पिछले कुछ सालों से हमारे देश में एक जांच एजेंसी का नाम बहुत ज्यादा सुर्खियों में रहा है, और वह है ईडी यानी प्रवर्तन निदेशालय. ईडी की स्थापना मनी लॉन्ड्रिंग संबंधी मामलों की जांच करने के लिए की गई थी. लेकिन पिछले कुछ सालों में इस जांच एजेंसी ने कई नेताओं और अफसरों के पसीने छुड़ा दिए हैं. 


अब खबर आ रही है कि दिल्ली शराब घोटाले में चल रही जांच के सिलसिले में सीबीआई ने ईडी के ही एक वरिष्ठ अधिकारी सहित कई लोगों के खिलाफ केस दर्ज कर लिया है. 


दरअसल बीते सोमवार यानी 28 अगस्त को सीबीआई ने दिल्ली शराब घोटाले में चल रही जांच के सिलसिले में प्रवर्तन निदेशालय के एक वरिष्ठ अधिकारी को गिरफ्तार कर लिया. आरोप है कि प्रवर्तन निदेशालय के असिस्टेंट डायरेक्टर पवन खत्री ने दिल्ली शराब घोटाला मामले में आरोपी व्यवसायी अमनदीप सिंह ढल्ल से 5 करोड़ रुपये की रिश्वत ली थी. 


ईडी की शिकायत पर ही शुरू की गई जांच


सीबीआई की ये कार्रवाई प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) की ही एक शिकायत पर शुरू की गई थी. दरअसल ईडी को पता चला की दिल्ली सरकार की एक्साइज पॉलिसी केस की जांच के दौरान आरोपी अमनदीप ढल्ल और उनके पिता बीरेंद्र पाल सिंह ने उनके ही जांच एजेंसी के किसी अधिकारी को 5 करोड़ रुपये की रिश्वत दी थी. 


जिसके बाद ईडी के अनुरोध पर असिस्टेंट डायरेक्टर पवन खत्री और अपर डिविजनल क्लर्क नितेश कोहर के खिलाफ रिश्वत के आरोप में एफआईआर दर्ज की गई थी. 


इन दोनों अधिकारियों के अलावा सीबीआई ने एयर इंडिया के सहायक महाप्रबंधक दीपक सांगवान, क्लेरिज होटल्स एंड रिसॉर्ट्स के सीईओ विक्रमादित्य, चार्टर्ड अकाउंटेंट प्रवीण कुमार वत्स और दो अन्य- ईडी में यूडीसी नितेश कोहर और बीरेंद्र पाल सिंह को भी नामजद किया है. 


अब समझते हैं क्या है पूरा मामला 


दरअसल शराब नीति मामले में चल रही जांच के दौरान अमनदीप सिंह ढल्ल और बीरेंद्र पाल सिंह ने दिसंबर 2022 और जनवरी 2023 के बीच आरोपियों की मदद करने के लिए चार्टर्ड अकाउंटेंट प्रवीण कुमार वत्स को 5 करोड़ रुपये दिए थे. 


प्रवर्तन निदेशालय को दिए अपने बयान में प्रवीण वत्स कहते हैं कि, 'दीपक सांगवान ने उनसे कहा था कि उन्हें कुछ पैसे मिलते हैं तो वह उसके बदले अमनदीप ढल्ल को गिरफ्तारी से बचा लेंगे. जिसके बाद सांगवान ने साल 2022 के दिसंबर महीने में प्रवीण वत्स को ईडी के वरिष्ठ अधिकारी पवन खत्री से मिलवाया.


प्रवीण वत्स के अनुसार उन्होंने आरोपियों की लिस्ट से ढल्ल का नाम हटाने के लिए साल 2022 के दिसंबर महीने में ही वसंत विहार में आईटीसी होटल के पीछे एक पार्किंग लॉन में पर सांगवान और खत्री को 50 लाख रुपये का एडवांस भुगतान किया था.


गिरफ्तारी से बचने के लिए प्रवीण वत्स ने साल 2022 के दिसंबर महीने से लेकर साल 2023 के जनवरी महीने तक अमनदीप ढल्ल से 50-50 लाख रुपये की छह किश्तों में 3 करोड़ रुपये लिए. 


दीपक सांगवान ने 3 करोड़ लेने के बाद वत्स को बताया कि अगर अमनदीप सिंह ढल्ल दो करोड़ और देते हैं तो उनका नाम आरोपी की सूची  से बाहर कर दिया जाएगा. प्रवीण वत्स ने जब अमनदीप ढल्ल को यह ऑफर दिया तो वह सहमत हो गए और एक बार फिर दीपक सांगवान ने वत्स से 50-50 लाख रुपये की चार किस्तों में 2 करोड़ रुपये और ले लिए.


