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Explainer: मुस्लिमों को लेकर RSS प्रमुख मोहन भागवत के बयान के क्या हैं मायने, समझें विस्तार से

RSS chief: मोहन भागवत के बयान में बहुत कुछ छिपा है. इसमें राजनीतिक के साथ ही सामाजिक एजेंडा भी शामिल है. छवि सुधारने की कोशिश से भी इंकार नहीं किया जा सकता.

Mohan Bhagwat On Muslims: राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) प्रमुख मोहन भागवत ऐसे तो हमेशा ही सुर्खियों में रहते हैं, लेकिन मुस्लिमों पर ताजा बयान के बाद हर जगह उनकी ही चर्चा हो रही है.

आरएसएस के मुखपत्र ऑर्गनाइजर और  पाञ्चजन्य को दिए इंटरव्यू में मोहन भागवत ने अन्य मुद्दों के साथ ही मुस्लिमों को लेकर भी बयान दिया है. उन्होंने कहा है कि भारत में मुस्लिमों को डरने की जरुरत नहीं है, लेकिन उसके साथ ही मोहन भागवत ने मुस्लिमों से श्रेष्ठता भाव को छोडने की भी अपील की है.

आरएसएस प्रमुख के बयान के क्या हैं मायने?

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक मोहन भागवत के ताजा बयानों से एक नई बहस छिड़ गई है. सामाजिक विश्लेषण के साथ ही राजनीतिक मायने निकालने की भी कोशिश की जा रही है. कांग्रेस समेत तमाम विपक्षी दलों की ओर से प्रतिक्रियाएं आई हैं. राजनीतिक गलियारों में मंथन होने लगा है किआखिर इस वक्त मोहन भागवत को इस तरह का बयान क्यों देना पड़ा. 

पहले मोहन भागवत के इंटरव्यू के उस हिस्से पर नजर डालते हैं, जिसको लेकर सियासी घमासान मचा हुआ है. मोहन भागवत का बयान इस रूप में है:

"आज हमारे भारत में जो मुसलमान हैं, उनको कोई नुकसान नहीं है. वह हैं, रहना चाहते हैं, रहें. पूर्वजों के पास वापस आना चाहते हैं, आएं. उनके मन पर है. हिन्दुओं में ये आग्रह है ही नहीं. इस्लाम को कोई खतरा नहीं है. हां, हम बड़े हैं, हम एक समय राजा थे, हम फिर से राजा बनें, यह छोड़ना पड़ेगा. हम सही हैं, बाकी गलत, यह सब छोड़ना पड़ेगा. हम अलग हैं, इसलिए अलग ही रहेंगे. हम सबके साथ मिलकर नहीं रह सकते, यह छोड़ना पड़ेगा.  किसी को भी छोड़ना पड़ेगा. ऐसा सोचने वाला कोई हिन्दू है, उसको भी छोड़ा पड़ेगा. कम्युनिस्ट है, उनको भी छोड़ना पड़ेगा."
 
सुरक्षा की भावना जगाने का संदेश

मोहन भागवत ने ये बातें जनसंख्या असुंतलन से जड़े सवाल के जवाब में कही थी. उनके इन वाक्यों में बहुत कुछ छिपा है. इसके जरिए मोहन भागवत सबसे पहला संदेश देना चाह रहे हैं कि भारत सभी धर्मों के लोगों के लिए बिल्कुल सुरक्षित है. यहां पर उन्होंने ये भी जोड़ा है कि मुस्लिमों को खुद को ही श्रेष्ठ मानने के भाव से दूर होना होगा. मुस्लिमों के साथ ही उन्होंने जिन हिन्दुओं में  श्रेष्ठता का भाव आ रहा है, उनको भी साधने की कोशिश की है. मोहन भागवत के जरिए आरएसएस की हिन्दु-मुस्लिम के बीच संतुलन साधने की कोशिश दिखाई दे रही है. 

मुस्लिम विरोधी माहौल को देखते हुए बयान

मई 2014  से केंद्र की राजनीति में बीजेपी के वर्चस्व का दौर शुरू हुआ. अगले तीन-चार सालों में कई ऐसी घटनाएं हुईं, जिसके बाद देश में मुस्लिम सुरक्षा को लेकर बहस तेज हो गई. गौ रक्षा और बीफ के नाम पर मॉब लिंचिंग की घटनाएं एक के बाद एक सामने आने लगी. ह्यूमन राइट्स वॉच (Human Rights Watch)की मानें, तो मई 2015 से दिसंबर 2018 के बीच इस तरह की घटनाओं में 44 लोगों की जान चली गई, जिसमें 36 मुस्लिम थे. देश के कुछ सेलेब्रिटिज़ ने भी डर के माहौल से जुड़ा बयान देकर बहस को तेज कर दिया. अमेरिका की ओर से जारी अंतरराष्ट्रीय धार्मिक स्वतंत्रता रिपोर्ट 2021 (IRF2021) में कहा गया कि भारत में अल्पसंख्यक समुदाय के लोगों पर हमले होते रहते हैं. रिपोर्ट में गोहत्या या बीफ के कारोबार के आरोपों में गैर-हिन्दुओं के खिलाफ हमले की घटनाओं का भी जिक्र किया गया.    

