न्यूज़ीलैंड की प्रधानमंत्री जैकिंडा ऑर्डर्न ने ये ऐलान किया है कि फिलहाल न्यूज़ीलैंड ने कोरोना को खत्म कर दिया है. 27 अप्रैल को न्यूज़ीलैंड में कोरोना के कुल पांच मामले सामने आए. साथ ही ये भी पता चला कि न्यूज़ीलैंड में कोरोना का कम्युनिटी ट्रांजेक्शन नहीं है. और यही वजह है कि प्रधानमंत्री जैसिंडा ऑर्डर्न ने अपने देश को कोरोना मुक्त घोषित कर दिया है. अब वहां पर लॉकडाउन में ढील दी जा रही है. 27 अप्रैल की आधी रात से ही अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने के लिए कंस्ट्रक्शन जैसे कामों को मंजूरी दे दी गई है. हालांकि वहां पर सोशल डिस्टेंसिंग अगले आदेश तक जारी रहेगी.


न्यूज़ीलैंड के स्वास्थ्य विभाग के डायरेक्टर जनरल एश्ले ब्लूमफिल्ड ने कहा है कि न्यूज़ीलैंड ने कोरोना को खत्म करने का अपना उद्देश्य हासिल कर लिया है. उनका ये भी कहना है कि कोरोना के खत्म होने का ये मतलब बिल्कुल भी नहीं है कि अब न्यूज़ीलैंड में कोरोना का कोई नया केस नहीं आएगा. हालांकि कोरोना का नया केस कहां से आएगा, ये सरकार को पता है और यही लक्ष्य सरकार हासिल करना चाहती थी. सरकार के इस ऐलान के बाद से ही करीब पांच लाख मज़दूर अब अपने काम पर लौटने के लिए तैयार हैं. न्यूज़ीलैंड के दुकानदार अपनी दुकानों के दरवाजे खोलने के लिए तैयार हैं, क्योंकि अब उन्हें भरोसा है कि उनके देश ने कोरोना के खिलाफ जंग जीत ली है.


50 लाख से भी कम की आबादी वाले न्यूज़ीलैंड में कोरोना के कुल 1472 केस सामने आए हैं और 19 लोगों की मौत हुई है. ये आंकड़ा खबर लिखे जाने तक का है. न्यूज़ीलैंड ने कोरोना संक्रमितों के आंकड़ों को कम रखा, मरने वालों की संख्या कम रही और अब वो दुनिया का पहला ऐसा देश बन गया है, जिसने कोरोना के खिलाफ चल रही जंग को जीतने का ऐलान किया है. इस जीत के लिए न्यूज़ीलैंड ने क्या-क्या किया है, इसे सिलसिलेवार ढंग से समझने की कोशिश करते हैं.


कोरोना के खिलाफ चली जंग में न्यूज़ीलैंड की जीत का सबसे बड़ा श्रेय जाता है न्यूज़ीलैंड की भौगौलिक स्थिति को. न्यूज़ीलैंड ऐसा देश है, जिसकी अंतरराष्ट्रीय सीमाएं आसानी से बंद की जा सकती हैं. इसके अलावा इस देश की जनसंख्या 50 लाख से भी कम है यानि कि यह देश अमेरिका के न्यू यॉर्क से भी छोटा है. इसलिए यहां पर कोरोना की रोकथाम करना आसान काम था. लेकिन इस पूरी कोशिश में सबसे बड़ा हाथ था न्यूज़ीलैंड की प्रधानमंत्री ऑर्डर्न का, जिन्होंने महज कुछ दर्जन केस सामने आने के बाद ही प्रतिबंध लगाने शुरू कर दिए थे.


मार्च का महीना आधा बीतने के साथ ही आर्डर्न ने कहा कि हमारे देश में सिर्फ 102 केस हैं, लेकिन हम अभी से सख्ती करेंगे और अभी से रफ्तार से इस वायरस को रोकने के लिए काम करेंगे. इसके बाद से ही न्यूज़ीलैंड में लॉकडाउन कर दिया गया. 23 मार्च को जब ब्रिटेन के प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन लोगों को घर में रहने की सलाह दे रहे थे और भारत में जनता कर्फ्यू बीत चुका था, तब न्यूज़ीलैंड ने कोरोना को खत्म करने की रणनीति पर काम शुरू कर दिया. हर तरह के बीच, स्कूल, वेयरहाउस बंद कर दिए गए. रेस्टोरेंट में बैठकर खाना तो दूर घर ले जाने की भी इजाजत नहीं थी, उन्हें पूरी तरह से बंद कर दिया गया था. 24 मार्च को भारत में लॉकडाउन किया गया ताकि कोरोना के बढ़ते संक्रमण को कम किया जा सके, वहीं न्यूजीलैंड कोरोना के संक्रमण को कम करने पर नहीं, उसे पूरी तरह से खत्म करने पर काम कर रहा था.


इसके लिए पूरे न्यूज़ीलैंड को एक तरह से एक महीने के लिए होम क्वॉरंटीन कर दिया गया. बॉर्डर पूरी तरह से सील थे और देश में बड़े पैमाने पर टेस्टिंग शुरू कर दी गई. जो भी लोग बाहर से आए थे, उन्हें 14 दिनों के लिए क्वॉरंटीन किया गया और उनकी जांच की गई. इस दौरान प्रधानमंत्री ऑर्डर्न हमेशा मुस्कुराते हुए फेसबुक पर आती थीं. अपने लोगों को ये संदेश देती थीं उन्हें पता है कि उनके लोगों पर क्या बीत रही है, लोग कितनी परेशानी में हैं, फिर भी लोग उनके साथ हैं, देश उनके साथ है और सब मिलकर इस जंग को जीत लेंगे, क्योंकि अगर ऐसा नहीं किया गया तो देश में हर रोज 1000 से ज्यादा लोग कोरोना पॉजिटिव होने लगेंगे.


ऑर्डर्न के फैसले का असर हुआ और न्यूज़ीलैंड ने जंग जीत भी ली. लेकिन अभी ये जंग पूरी तरह से खत्म नहीं हुई है. खुद प्रधानमंत्री ने कहा है कि जीत का मतलब ये नहीं है कि कोरोना का एक भी केस नहीं है. जीत का मलतब ये है कि कोरोना को लेकर किसी तरह की ढील नहीं दी जाएगी. जरा सा संदेह होने पर लोगों को आइसोलेट किया जा रहा है, उनकी जांच की जा रही है, उनके संपर्क में आए लोगों का पता लगाया जा रहा है और उनकी भी जांच की जा रही है.


अभी के लिए लोगों को कम से कम छह फीट की दूरी पर रहने के लिए कहा गया है. स्कूल अब भी बंद हैं. बॉर्डर अब भी सील हैं शॉपिंग कॉम्प्लेक्स अब भी बंद हैं और अब भी लोगों को एक जगह पर इकट्ठा होने पर रोक लगी हुई है. रेस्टोरेंट खुले हैं, लेकिन लोग वहां बैठकर खाना नहीं खा सकते हैं. उन्हें खाना घर लेकर जाना होगा.