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हिंदुत्व के मुद्दे पर उद्धव ठाकरे को कैसे पछाड़ने में जुटे हैं एकनाथ शिंदे, पार्टी के बाद अब खिसक रही सियासी जमीन?

Maharashtra Politics: एकनाथ शिंदे ने अलग होने के बाद हर मंच से यही कहा कि उद्धव ठाकरे अपनी विचारधार से भटक गए थे. क्योंकि बाला साहेब ठाकरे ने हमेशा कांग्रेस से दूरी बनाए रखी.

Maharashtra Politics: महाराष्ट्र में उद्धव ठाकरे सरकार को गिराने के बाद अब एकनाथ शिंदे हर मोर्चे पर उन्हें पटखनी देने का काम कर रहे हैं. मुख्यमंत्री का पद मिलने के बाद उन्होंने पार्टी के चुनाव चिन्ह पर दावा किया और चुनाव आयोग से इसे मंजूरी भी दे दी गई. ये उद्धव ठाकरे के लिए सबसे बड़ा झटका था, क्योंकि शिंदे असली शिवसेना का दर्जा उनके हाथों से छीनकर ले गए और वो देखते रहे. पार्टी के बाद अब शिंदे एक ऐसा चक्रव्यूह रच रहे हैं, जिसमें अगर वाकई उद्धव ठाकरे फंस गए तो जमीनी स्तर पर भी पुरानी शिवसेना का अस्तित्व खतरे में आ जाएगा. इस हथियार का नाम हिंदुत्व है, जिसका इस्तेमाल एकनाथ शिंदे ने करना शुरू कर दिया है. आइए समझते हैं कैसे... 

एकनाथ शिंदे का अयोध्या दौरा
महाराष्ट्र की सत्ता से उद्धव ठाकरे को उखाड़ने के बाद और सीएम बनने के बाद पहली बार एकनाथ शिंदे अयोध्या पहुंचे. शिंदे ने यहां रामलला के दर्शन किए और पूरे देश को ये मैसेज दिया कि वो हिंदुत्व के कितने करीब हैं. इस दौरान शिंदे ने साफ कहा कि राम मंदिर का सपना शिवसेना और बाला साहेब ठाकरे ने देखा था, जो अब पूरा होने जा रहा है. इतना ही नहीं, शिंदे ने ये भी कहा कि हमारा दल बाला साहेब ठाकरे की विचारधारा को आगे बढ़ा रहा है. शिंदे ने अयोध्या में दर्शन के बाद राम मंदिर को हिंदुत्व का प्रतीक बताया. 

अब एकनाथ शिंदे के अयोध्या दौरे के सियासी मायने साफ नजर आ रहे हैं. दरअसल 2024 विधानसभा चुनाव से पहले शिंदे की कोशिश है कि वो उद्धव ठाकरे को विचारधारा के मामले में चारों खाने चित कर दें. यानी शिवसेना को अपना बनाने के बाद अब एकनाथ शिंदे हिंदुत्व की विचारधारा के सहारे महाराष्ट्र में चुनावी समीकरण बनाने में जुटे हैं. हालांकि ऐसा पहली बार नहीं है जब शिंदे ने ऐसी कोशिश की हो, बगावत के बाद से ही वो लगातार इस काम में जुटे हैं और कहीं न कहीं इसमें सफल होते भी दिख रहे हैं. 

खिसक रही उद्धव ठाकरे की सियासी जमीन?
उद्धव ठाकरे ने महाराष्ट्र में बीजेपी का हाथ छोड़कर कांग्रेस और एनसीपी के साथ मिलकर सरकार बनाई थी. इसके बाद से ही उनकी विचारधारा पर उनके विरोधी सवाल खड़े करने लगे. एकनाथ शिंदे की नाराजगी की भी यही वजह थी, इसके बाद लगातार पार्टी में विरोधी सुर उठते रहे और शिंदे अपना कुनबा तैयार करते रहे. नतीजा ये हुआ कि एमवीए सरकार गिर गई. 

एकनाथ शिंदे ने अलग होने के बाद हर मंच से यही कहा कि उद्धव ठाकरे अपनी विचारधार से भटक गए थे. क्योंकि बाला साहेब ठाकरे ने हमेशा कांग्रेस से दूरी बनाए रखी और इसे हिंदुत्व विरोधी बताते रहे, ऐसे में उद्धव का कांग्रेस से हाथ मिलाना अब उनके लिए घातक साबित हो सकता है. अपने ही पिता की विचारधारा से अलग हटने को लेकर शिंदे लगातार उद्धव पर हमला बोल रहे हैं, जिससे उद्धव ठाकरे वाली शिवसेना की सियासी जमीन खिसक सकती है. साल 2024 के चुनावों तक शिंदे खुद को हिंदुत्व का एक बड़ा चेहरा बनाने की पूरी कोशिश कर रहे हैं. इसके अलावा वो बाला साहेब की विरासत को भी उद्धव से छीनना चाहते हैं, अगर वाकई में ऐसा हुआ तो ये ठाकरे परिवार के लिए काफी घातक साबित हो सकता है. 