अंतरराष्ट्रीय स्तर पर छवि सुधारने की कोशिश

मोहन भागवत के मुस्लिमों पर हालिया बयान को अंतरराष्ट्रीय छवि सुधारने की कोशिश के तौर पर भी देखा जाना चाहिए.  भारत फिलहाल दुनिया के सबसे बड़े आर्थिक समूह G20 की अध्यक्षता की जिम्मेदारी निभा रहा है. आने वाले कुछ महीनों में इस मंच के जरिए भारत को दिखाना है कि वो हर मोर्चे पर दुनिया की अगुवाई करने को बिल्कुल तैयार है. जी 20 अध्यक्ष के तौर पर भारत को ये भी साबित करना है कि वो छोटे-छोटे गरीब और अल्पविकसित देशों की भी आवाज है. भारत 'फर्स्ट वर्ल्ड या थर्ड वर्ल्ड नहीं, सिर्फ वन वर्ल्ड' की बात करता है. ऐसे में दुनिया में ये संदेश जाना बेहद जरूरी है कि यहां मुस्लिम पूरी तरह से सुरक्षित हैं और हिन्दू उनके साथ मिलकर रहने के इच्छुक हैं. आरएसएस प्रमुख ने इंटरव्यू में इस बात पर भी ज़ोर दिया है.

'सबका साथ सबका विकास' का संदेश 

मोहन भागवत कहते हैं कि परम वैभव संपन्न हिन्दू राष्ट्र भारत दुनिया का मार्गदर्शन करेगा. मोहन भागवत ये भी कहने से नहीं चूकते कि हिन्दू होने का मतलब है, सबको अपना मानना और सबको साथ लेकर चलने की प्रवृति. मेरा ही सही, तुम्हारा गलत, ऐसा नहीं है. झगड़ा क्यों करें, मिलकर चलें. यही हिन्दुत्व है.  इन बातों के जरिए मोहन भागवत हिन्दुत्व पर ज़ोर देते हुए भी सबका साथ सबका विकास का संदेश देने की कोशिश कर रहे हैं. पीएम नरेंद्र मोदी भी इस नारे को ही केंद्र सरकार का मूल मंत्र बताते रहे हैं. अब आरएसएस प्रमुख बयान के जरिए हिन्दू-मुस्लिम सह अस्तित्व की भावना को सुर्खियों में लाना चाह रहे हैं.
  
मिशन 2024 पर भी है नज़र

2024 में होने वाले आम चुनाव में महज़ 15-16 महीने ही रह गए हैं. बीजेपी चुनावी रणनीति बनाने में जोर-शोर से जुटी भी है. इस बार बीजेपी की मंशा उन सीटों पर जीत दर्ज करने की है, जिनपर 2014 और 2019 में पार्टी को हार मिली थी. ऐसे ही 160 सीटों की पहचान बीजेपी ने की है. उत्तर प्रदेश, बिहार, पश्चिम बंगाल ये तीन ऐसे राज्य हैं जहां 50 से ज्यादा लोकसभा सीटों पर मुस्लिमों का प्रभाव बहुत ज्यादा है. बीजेपी 2024 में इन सीटों के समीकरणों को साधना चाहती है. इसके अलावा तेलंगाना, कर्नाटक, असम, जम्मू-कश्मीर और कुछ और राज्यों की मुस्लिम बहुल सीटों के गणित को साधना बीजेपी के लिए बड़ी चुनौती है. 2019 के आम चुनाव में बीजेपी को देशभर के 90 अल्पसंख्यक बहुल सीटों में से 50 फीसदी सीटों पर जीत मिली थी. उसके बाद से बीजेपी को लगने लगा कि ऐसी सीटों पर मुस्लिमों के बीच अपना समर्थन बढ़ाकर प्रदर्शन को और बेहतर किया जा सकता है. ऐसे में आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत के बयान को मिशन 2024 से भी जोड़ा जा रहा है.

