उपहार लेने से भी मना कर दिया. बता दें कि मुगल सल्तनत के दौरान ये रिवाज था कि हर साल मक्का में उपहार स्वरूप कुछ न कुछ भेंट किया जाता था.  


मोदी सरकार क्यों खोज रही दारा की कब्र?
जिस तरह से वर्तमान में अच्छे और बुरे मुसलमान को लेकर बहस छिड़ी हुई है, इसको लेकर देश में राजनीति भी हो रही है. मोदी सरकार और बीजेपी दारा शिकोह को एक आदर्श और उदार चरित्र का मुसलमान मानती है, इसलिए वो दारा शिकोह को मुसलमानों के लिए आदर्श बनाना चाहती है. दारा शिकोह के विचारों को उजागर करने के लिए यह संभव है कि मुगल शहजादे की कब्र की पहचान की जाए और कब्र की जगह पर कोई कार्यक्रम शुरू किया जाए.


गौरतलब है कि मोदी सरकार ने एक कमेटी बनाकर दारा शिकोह की कब्र को खोजने का जिम्मा सौंपा है. दारा का जन्म 11 मार्च 1615 को राजस्थान के अजमेर में हुआ था. उनकी शादी 1633 में नादिरा बेगम से हुई थी, लेकिन राज गद्दी पाने के संघर्ष में 30 अगस्त 1659 दिल्ली में उनकी हत्या करवा दी गई.