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दिल्ली सरकार बनाम उपराज्यपाल की जंग, सुप्रीम कोर्ट ने पूछा- 'मंत्रिपरिषद की सलाह के बिना कैसे काम कर सकते हैं LG?'

Delhi Government vs LG Tussle: सुप्रीम कोर्ट ने इससे पहले दिल्ली सरकार की याचिका पर LG को नोटिस जारी किया था. आम आदमी पार्टी ने इस मामले में 10 मनोनीत सदस्यों की सदस्यता को रद्द करने की मांग की है.

"कुछ लोग आईआईटी से डिग्री लेने के बाद भी अशिक्षित रह जाते हैं..." हाल ही में दिल्ली के उपराज्यपाल विनय कुमार सक्सेना ने ये बयान दिया था, जिसकी खूब चर्चा हुई. ये बयान दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल पर एक जोरदार कटाक्ष की तरह था, जो पीएम मोदी के कम पढ़े-लिखे होने को लेकर लगातार बयान दे रहे थे. एलजी के इस बयान के बाद एक बार फिर दिल्ली सरकार बनाम उपराज्यपाल की लड़ाई शुरू हो गई. इसी बीच सुप्रीम कोर्ट की तरफ से एक अहम टिप्पणी आई है, जिसे लेकर दिल्ली सरकार अब एलजी पर निशाना साध रही है. आइए जानते हैं कि ताजा विवाद क्या है और दिल्ली में एलजी बनाम सरकार की लड़ाई हर बार सामने क्यों आती है. 

सुप्रीम कोर्ट ने पूछा- बिना सलाह के कैसे कर सकते हैं काम?
एलजी सक्सेना और मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के बीच चल रही जुबानी जंग ने दिल्ली की राजनीति को गरमा दिया था, इसी बीच सोमवार 10 अप्रैल को सुप्रीम कोर्ट की तरफ से एलजी पर सख्त टिप्पणी की गई. जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने पूछा- "उपराज्यपाल मंत्रिपरिषद की सलाह के बिना कैसे काम कर सकते हैं?" दिल्ली नगर निगम में 10 सदस्यों को मनोनीत करने के मामले को लेकर सुप्रीम कोर्ट की तरफ से ये टिप्पणी की गई. सुप्रीम कोर्ट की इस टिप्पणी की खबर को दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने भी ट्वीट किया है. 

सुप्रीम कोर्ट ने इससे पहले दिल्ली सरकार की याचिका पर नोटिस जारी किया था. आम आदमी पार्टी ने इस मामले में 10 मनोनीत सदस्यों की सदस्यता को रद्द करने की मांग की है. सुप्रीम कोर्ट ने अब इस याचिका पर जवाब दाखिल करने के लिए अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल संजय जैन की अपील पर एलजी ऑफिस को 10 दिन का समय दिया है. सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़, जस्टिस पीएस नरसिम्हा और जस्टिस जेबी पारदीवाला की बेंच ने मामले पर सुनवाई करते हुए कहा, “उपराज्यपाल मंत्रिपरिषद की सहायता और सलाह के बिना फैसला कैसे ले सकते हैं? यह सहायता और सलाह पर किया जाता है.’’

एनसीटी एक्ट का भी जिक्र
इस पूरी सुनवाई के दौरान राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र शासन अधिनियम (NCT) 2021 का भी जिक्र हुआ. जिसे एक अलग याचिका के जरिए सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई है. अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल ने शुरुआत में कहा कि जीएनसीटीडी अधिनियम (राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र सरकार अधिनियम) की धारा 44 में संशोधन सुप्रीम कोर्ट की एक संविधान पीठ के 2018 के फैसले के बाद किया गया था. 

अब इस पूरे मामले को समझने के लिए इसकी पूरी क्रोनोलॉजी को समझना जरूरी है. ये पहली दफा नहीं है जब सुप्रीम कोर्ट ने एलजी के अधिकारों पर सवाल उठाए हों, इससे पहले भी सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक बेंच ने कामकाज को लेकर एलजी को बताया था कि वो सरकार के कामकाज में खलल नहीं डाल सकते हैं. 

