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दिल्ली सर्विस कानून लागू हो जाने पर सीएम केजरीवाल की ताकत कितनी कम हो जाएगी?

दिल्ली सेवा बिल राज्यसभा और लोकसभा दोनों से ही पारित हो चुका है. राष्ट्रपति के मुहर लगाए जाने के साथ ही यह कानून बन जाएगा. आइए जानते हैं कानून लागू होने के बाद मुख्यमंत्री के पास क्या-क्या पावर रहेगा?

दिल्ली सेवा बिल के लोकसभा से पारित होने के बाद सोमवार को राज्यसभा का पूरा दिन भी इसी के नाम पर समर्पित रहा. 7 अगस्त को पूरे दिन इसी बिल पर चर्चा हुई और यह राज्यसभा से भी पारित हो गया. इस बिल के पक्ष में 131 वोट पड़े जबकि इसके विरोध में विपक्षी सांसदों की तरफ से सिर्फ 102 वोट डाले गए. अब यह बिल राज्यसभा और लोकसभा दोनों से ही पारित हो चुका है. राष्ट्रपति के मुहर लगाए जाने के साथ ही यह कानून बन जाएगा.

इस विधेयक के जरिए केंद्र सरकार उस अध्यादेश को कानून बनाना चाहती है जिसमें दिल्ली में अधिकारियों की पोस्टिंग या ट्रांसफर का आखिरी अधिकार उपराज्यपाल के पास होगा. ऐसे में इस रिपोर्ट में जानते हैं कि दिल्ली सर्विस कानून लागू होने से केजरीवाल के अधिकारों में और क्या-क्या कटौती होगी. 

क्या है दिल्ली सेवा बिल

ये बिल एक सिविल सर्विसेज अथॉरिटी बनाता है और उस अथॉरिटी (राष्ट्रीय राजधानी लोक सेवा प्राधिकरण) को व्यापक शक्तियां देता है. उदाहरण के तौर पर समझे तो दिल्ली में कौन वित्त का सेक्रेट्री बनेगा, कौन पीडब्लयूडी का सेक्रेट्री बनेगा. उनका ट्रांसफर कब और कैसे होगा, जैसै कई अहम फैसला अब एलजी करेंगे न की जनता की चुनी हुई सरकार.

दिल्ली सेवा बिल के जरिए राष्ट्रीय राजधानी लोक सेवा प्राधिकरण की स्थापना करने का प्रावधान है. इसमें मुख्यमंत्री, मुख्य सचिव और प्रधान गृह सचिव शामिल होंगे. यही अथॉरिटी अधिकारियों के ट्रांसफर और पोस्टिंग के लिए उपराज्यपाल को सुझाव देगा. 

इस विधेयक ने उपराज्यपाल को कई शक्तियां दी गई है. उपराज्यपाल के पास ताकत होगा कि अथॉरिटी के प्रस्ताव के बाद ही विधानसभा सत्र बुलाई जाए, स्थगित और भंग की जाए. इसके अलावा कई मामलों में उपराज्यपाल अपने विवेक का इस्तेमाल करके भी फैसला ले सकते हैं. 

अध्यादेश पर छिड़ गया विवाद

दरअसल सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली सरकार बनाम उपराज्यपाल की जंग को लेकर मई महीने में सुनवाई की थी. उस वक्त कोर्ट ने दिल्ली सरकार के पक्ष में फैसला सुनाया था.  कोर्ट ने अपने फैसले में पुलिस, सार्वजनिक व्यवस्था और भूमि को छोड़कर सभी सेवाओं पर दिल्ली सरकार को अधिकार दिया था. 

हालांकि कोर्ट के इस फैसले के बाद 19 मई को केंद्र सरकार की तरफ से एक अध्यादेश लाया गया. जिसमें कहा गया कि ग्रुप-ए के अफसरों के ट्रांसफर और उन पर अनुशासनिक कार्यवाही का जिम्मा राष्ट्रीय राजधानी सिविल सेवा प्राधिकरण (एनसीसीएसए) के पास होगा. दिल्ली सरकार इस अध्यादेश के लाने से काफी नाराज हुए. 