क्या किंगमेकर रहना चाहते हैं शिंदे?
अब एकनाथ शिंदे की रणनीति क्या हो सकती है, इस पर बात करते हैं. एकनाथ शिंदे पिछले कई महीनों से हिंदुत्व के पिच पर तो लगातार खेल ही रहे हैं, लेकिन वो खुद के लिए भी महाराष्ट्र में एक ऐसी पिच तैयार कर रहे हैं, जो उनकी आगे की राजनीति को स्थिर रख सके. दरअसल एकनाथ शिंदे भी अब बाला साहेब ठाकरे की राह पर चल सकते हैं, ठाकरे का साफ कहना था कि वो खुद राजनीति में नहीं आएंगे. बाला साहेब खुद को एक किंगमेकर कहते थे, वो कहते थे कि उन्हें कुर्सी की कोई जरूरत नहीं है क्योंकि वो उससे ऊपर हैं. अब एकनाथ शिंदे भी महाराष्ट्र में किंगमेकर की ही भूमिका में रह सकते हैं. 

हिंदुत्व की पिच पर क्यों खेलने दे रही बीजेपी?
अब सवाल ये उठता है कि एकनाथ शिंदे को बीजेपी अपनी हिंदुत्व वाली पिच पर ऐसे खुलकर क्यों बैटिंग करने दे रही है. इसके पीछे की पूरी रणनीति को भी समझा जा सकता है. इसके लिए थोड़ा पीछे जाना होगा... चुनाव नतीजों के बाद 2019 में जब बीजेपी और देवेंद्र फडणवीस सत्ता में आने के लिए तैयार बैठे थे तो उद्धव ठाकरे ने हाथ पीछे खींच लिए और बीजेपी विपक्ष में बैठकर रह गई. ये टीस लगातार फडणवीस को सताती रही, इसके बाद उन्हें एक मौके का इंतजार था. कई बार सरकार गिराने को लेकर खुलेआम बयानबाजी भी हुई. 

जब एकनाथ शिंदे की बगावत वाली चिंगारी बीजेपी को नजर आई तो तुरंत उसे सुलगाने का काम शुरू हो गया. आखिरकार शिंदे बीजेपी ने शिंदे से हाथ मिलाया और पूरी बिसात बिछाई गई, बीजेपी शासित राज्यों में शिवसेना के विधायकों को हाई सिक्योरिटी में ठहराया गया. यहां से साफ हो चुका था कि बीजेपी ने शिंदे के कंधे पर बंदूक रखकर चला दी है, जिसकी गोली सटीक निशाने पर लगी है. 

बीजेपी को फायदा और शिंदे को नुकसान?
बीजेपी को ऐसी पार्टी माना जाता है जिसकी नजर हमेशा चुनावों पर रहती है और इसके लिए तैयारियां कभी खत्म नहीं होतीं, ऐसे में ये साफ है कि बीजेपी अगर शिंदे के हिंदुत्व के मुद्दे पर खेलने दे रही है तो उसके पीछे जरूर कोई बड़ी रणनीति होगी. दरअसल बीजेपी का पहला मकसद ठाकरे परिवार के कोर वोट को कम और खत्म करना है, इसके लिए शिंदे से अच्छा हथियार पार्टी को नहीं मिल सकता. 

शिंदे चुनाव में सीधे शिवसेना के वोट काटेंगे, जिसका सीधा फायदा बीजेपी को होगा. यानी बीजेपी महाराष्ट्र में और ज्यादा मजबूत होती जाएगी. अब बात शिंदे के हिंदुत्व की रही तो बीजेपी ने खुद को हिंदुत्व का इतना बड़ा ब्रैंड एंबेसेडर बना दिया है कि शिंदे जैसे नेताओं का हिंदुत्व उसके सामने कहीं भी नहीं टिक पाएगा. यानी बीजेपी ने एक तीर से कई शिकार करने का प्लान बनाया है, शिंदे ऐसे मुद्दे उठा रहे हैं जो बीजेपी काफी पहले से उठाती रही है. ऐसे में मौका आने पर उनकी आवाज बीजेपी की बुलंद हिंदुत्व वाली आवाज के पीछे दब जाएगी. यानी उद्धव ठाकरे वाली शिवसेना की जमीन तो खिसक ही जाएगी, एकनाथ शिंदे भी अपनी ताकत को नहीं बढ़ा पाएंगे. 

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