भारत में लॉकडाउन है. उद्योग-धंधे ठप हैं. ट्रेनों के पहिए रुक गए हैं, हर आदमी अपने-अपने घरों में कैद है. और इसकी वजह से देश की जो अर्थव्यवस्था पहले ही कमजोर थी, वो अब ध्वस्त होती नजर आ रही है. रेहड़ी-पटरी वाले से लेकर मेहनत मजदूरी करने वाले लोग और बड़ी-बड़ी इंडस्ट्री चलाने वाले उद्योगपति सबको गंभीर रूप से झटका लगा है. भारत के औद्योगिक संघ फिक्की यानि कि फेडरेशन ऑफ इंटरनेशनल चैंबर ऑफ कॉमर्स की अध्यक्ष डॉक्टर संगीता रेड्डी का मानना है कि लॉकडाउन की वजह से भारत में हर दिन करीब 40,000 करोड़ रुपये का नुकसान हो रहा है. लॉकडाउन पहले 21 दिन का था और फिर इसे और 19 दिनों के लिए बढ़ा दिया गया. यानि कि जब चार मई को लॉकडाउन खुलेगा तब तक देश को करीब 16 लाख करोड़ रुपये का नुकसान हो चुका होगा.


वहीं स्टेट बैंक ऑफ इंडिया की इकोरैप रिपोर्ट के मुताबिक लॉकडाउन खुलने तक भारत को करीब 21.1 लाख करोड़ रुपये का नुकसान हो चुका होगा. और जब उद्योग धंधों को इतना नुकसान होगा तो फिर सरकार को टैक्स कलेक्शन में भी नुकसान होगा. एसबीआई की रिपोर्ट के मुताबिक टैक्स कलेक्शन में करीब 4.12 लाख करोड़ रुपये की कमी आ जाएगी और राज्य सरकारों को भी करीब 1.32 लाख करोड़ रुपये के टैक्स का नुकसान होगा. हालांकि नीति आयोग के चेयरमैन राजीव कुमार का अनुमान है कि 3 मई को लॉकडाउन खुलने के बाद भारत की स्थिति बेहतर होगी. वैश्विक संस्था बार्कले ने अनुमान लगाया था कि वित्तीय वर्ष 2020-21 में भारत की विकास दर शून्य हो सकती है, वहीं अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष का कहना था कि भारत की विकास दर 1.9 फीसदी तक हो सकती है. लेकिन राजीव कुमार का कहना है कि लॉकडाउन के खत्म होने के बाद भारत रफ्तार पकड़ लेगा, भले ही उसमें थोड़ा वक्त लगेगा. लेकिन ये वक्त कितना लंबा होगा, इसका अनुमान लगाना फिलहाल मुश्किल दिख रहा है. एक लाख करोड़ रुपये का नुकसान तो सिर्फ और सिर्फ ट्रकों के ट्रांसपोर्टेशन को हुआ है. खुदरा कारोबार को करीब 2.5 लाख करोड़ रुपये का नुकसान हुआ है. मज़दूरों को करीब एक लाख करोड़ का नुकसान हुआ है.


भारत की अर्थव्यवस्था का संकट कितना गहरा है, इसका अंदाजा इस बात से भी लगाया जा सकता है कि ICRA ने भारत की विकास दर को निगेटिव में बता दिया है, तो वहीं बार्कले ने इसे शून्य करार दिया है. अलग-अलग संस्थाओं की ओर से भारत की विकास दर का अनुमान लगाया गया है लेकिन कोई भी चार फीसदी से ऊपर नहीं जा पाया है. और इस चार फीसदी का अनुमान भी एशियन डेवलपमेंट बैंक ने लगाया है.


कोरोना की वजह से अंतरराष्ट्रीय बाजार में भी उथल पुथल मची है और यही वजह है कि विदेशी निवेशकों ने मार्च के अंत तक पैसे निकाल लिए जिसकी वजह से भारत का गोल्ड रिजर्व 1.6 बिलियन डॉलर तक गिर गया और ये 27.9 बिलियन डॉलर तक पहुंच गया. फॉरेन करेंसी में भी 10.3 बिलियन डॉलर का नुकसान भारत को उठाना पड़ा है. इसके अलावा डॉलर के मुकाबले रुपया लगातार कमजोर हुआ है और अब ये 76.17 रुपये पर पहुंच गया है. साल की पहली ही तिमाही में भारत को निर्यात में लंबा नुकसान उठाना पड़ा है. ड्रग और फॉर्मा के अलावा कोई ऐसी इंडस्ट्री नहीं है, जिसका निर्यात नकारात्मक न रहा हो. साल 2019 की तुलना में भारत के निर्यात में करीब 1.5 फीसदी की गिरावट आई है. कुल निर्यात करीब 297 बिलियन डॉलर का रहा है, जबकि कुल आयात 470 बिलियन डॉलर का रहा है.


अगर इस पूरे असर को ब्लूमबर्ग की एक रिपोर्ट के आधार पर समझें तो जैसे चीन की अर्थव्यवस्था में पिछले 45 साल में अब जाकर संकुचन आया है, ठीक वही हाल भारत का भी है. इसकी अर्थव्यवस्था भी पिछले 40 साल में पहली बार संकुचित होती दिख रही है. इससे पहले साल 1980 में भारतीय अर्थव्यवस्था में तब संकुचन आया था, जब भारत की जीडीपी में 5.2 फीसदी की गिरावट हुई थी.