हालांकि सांगवान के आश्वासन दिलाए जाने के बाद भी 1 मार्च, 2023 को अमनदीप ढल्ल को ईडी ने गिरफ्तार कर लिया. अमनदीप की गिरफ्तारी हो जाने के बाद प्रवीण वत्स ने एक बार फिर दीपक सांगवान से मुलाकात की. इस बार सांगवान ने कहा कि अमनदीप को गिरफ्तार करने के निर्देश उन्हें उच्च अधिकारियों से आए थे जिस पर वह कुछ भी नहीं कर सकते. 


काम नहीं होने पर पैसे मांगे गए वापस


दीपक सांगवान ने अपने बयान में बताया कि अमनदीप की गिरफ्तारी के बाद ढल्ल के परिवार से लिए गए पैसे को लौटाने को लेकर जून में प्रवीण से मिले थे. इसी तरह बैठकों में प्रवर्तन निदेशालय के दो आरोपी अधिकारी पवन खत्री और नितेश कोहर भी उनके साथ मौजूद थे.


इस दौरान ईडी के कुछ अधिकारियों को रिश्वत लेने के बारे में पता चला और ईडी अधिकारियों ने इसका जांच शुरू कर दी. जांच के दौरान ही ईडी के संदिग्ध अधिकारियों और मामले में आरोपियों के घरों की तलाशी गई. जिस दौरान प्रवीण वत्स के आवास से 2.19 करोड़ रुपये नकद और 1.94 करोड़ रुपये के हीरे के जेवर मिले. इसके अलावा उनके बैंक खाते में 2.62 करोड़ रुपये भी थे.


प्रवीण वत्स के घर में सबूत 


प्रवर्तन निदेशालय ने प्रवीण वत्स के घर से न सिर्फ कैश और गहने बल्कि दो लग्जरी कारें भी जब्त कीं. इसी दौरान ईडी अधिकारियों और इस मामले के अन्य आरोपियों के घर से कई आपत्तिजनक सबूत भी मिले.


इंडिया टुडे की एक रिपोर्ट के अनुसार इस जांच के दौरान पता चला है कि रिश्वत लेने वाले दोनों ईडी अधिकारी शराब नीति घोटाले की जांच करने वाले टीम का हिस्सा थे ही नहीं. 


उनका प्लान अमनदीप सिंह ढल्ल से 30 करोड़ रुपये वसूलने का था. जिसके बाद ईडी के आदेश पर एफआईआर दर्ज की गई और सीबीआई ने आरोपियों से जुड़े परिसरों की तलाशी भी ली.


अब जानते है कि ये प्रवर्तन निदेशालय क्या है?


ईडी की स्थापना 1 मई 1956 को मनी लॉन्ड्रिंग संबंधी मामलों की जांच करने के लिए हुई थी. पहले इसका नाम ‘प्रवर्तन इकाई’ था, जिसे साल 1957 में बदल दिया गाय और ‘प्रवर्तन निदेशालय’ कर दिया गया. 


साल 1960 में इसका प्रशासनिक नियंत्रण आर्थिक मामलों के विभाग से राजस्व विभाग के पास आ गया. मनी लॉन्ड्रिंग से जुड़े मामलों में यह एजेंसी पीएमएलए कानून के तहत काम करती है. 


सीबीआई क्या है 


सीबीआई प्रवर्तन निदेशालय की तरह ही केंद्र के आधीन रहकर काम करने वाली जांच एजेंसी है. इसकी स्थापना साल 1963 में हुई थी. यह कार्मिक विभाग, कार्मिक पेंशन और लोक शिकायत मंत्रालय, भारत सरकार के अधीन काम करने वाली एक प्रमुख जांच एजेंसी है. 


सीबीआई भारत सरकार के ऑर्डर पर देश के किसी भी कोने में जांच कर सकती है. सीबीआई मुख्य तौर पर भ्रष्टाचार, हत्या और घोटालों के मामलों की जांच करती है. 


ईडी और सीबीआई कितने अलग हैं?


ईडी और सीबीआई दोनों ही केंद्रीय जांच एजेंसियां हैं. यह दोनों एजेंसी भारत के किसी भी हिस्से में जांच कर सकती है. लेकिन, दोनों की जांच करने के तरीके में बहुत फर्क है.


प्रवर्तन निदेशालय सिर्फ मनी लॉन्ड्रिंग से जुड़े मामलों पर कार्रवाई करती है, जबकि सीबीआई किसी मामले की जांच कर सकती है. इसके अलावा सीबीआई को जांच के लिए राज्य सरकार से अनुमति लेनी पड़ती है, जबकि ईडी को इसकी जरूरत नहीं होती.