भारत सरकार के अल्पसंख्यक मंत्रालय की वक़्फ़ एसेट मैनेजमेंट सिस्टम ऑफ़ इंडिया (WAMSI) की वेबसाइट पर 22 सितम्बर 2022 तक की गई इंट्री के मुताबिक़ देशभर के 32 वक़्फ़ बोर्डों की कुल 8,56,470 दर्ज अचल वक़्फ़ संपत्तियों में से 56,588 वक़्फ़ संपत्तियों पर ग़ैर-क़ानूनी क़ब्ज़ा है. हालांकि ग़ैर-क़ानूनी क़ब्ज़ों का ये आंकड़ा इससे कई गुणा अधिक हो सकता है, क्योंकि वक़्फ़ एसेट मैनेजमेंट सिस्टम ऑफ़ इंडिया के पास 4,35,259 वक़्फ़ संपत्तियों के संबंध में कोई जानकारी नहीं है.
वहीं लेखक को सेन्ट्रल वक़्फ़ कौंसिल से 20 जुलाई, 2020 को आरटीआई के तहत मिली जानकारी के मुताबिक़ देश में 18,259 वक्फ़ संपत्तियों के साथ-साथ 31,594 एकड़ ज़मीन पर अवैध क़ब्ज़ा है. आरटीआई की जानकारी यह भी बताती है कि 1342 वक़्फ़ संपत्तियों के साथ-साथ 31,594 एकड़ भूमि सरकारी विभागों या एजेंसियों का क़ब्ज़ा है यानी इनके पास हैं. यहां ये स्पष्ट रहे कि आरटीआई से मिले इन आंकड़ों में गुजरात, तेलंगाना और उत्तर प्रदेश शिया सेंट्रल वक्फ बोर्ड के आंकड़े शामिल नहीं हैं.
‘वक़्फ़ कम्प्यूटरीकरण’ की प्रक्रिया काफ़ी धीमी, नज़र आ रही हैं कई ख़ामियां
डॉ. मनमोहन सिंह के शासन काल में शुरू हुए ‘वक़्फ़ कम्प्यूटरीकरण’ की रफ़्तार काफ़ी धीमी रही. जब अदालत से फ़टकार लगी तब इस काम में थोड़ी तेज़ी आई. अब मोदी के शासन में दावा है कि ‘वक़्फ़ कम्प्यूटरीकरण’ का यह काम अपने अंतिम चरण में है. यानी यह काम पूरा होने वाला है. लेकिन वक्फ़ पर काम करने वाले सामाजिक कार्यकर्ताओं को इस काम को लेकर कई शिकायतें हैं. आरोप है कि ये काम सरकार की ओर से सिर्फ़ खानापुरी के लिए किया गया है. इस काम से लाभ कम और हानि की संभावना अधिक है.
इन्हीं आरोपों और शिकायतों को समझने के लिए सेन्ट्रल वक़्फ़ कौंसिल से आरटीआई के तहत सवाल पूछे. जैसे
‘पिछले पांच वर्षों में वक्फ़ संपत्तियों के डिजिटलीकरण के संबंध में आपके कार्यालय को कितनी शिकायतें मिली हैं. इन शिकायतों और सभी संबंधित दस्तावेजों की प्रतियां प्रदान करें.’
लेखक के इस सवाल पर सेन्ट्रल वक़्फ़ कौंसिल का स्पष्ट जवाब था, ‘पिछले पांच वर्षों में वक्फ़ संपत्तियों के डिजिटलीकरण के संबंध में कोई शिकायत प्राप्त नहीं हुई है.’
लेकिन महाराष्ट्र के पुणे शहर में रहने वाले पूर्व मुख्य आयकर आयुक्त (आईआरएस) ए.जे. खान का आरोप है कि आरटीआई के तहत मिली जानकारी झूठी है.
ए.जे. खान बताते हैं, ‘मैंने वक्फ़ संपत्तियों के डिजिटलीकरण को लेकर विभिन्न वक्फ़ बोर्डों और अधिकारियों को कई शिकायतें भेजी हैं. मैंने सेन्ट्रल वक़्फ़ कॉंसिल को भी शिकायत भेजी थी, लेकिन कॉंसिल ने मुझे कोई जवाब नहीं दिया और मेरी शिकायत पर कोई कार्रवाई नहीं की गई.’
क्या है उनकी शिकायत?
ए.जे. खान का कहना है कि मौजूदा सरकार में वक्फ़ से जुड़े अधिकारी खुद को बेहतर दिखाने की कोशिश में फ़ायदे से ज्यादा नुक़सान कर रहे हैं. सरकार सिर्फ़ काम को पूरा दिखाने में लगी हुई है. लेकिन समस्या काम में ही है. यह काम काफ़ी काम-चलाऊ तरीक़े से किया गया है. अब तक किए गए अधिकांश डिजिटलीकरण कार्यों में वक्फ़ संपत्तियों की जानकारी आधी-अधूरी है. किसी में संपत्ति की वैल्यू नहीं है, किसी संपत्ति का चौहद्दी का ही पता नहीं है. कई संपत्तियों के आगे ‘टू बी डिलीटेड' लिख दिया गया है. और ज्यादातर वक्फ़ संपत्तियों में उनका क्षेत्रफल ही नदारद है. दिल्ली के दरियागंज इलाक़े में 'चिल्ड्रन होम' काफ़ी लोकप्रिय है, लेकिन इसका रक़बा ही wamsi की वेबसाइट पर उपलब्ध नहीं है. अब अगर कोई इसका एक कमरा बेच दे तो कौन क्या करेगा? ऐसे में तो आप कभी भी जितनी ज़मीनें चाहेंगे बेचकर खा जाएंगे.