सीएम केजरीवाल के अधिकारों में हो जाएगी कटौती

दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल शुरू से ही इस बिल का विरोध करते रहे हैं उनका आरोप है कि इसके जरिए दिल्ली सरकार को सीमित करने की कोशिश की जा रही है. 

राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली सिविल सेवा प्राधिकरण (NCCSA) को जिस तरह से बनाया गया है, उसके अनुसार बिल के कानून बनने के बाद दिल्ली सरकार की ताकत काफी सीमित हो जाएगी. इसके अलावा राजधानी में अफसरों की ट्रांसफर और पोस्टिंग से जुड़े सारे फैसले उपराज्यपाल करेंगे. 

विधेयक उस प्रावधान को भी खत्म कर देता है जो राष्ट्रीय राजधानी सिविल सेवा प्राधिकरण (NCCSA) को केंद्र और दिल्ली सरकार को एक वार्षिक रिपोर्ट सौंपने के लिए बाध्य करता है, जिसे संसद और दिल्ली विधानसभा में पेश किया जाता रहा है. इस कदम को AAP नेताओं ने "जवाबदेही को खत्म करने" के रूप में लेबल किया है.

एक अधिकारियों ने पीटीआई-भाषा को बताया कि दिल्ली सेवा बिल, 2023 लागू होने के बाद दिल्ली सरकार का प्रशासनिक तंत्र सुव्यवस्थित होने की संभावना है क्योंकि यह राजधानी में सेवाओं के नियंत्रण के मुद्दे पर स्पष्टता लाएगा.

केंद्र को मिलेगी ज्यादा ताकत

दिल्ली सेवा बिल में धारा 45D को संशोधित किया गया है. धारा 45D दिल्ली में अलग-अलग अथॉरिटी, बोर्ड, कमिशन और दूसरी बॉडीज के अध्यक्ष और उनके सदस्यों की नियुक्ति से जुड़ी है. दिल्ली सेवा बिल अथॉरिटी, बोर्ड और कमिशन जैसी बॉडीज के अध्यक्ष से लेकर सदस्यों तक को नियुक्ति करने का अधिकार केंद्र को देती है. 

बिल के अनुसार अगर किसी भी अथॉरिटी का गठन संसदीय कानून के जरिए किया जाता है  तो उसके अध्यक्ष और सदस्यों को राष्ट्रपति नियुक्त करेंगे. वहीं, अगर दिल्ली विधानसभा से होता है तो उसके अध्यक्ष और सदस्यों की नियुक्ति की सिफारिश नेशनल कैपिटल सिविल सर्विस अथॉरिटी करेगी, जिसके आधार पर उपराज्यपाल ये नियुक्तियां करेंगे.

बिल के राज्यसभा से भी पास होने से नाराज केजरीवाल 

दिल्ली सेवा बिल के लोकसभा और राज्यसभा दोनों जगहों से पास हो जाने के बाद राजधानी के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने प्रेस कॉन्फ्रेंस कर केंद्र सरकार पर जमकर निशाना साधा. केजरीवाल ने कहा कि केंद्र को इतनी ताकत जनता की सेवा के लिए दी जाती है.

अमित शाह दिल्ली में घर-घर जाकर पर्चे बांट रहे थे, दिल्ली के लोगों ने नकार दिया तो दिल्ली के लोगों पर अत्याचार करना शुरू कर दिया. प्रधानमंत्री ने दिल्ली को पूर्ण राज्य करने का वादा किया था. आज वहीं सरकार दिल्ली की जनता के पीठ पर छुरा भोंक रही है. 

 केजरीवाल ने कहा कि दिल्ली की जनता को दिल्ली का बेटा पसंद है, आप जैसे नेता उन्हें नहीं चाहिए. अगले चुनाव में दिल्ली वाले भारतीय जनता पार्टी को एक भी सीट नहीं देंगे.

