प्रधानमंत्री ने देश को और देश के लोगों को आत्मनिर्भर बनाने के लिए 20 लाख करोड़ के राहत पैकेज का ऐलान किया है. इस राहत पैकेज में रिजर्व बैंक की ओर से किए गए ऐलान और वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण की ओर से किए गए ऐलान भी शामिल हैं. कुल मिलाकर दिए जा रहे इस 20 लाख करोड़ में से नया क्या है और पुराना क्या, इसे समझने के लिए थोड़ा पीछे चलना होगा.
जब देश में कोरोना का एक भी मरीज नहीं था, तब भी देश में आर्थिक रफ्तार धीमी पड़ी हुई थी. जीडीपी लगातार गिर रही थी, औद्योगिक उत्पादन में गिरावट दर्ज की जा रही थी और दुनिया भर की क्रेडिट रेटिंग एजेंसियां भारत की जीडीपी के बारे में अनुमान लगा रही थीं. इनसे निबटने के लिए रिजर्व बैंक आगे आया और उसने कुछ ऐलान किए. फरवरी महीने में रिजर्व बैंक ने मार्केट में कैश फ्लो बढ़ा दिया यानि कि बैंक ने नकदी डाल दी, ताकि लोगों के पास पैसा पहुंचे और वो खर्च कर सकें.
अभी इसका असर दिखना शुरू होता कि कोरोना आ गया. लॉकडाउन हुआ और इसका असर कम करने के लिए रिजर्व बैंक फिर आगे आया. अर्थव्यवस्था में फिर से नकदी की कमी दूर करने की कोशिश की, ईएमआई को तीन महीने तक टालने की बात की, रेपो रेट और सीआरआर में बड़ी कटौती की, कर्ज सस्ता किया ताकि लोगों तक पैसे पहुंचें. अप्रैल में भी रिजर्व बैंक की ओर से लोगों को राहत देने की कोशिश की गई. रिजर्व बैंक की ओर से इन सारी राहतों को एक साथ मिला दिया जाए तो ये रकम करीब 8.04 लाख करोड़ रुपये की हो जाती है.
इसके अलावा पहले लॉकडाउन के लागू होने के ठीक दो दिन बाद केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण की ओर से 1.7 लाख करोड़ रुपये के राहत पैकेज का ऐलान किया गया, जिसमें गरीबों के लिए राशन से लेकर मज़दूरों के लिए नकदी तक का प्रावधान किया गया था. इसे प्रधानमंत्री गरीब कल्याण योजना का नाम दिया गया था. अब रिजर्व बैंक के राहत पैकेज और वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण के राहत पैकेज को जोड़ दें तो ये रकम हो जाती है 9.74 लाख करोड़ रुपये. ये पैसा उसी 20 लाख करोड़ के आर्थिक पैकेज का हिस्सा है, जिसकी बात प्रधानमंत्री मोदी ने 12 मई की रात को राष्ट्र के नाम अपने संबोधन में कही है.
अब बचते हैं 10.26 लाख करोड़ रुपये. इस रकम को सरकार कैसे खर्च करेगी, इसे वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण बताएंगी. हालांकि एक उम्मीद ये है कि लॉकडाउन के दौरान सबसे ज्यादा नुकसान छोटे और मझोले कद के उद्योगों का हुआ है और उन्हें फिर से खड़ा होने के लिए सरकार से मदद की दरकार है. आर्थिक विशेषज्ञों का मानना है कि सरकार इस मदद के मद में कम से कम 5 लाख करोड़ रुपये रखेगी. ताकि बैंकों के जरिए उन्हें कर्ज दिया जा सके.
अब सवाल ये है कि सरकार के पास पैसे कितने हैं. तो इसकी जानकारी तो सरकार का बजट ही बता देता है. केंद्र सरकार का साल 2020-21 करोड़ का बजट कहता है कि सरकार के पास कुल आमदनी करीब 24,23,020 करोड़ रुपये होने वाली है और कुल खर्चा करीब 30,42,230 करोड़ रुपये है. इसी बजट में प्रावधान है कि सरकार बाजार से करीब 7.8 लाख करोड़ रुपये का उधार लेगी, लेकिन इस कोरोना महामारी में केंद्र सरकार ने 9 मई को ये तय किया कि अब वो बाजार से 12 लाख करोड़ रुपये का उधार लेगी यानि कि तय बजट से 4.2 लाख करोड़ रुपये ज्यादा. और अर्थशास्त्रियों को उम्मीद है कि यही वो 4.2 लाख करोड़ रुपये की रकम है, जिसे सरकार मज़दूरों, गरीबों और किसानों के कल्याण पर खर्च करने वाली है.
रही बात रिजर्व बैंक के पुराने पैकेज की, जिसके जरिए मार्केट में लिक्विडिटी बढ़ाई गई है, तो फिलहाल उसका फायदा शायद ही दिख पाएगा. रिजर्व बैंक ने पैसे दिए हैं, ताकि लोग कर्ज लें और मार्केट में कैश फ्लो बना रहे. लेकिन कोरोना में हुए लॉकडाउन में जो हालत हुई है, उसे देखकर लगता नहीं है कि लोग कर्ज लेने के लिए आगे आएंगे. वहीं अपने पुराने एनपीए और राइट ऑफ किए गए कर्ज को देखते हुए बैंक भी बिना फुल गारंटी के कर्ज नहीं देंगे, भले ही पैसे बैंक में ही रह जाएं. और अगर ऐसा होता है तो फिर आर्थिक पैकेज से कोई बड़ा फायदा होता नहीं दिख रहा है.