विधानसभा चुनावों के समीकरणों पर भी ध्यान

इस साल 9 राज्यों मध्य प्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़, कर्नाटक, तेलंगाना, त्रिपुरा, मेघालय, नागालैंड  और मिजोरम में विधानसभा चुनाव होना तय है. इसके अलावा सुरक्षा माहौल ठीक रहने पर केंद्र शासित प्रदेश जम्मू-कश्मीर में भी विधानसभा चुनाव हो सकते हैं. बीजेपी के लिए ये सभी राज्य बेहद ही अहम हैं. मध्य प्रदेश में करीब 8 फीसदी मुसलमान हैं. एमपी में 20 से ज्यादा विधानसभा सीटें मुस्लिम बहुल हैं, इनके अलावा करीब 10 सीट ऐसे भी हैं, जहं मुस्लिम वोट निर्णायक हैं. राजस्थान में भी 15 सीटें मुस्लिम मतदाताओं के वर्चस्व वाली हैं. यहां 30 से ज्यादा सीटों पर इनके वोट जीत-हार के लिए बेहद अहम हैं.  तेलंगाना में 119 में से करीब 60 सीटों पर मुस्लिम वोटर निर्णायक स्थिति में हैं. वहीं कर्नाटक में करीब 65 सीटें ऐसी हैं, जहां मुस्लिम वोट निर्णायक साबित होते हैं. मध्य प्रदेश, राजस्थान, कर्नाटक और तेलंगाना में बीजेपी जीत के लिए कोई कोर-कसर नहीं छोड़ना चाहती. इन आंकड़ों से साफ है कि इन राज्यों में मुस्लिम वोटरों के समर्थन में इजाफा होने से बीजेपी की सत्ता की राह आसान हो सकती है.  ऐसे में आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत का बयान बीजेपी के लिए इन राज्यों में सियासी जमीन को और मजबूत कर सकता है.    

क्यों बना डर का माहौल?

ऑर्गनाइजर और  पाञ्चजन्य को दिए इंटरव्यू में मोहन भागवत ने इस बात पर भी बेबाकी से अपनी राय रखी कि अब तक हिन्दुओं का नजरिया  क्या रहा है. उन्होंने कहा कि कट्टर ईसाई कहते हैं कि सारी दुनिया को ईसाई बना देंगे और जो नहीं बनेंगे उनको हमारी दया पर रहना पड़ेगा या तो मरना पड़ेगा. कट्टर इस्लाम वाले भी ऐसा ही विचार रखते हैं कि सबको हमारा अनुसरण करना स्वाकीर करना पड़ेगा क्योंकि हम ही सही हैं, हमारी दया पर रहो या मत रहो. मोहन भागवत आगे कहते हैं कि हिन्दू का विश्व दृष्टिकोण ऐसा है ही नहीं. हिन्दू कभी ऐसा नहीं कहता कि सबको हिन्दू मानना पड़ेगा.  इन बातों से मोहन भागवत इशारा करना चाहते हैं कि जिन धर्मों में कट्टरता ज्यादा रही है, बदलते माहौल में उनके लिए हालात खुद ही मुश्किल होते गए हैं. 

मोहन भागवत के बयान पर प्रतिक्रिया

मुस्लिमों को लेकर मोहन भागवत के बयान पर राजनीतिक दलों की ओर से अलग-अलग प्रतिक्रियाएं भी सामने आई. कांग्रेस नेता कपिल सिब्बल ने कहा कि हिन्दुस्तान को हिन्दुस्तान रहना चाहिए, इससे वो सहमत है, लेकिन इंसान को भी इंसान रहना चाहिए. AIMIM प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी ने कहा कि मुसलमानों को भारत में रहने की अनुमति देने वाले मोहन भागवत कौन होते हैं और मुसलमानों से वो आखिर इतना डरते क्यों हैं. सीपीएम नेता वृंदा करात ने  मुसलमानों को लेकर मोहन भागवत के बयान को भड़काऊ और हिंसा के लिए उकसाने वाला करार दिया. 

मुस्लिम विरोधी छवि को तोड़ने की कोशिश

आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ऐसे तो हमेशा ही मुस्लिमों को लेकर बयान देते रहते हैं, लेकिन हाल के कुछ महीनों में उनके बयानों में नरमी देखी गई है. जुलाई 2021 में मोहन भागवत ने कहा था कि हिन्दू और मुसलमानों के डीएनए एक ही हैं और मुसलमानों के बिना हिन्दुस्तान पूरा नहीं होता. उसी वक्त उन्होंने ये भी कहा था कि मॉब लिंचिंग में शामिल होने वाले लोग हिन्दुत्व के खिलाफ हैं. उन्होंने कहा था कि अगर कोई ये कहता है कि यहां मुस्लिमों को नहीं रहना चाहिए, तो वो शख्स हिन्दू नहीं है. उसी तरह से सितंबर 2022 में मोहन भागवत दिल्ली के एक मस्जिद और मदरसे भी गए थे. ऐसा माना जा रहा है कि मिशन 2024 और विधानसभा चुनाव को देखते हुए आरएसएस प्रमुख के बयान बेहद मायने रखते हैं. इसके साथ ही ये भी माना जा रहा है कि आरएसएस अपनी मुस्लिम विरोधी छवि को तोड़ने और मुसलमानों के एक तबके को जोड़ने की कोशिश में है.

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