केजरीवाल आगे कहते हैं साल 2015 में जैसे ही दिल्ली में आम आदमी पार्टी की सरकार बनी वैसे ही हमारी शक्तियां छीन ली गई. इसके बाद भी हमने जनता को काम करके दिखाया और साल 2020 में दिल्ली वालों ने 62 सीट देकर आम आदमी पार्टी को जिताया. 
 
गृहमंत्री ने केजरीवाल के आरोपों का दिया जवाब 

गृह मंत्री अमित शाह ने दिल्ली सेवा बिल पर कहा कि 19 मई 2023 को लाए गए इस अध्यादेश के जगह हम विधि द्वारा व्यवस्था को स्थापित करना चाह रहे हैं. राजधानी दिल्ली कई मायनों में अन्य राज्यों की तुलना में अलग प्रदेश है.

यहां सुप्रीम कोर्ट है, एबेंसी हैं इन सब के अलावा जो सबसे महत्वपूर्ण बात है वह ये है कि दिल्ली देश की राजधानी है. यहां बार-बार अन्य देशों के राष्ट्रीय अध्यक्ष चर्चा करने के लिए आते हैं. इसीलिए दिल्ली को यूनियन टेरिटरी बनाया गया. यहां की सरकार को सीमित मात्र अधिकार दिए गए हैं. 

अमित शाह ने राघव चड्ढा पर भी निशाना साधते हुए कहा कि अच्छे शब्दों से असत्य सत्य नहीं बन जाता है. शाह कहते हैं कि केंद्र सरकार को ताकत की जरूरत नहीं. उनके पास पहले से ही 130 करोड़ जनता ने पावर दी हुई है.

दिल्ली सेवा बिल का एक भी प्रावधान गलत नहीं है. हम विधि द्वारा स्थापित व्यवस्था लाए हैं. सुप्रीम कोर्ट के किसी भी फैसले का उल्लंघन नहीं है. इस बिल का एकमात्र मकसद है भ्रष्टाचार को लगाम लगाना.

राजधानी दिल्ली में अलग-अलग पार्टी की सरकार रही है. किसी का साल 2015 तक किसी तरह का झगड़ा नहीं हुआ. सभी विकास करना चाहते थे. उस वक्त ऐसी व्यवस्था से निर्णय होते थे और ट्रांसफर पोस्टिंग में कोई झगड़ा नहीं होता था. 

कांग्रेस नेता अभिषेक मनु सिंघवी ने किया विधेयक का विरोध 

कांग्रेस नेता और वरिष्ठ वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने भी इस विधेयक का विरोध करते हुए केंद्र सरकार पर जमकर निशाना साधा. उन्होंने बिल के बारे में बात करते हुए गृह मंत्री अमित शाह को सुपरबॉस बताया और कहा कि सारे अंतिम फैसले इनको ही करने हैं. 

सिंघवी ने सदन में कहा कि 1992 के बाद आखिर  सरकार इस तरह का विधेयक लेकर क्यों नहीं आई. इस दौरान बीजेपी भी केंद्र में रही और कांग्रेस भी लेकर किसी ने संवैधानिक पीठ के फैसले को इस तरह ओवररूल नहीं किया. उन्होंने सवाल उठाया कि अब से पहले किसी सरकार ने दो नौकरशाहों को सीएम से ज्यादा ताकतवर क्यों नहीं बनाया. 

उन्होंने कहा कि इस सरकार और इस विधेयक वो कर दिया जो पहले कभी नहीं हुआ था क्योंकि इनकी फितरत यही है. उन्होंने बाजेपी पर निशाना साधते हुए कहा कि पार्टी चुनावी हार को पचा नहीं पा रही है इसलिए चुनी गई सरकार को किसी भी तरह नियंत्रित करने की कोशिश कर रहे हैं.

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