सुप्रीम कोर्ट ने तय किया था दिल्ली का 'बॉस'
कई सालों से चले आ रहे दिल्ली सरकार बनाम उपराज्यपाल के झगड़े को लेकर 4 जुलाई 2018 को सुप्रीम कोर्ट ने एक अहम फैसला सुनाया था. जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने साफ कर दिया था कि दिल्ली में चुनी हुई सरकार ही असली बॉस होगी. सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा था कि दिल्ली में चुनी हुई सरकार को जमीन, पुलिस और कानून व्यवस्था के अलावा सभी मामलों पर फैसला लेने का अधिकार है. इन तीन मसलों के अलावा दिल्ली विधानसभा किसी भी चीज को लेकर कानून बना सकती है.

मतभेद को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा था कि रेयरेस्ट ऑफ रेयर केस में ही एलजी दखल दे सकते हैं. हर मामले पर दखल नहीं दिया जा सकता है. इस दौरान सुप्रीम कोर्ट ने साफ कहा था कि अराजकता की कोई जगह नहीं है. सभी अपनी जिम्मेदारी निभाएं, एलजी मनमाने तरीके से सरकार के फैसलों को नहीं रोक सकते हैं. 

केंद्र सरकार ने बनाया कानून
सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के बाद दिल्ली सरकार ने इसका जमकर जश्न मनाया था. दिल्ली सरकार ने फैसले का स्वागत करते हुए कहा था कि लोकतंत्र की जीत हुई है और अब एलजी की मनमानी नहीं चलेगी. हालांकि इसके बाद केंद्र सरकार की तरफ से संसद में एक बिल पेश किया गया, जिसमें सीधे ये कहा गया था कि "दिल्ली में सरकार का मतलब उपराज्यपाल हैं." गवर्नमेंट ऑफ नेशनल कैपिटल टेरिटरी ऑफ दिल्ली बिल 2021 को भारी हंगामे के बीच दोनों सदनों से पास कर दिया गया. इसके बाद इसे नोटिफाई भी कर दिया गया. हालांकि बाद में दिल्ली सरकार ने इस नोटिफिकेशन के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की. एनसीटी बिल में ये प्रावधान थे - 

  • विधानसभा की शक्तियों के दायरे से बाहर किसी भी मामले में एलजी की मंजूरी लेना जरूरी होगा. यानी एडिशनल कैटेगरी वाले बिलों पर एलजी रोक लगा सकते हैं. 
  • अगर राज्य सरकार या फिर उसकी कोई कमेटियां प्रशासनिक मामलों को लेकर कोई नियम बनाना चाहती है तो उसे इससे पहले उपराज्यपाल की मंजूरी लेनी होगी. ऐसा नहीं करने पर फैसले को नहीं माना जाएगा. 
  • मंत्रिमंडल या फिर किसी मंत्री को अगर कोई फैसला लेना है या फिर उसे लागू करना है तो पहले इसकी फाइल एलजी को भेजनी होगी. सभी फाइलों पर एलजी की मंजूरी जरूरी होगी. 

सुप्रीम कोर्ट में चल रही सुनवाई
केंद्र सरकार की तरफ से 'दिल्ली सरकार का मतलब एलजी' वाला कानून लाया गया तो ये मामला फिर से सुप्रीम कोर्ट में चला गया. जिसे लेकर सुप्रीम कोर्ट में लंबी बहस भी हो चुकी है. चीफ जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़, जस्टिस एम आर शाह, जस्टिस कृष्ण मुरारी, जस्टिस हिमा कोहली और जस्टिस पीएस नरसिम्हा की पांच जजों की बेंच ने इस मामले पर सुनवाई की. जनवरी में हुई सुनवाई के दौरान भी सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले को लेकर तल्ख टिप्पणी की थी. केंद्र सरकार की तरफ से पेश हुए सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता से सीजेआई चंद्रचूड़ ने कहा- "अगर केंद्र सरकार के फैसले और कहने पर ही प्रशासन चलाना है तो चुनी हुई सरकार का क्या मतलब है."

फिलहाल दिल्ली सरकार को इस मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले का इंतजार है. जहां एक लड़ाई कानूनी तौर पर कोर्ट में चल रही है, वहीं दूसरी तरफ दिल्ली के एलजी और मुख्यमंत्री एक दूसरे के आमने-सामने हैं. वहीं दिल्ली सरकार के मंत्री लगातार एलजी पर आरोप लगा रहे हैं कि वो सरकार के कामकाज का क्रेडिट ले रहे हैं. यानी फिलहाल ये लड़ाई खत्म होने की जगह बढ़ती दिख रही है. 

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