वह आगे बताते हैं कि मुंबई शहर और उपनगरों के वक़्फ़ रिकॉर्ड जो wamsi की वेबसाइट पर अपलोड किए गए हैं, उनमें कई खामियां हैं. मैंने वक्फ़ बोर्ड को इन सभी कमियों के बारे में कई बार बताया, लेकिन उनके अधिकारी सुनने को तैयार नहीं हैं. इतना ही नहीं फ़रवरी 2019 में मैं अल्पसंख्यक मामलों के मंत्री मुख्तार अब्बास नक़वी से भी मिला हूं, लेकिन निराशा ही हुई.
हालांकि ए.जे. खान का यह भी मानना है कि वक्फ़ संपत्तियों के दस्तावेजों के डिजिटलीकरण की इस परियोजना का हर मुसलमान को स्वागत करना चाहिए. क्योंकि जैसे-जैसे वक्फ़ संपत्तियों के दस्तावेज़ ऑनलाइन डाले जा रहे हैं, इन संपत्तियों के बारे में सार्वजनिक जानकारी बढ़ती जा रही है. लेकिन इस बात से भी इंकार नहीं किया जा सकता कि वक्फ़ संपत्तियों से जुड़ी ग़लत जानकारी वक्फ़ के लिए ही ख़तरनाक हो सकती है. वैसे भी सरकार की नीयत बहुत साफ़ नज़र नहीं आती है.
बीजेपी नेताओं ने की 2.3 लाख करोड़ “वक़्फ़ घोटाले” की सीबीआई जांच कराने की मांग
साल 2012 में कर्नाटक माईनॉरिटी कमीशन की एक रिपोर्ट के मुताबिक़ ख़ुद मुस्लिम क़ौम के रहबरों ने कर्नाटक में दो लाख करोड़ रुपए से अधिक की वक़्फ़-संपत्ति बेच दी. क़रीब सात हज़ार पन्नों की यह रिपोर्ट कर्नाटक माइनॉरिटी कमीशन ने तीन महीने की छानबीन के बाद तैयार की थी. कमीशन ने तब मुख्यमंत्री सदानंद गौड़ा को यह रिपोर्ट सौंपी थी, जिसे राज्य की विधानसभा में पेश किया गया था.
इस रिपोर्ट के मुताबिक़ राज्य में वक्फ़ बोर्ड की 54 हज़ार एकड़ संपत्ति में से क़रीब 27 हज़ार एकड़ संपत्ति का दुरुपयोग होना बताया गया था. इस रिपोर्ट के मुताबिक़ क़रीब 2.3 लाख करोड़ रुपए की इस संपत्ति को पिछले दस सालों में राज्य के कई बड़े नेता, अफ़सर और बिल्डर निगल गए. इस रिपोर्ट का सबसे शर्मनाक पहलू यह है कि जिन 38 नेताओं और अधिकारियों का नाम इस रिपोर्ट में आए थे, उनमें से अधिकतर मुस्लिम क़ौम के रहनुमा हैं और बड़े ओहदों पर रहकर क़ौम की रहनुमाकर कर चुके हैं. इस रिपोर्ट में पूर्व राज्यसभा सांसद के. रहमान खान, पूर्व वक्फ़ मंत्री सी.के.आई. इब्राहिम, पूर्व वक्फ़ मंत्री आर. रोशन बेग, पूर्व विधायक एन.ए हारिस, पूर्व केंद्रीय मंत्री सी.के. जाफर शऱीफ़, आईएएस अधिकारी मोहम्मद सनाउल्ला और पूर्व केएएस अधिकारी एम.ए. खलीज और माज़ अहमद शरीफ़ पर वक्फ बोर्ड की संपत्ति हड़पने का आरोप है.
अब इस मामले में बीजेपी नेताओं ने सीबीआई जांच कराने की मांग की है. बता दें कि बुधवार यानी 21 सितम्बर 2022 को बीजेपी के विधायकों ने कर्नाटक वक़्फ़ बोर्ड को समाप्त करने की मांग के साथ-साथ 2.3 लाख करोड़ “वक़्फ़ संपत्ति घोटाले” की जांच सीबीआई से कराने की मांग रखी है.
उडुपी के बीजेपी विधायक रघुपति भट का कहना है कि 2012 में सरकार को रिपोर्ट दिए जाने के बाद से इस मुद्दे पर अदालतों, कैबिनेट और यहां तक कि लोकायुक्त ने भी सुनवाई की है, लेकिन दोषियों को दंडित करने के लिए कोई कार्रवाई नहीं की गई है. उन्होंने कहा कि ‘सीबीआई को इसकी जांच करनी चाहिए.’
वहीं इससे दो दिन पूर्व श्री राम सेना के संस्थापक प्रमोद मुतालिक ने कर्नाटक वक्फ़ बोर्ड पर प्रतिबंध लगाने के लिए एक अभियान की घोषणा की है. उन्होंने सीधे शब्दों में कहा है कि ''केंद्र अगर कोई क़दम नहीं उठा रहा है तो हम वक्फ़ बोर्ड पर प्रतिबंध लगाने की मुहिम शुरू करेंगे.''
(अफरोज आलम साहिल एक पत्रकार और लेखक हैं जो भारतीय राजनीति, इतिहास और समाज से संबंधित विषयों को कवर करते हैं. वर्तमान में, वह बियॉन्ड हेडलाइंस में संपादक हैं.)