Fact About Aravalli Mountain: विश्व की प्राचीनतम पर्वतमालाओं (Mountain Range) में एक अरावली (Aravalli) उत्तर भारतीय (North India) पर्वतमाला है. ये पर्वतमाला 692 किलोमीटर लंबी है जो राजस्थान, गुजरात, हरियाणा और दिल्ली जैसे भारत के 4 राज्यों में फैली है. ये पर्वतमाला गुजरात (Gujarat) के खेड़ ब्रह्मा (Kher Brahma) से शुरू होकर राजस्थान (Rajasthan) के अजमेर (Ajmer) और जयपुर (Jaipur) होती हुई हरियाणा (Haryana) के दक्षिणी भाग में प्रवेश करती हुई दिल्ली (Delhi) के दक्षिणी भाग तक चली जाती है. दिल्ली तक पहुंचते-पहुंचते इसकी ऊंचाई कम होने लगती है और ये मैदानी इलाके में तब्दील हो जाती है.


अरावली रेंज मुख्यरूप से तीन भागों में बाटी गई है. इसमें जरगा रेंज, हर्षनाद रेंज और दिल्ली रेंज आते हैं. अरवाली में ज्यादातर जंगल इसके दक्षिण के पहाड़ों में पाए जाते हैं. उत्तर में पहाड़ियां पथरीली हैं, सिरोही से लेकर खेतड़ी तक अरावली अबाध्य है और आगे उत्तर में छोटी-छोटी श्रंखलाओं के रूप में दिल्ली तक फैली हुई है. इसकी सबसे ऊंची चोटी गुरुशिखर सिरोही जिले में ही स्थित है जो 1772 मीटर ऊंची है. अरावली का पश्चिमी क्षेत्र मारवाड़ और पूर्वी भाग मेवाड़ कहलाता है. इस पर्वतमाला के आसपास भील जनजाति निवास करती है. इस पर्वतमाला में केवल दक्षिणी क्षेत्र ही जगलों वाला है नहीं तो अधिकांश इलाके में रेत और पत्थर हैं.


अरावली की विशेषताएं और महत्त्व


अरावली पर्वतमाला की अद्भुत विशेषताएं हैं. इस पर्वत श्रंखला का विस्तार उत्तर-पूर्व से लेकर दक्षिण-पश्चिम तक किया गया है. दक्षिण-पश्चिम में नुकीले, तेजधार और संकरे पर्वत शिखर पाए जाते हैं. वहीं दूसरी ओर उत्तर-पश्चिमी भारत में ये श्रंखला बारिश के सामान्य वितरण को प्रभावित करती है. दक्षिणी पश्चिमी मानसून की दिशा के अनकूल फैले होने के कारण जलभरी हवाएं इसके समानांतर प्रवाहित होकर हिमालय तक बिना रुके चली जाती हैं और यही कारण है कि राजस्थान के ज्यादातर इलाकों में बारिश नहीं हो पाती है.


रायशेला पहाड़ी पर राष्ट्रपति भवन


दिल्ली में स्थित राष्ट्रपति भवन रायशेला पहाड़ी पर ही बना हुआ है जो अरावली पर्वत श्रंखला का ही भाग है. इसे इसका उत्तरी छोर कहा जाता है. दिल्ली में केवल ही है जहां से ग्राउंड वाटर रीचार्ज होता है. कहने का मतलब ये है कि बोरिंग का पानी जो घरों और खेतों में पहुंचता है वो यहीं से पहुंचता है. इतना ही नहीं सीजीडब्ल्यूए की रिपोर्ट में इस पूरे क्षेत्र को क्रिटिकल ग्राउंड वाटर रीचार्ज जोन कहा गया है.


रायसीना नाम के पीछे है यह रोचक कारण


क्या आपने कभी सोचा है कि अरावली की पहाड़ियों की इस जगह का नाम रायसीना क्यों पड़ा? इसके पीछे का कारण यह है कि साल 1912 में तत्कालीन ब्रिटिश सरकार ने रायसीना हिल्स पर 'वॉयसरॉय हाउस' बनाने का सोचा. इस जगह पर 300 परिवार रहते थें जिन्हें रायसीना के नाम से जाना जाता था. सरकार ने इन रायसीना परिवारों के जमीन को अधिग्रहण कर लिया और तब से इस जगह का नाम रायसीना पड़ गया. इस पूरी जगह की 4000 एकड़ जमीन पर राष्ट्रपति भवन बना हुआ है.


राष्ट्रपति भवन बनने में लगे थे 12 साल


साल 1911 में अंग्रेजों ने भारत (India) की राजधानी कोलकाता (Kolkata) से दिल्ली (Delhi) ट्रांसफर करने का फैसला किया. इसके बाद साल 1912 में रायसीना (Raisina) पर 'वॉयसरॉय हाउस' बनाने का फैसला किया गया. इसके लिए 4 साल का समय तय किया गया. इसी बीच पहला विश्व युद्ध (World War) साल 1914 में शुरू हो गया. इस कारण वॉयसरॉय हाउस को बनने में चार साल के बजाय 19 साल का वक्त लग गया. आपको बता दें कि इस भवन के मुख्य शिल्पकार 'एडविन लैंडसीर लुटियंस' थे. 23 जनवरी 1931 में इसके बनकर तैयार होने के बाद 'वॉयसरॉय ऑफ इंडिया' लॉर्ड इरविन (Lord Irvin) यहां रहने आए. साल 1950 तक इसे 'वॉयसरॉय हाउस' कहा जाता था और बाद में इस इलाके का नाम लुटियंस रख दिया गया.


ये भी पढ़ें: बेहद खास है राष्ट्रपति भवन के पास का रायसीना हिल्स, जानें इसके रोचक तथ्यों के बारे में


ये भी पढ़ें: आधुनिक इंजीनियरिंग का अद्भुत उदाहरण: दस लाख साल पुरानी चट्टानों के भीतर से बनी है ये सुरंग