Explainer: पाक सेना के दुलारे इमरान खान क्यों हुए बेगाने, क्या अमेरिका को आंख दिखाने की मिली सजा?
पाकिस्तान में इमरान का गेम अब ओवर हो चुका है. ये इमरान भी समझ चुके हैं, इसलिए वो विपक्ष से डील की कोशिश भी कर रहे हैं और जनरल बाजवा को भी मनाने में जुटे हैं.
पाकिस्तान में इमरान खान ने जिस दिन प्रधानमंत्री की कुर्सी संभाली, उसी दिन से उन्हें विपक्ष सिलेक्टेड पीएम कह रही है. इमरान को सिलेक्टेड पीएम इसलिए कहा गया, क्योंकि वो पाकिस्तान सेना के बेहद करीबी माने जाते थे, लेकिन आज इमरान की कुर्सी जिस तरह से फिसल रही है और सेना तमाशा देख रही है, उससे साफ है कि आर्मी ने इमरान खान के सिर हाथ हटा लिया है. सियासत की पिच पर इमरान ने कई गलतियां की, जिससे उनकी इंनिंग वक्त से पहले ही खत्म हो रही है.
क्या अमेरिका को आंख दिखाने की मिली सजा?
पाकिस्तान को लेकर पुरानी कहावत है कि ये मुल्क अल्लाह, आर्मी और अमेरिका के रहमोकरम पर टिका है. आज तक पाकिस्तान की कोई हुकूमत अमेरिका या आर्मी की नारजगी के बाद कुर्सी पर नहीं रह सकी है. इमरान सत्ता में तो आर्मी के सिलेक्टेड पीएम बनकर आए, लेकिन जैसे ही उन्होंने आर्मी और अमेरिका को आंख दिखाने की कोशिश की, उनके पैरों तले जमीन खींच ली गई.
इमरान दरअसल अपने ही किए की सजा भुगत रहे हैं, क्योंकि उन्होंने पाकिस्तान की राजनीति के सिद्धांतों को समझने में देरी की. विपक्ष में वो जब तक अमेरिका पर बरसते रहे, तब तक ठीक था, लेकिन कुर्सी पर बैठने के बाद उन्होंने अमेरिका को पूरी तरह से नजरअंदाज करने की कोशिश की.
इमरान ने अमेरिका को किया नाराज!
- अमेरिका के खिलाफ लगातार बयानबाजी की
- अफगानिस्तान संकट में अमेरिका का प्रस्ताव ठुकराया
- अमेरिका से सीधे टकराव वाले मुद्दों पर चीन का साथ दिया
- यूक्रेन हमले के दिन रूस के दौरे पर पहुंच गए
पीएम बनने के बाद भी उन्होंने अमेरिका के खिलाफ बयानबाजी बंद नहीं की. इसके बाद अफगानिस्तान संकट के दौरान अमेरिका प्रस्ताव को भी उन्होंने ठुकरा दिया. इसके साथ ही उन्होंने अमेरिका से सीधे टकराव वाले मुद्दों पर चीन का खुलकर साथ दिया और हद तो तब हो गई, जब वो यूक्रेन हमले के पहले दिन ही रूस के दौरे पर पहुंच गए.
आर्मी-अमेरिका की नाराजगी पड़ी भारी!
इमरान खान के अमेरिका से लगातार दूरी बनाने से पाकिस्तान सेना की नाराज बढ़ती चली गई, क्योंकि पाकिस्तान हथियारों के लिए पूरी तरह से अमेरिका पर निर्भर है. F16 लड़ाकू विमानों समेत कई हथियार पाकिस्तान को अमेरिका से ही मिलते हैं, पाकिस्तानी फौज के बड़े अफसरों की लाबी भी अमेरिका की ओर झुकती है. इसलिए इमरान के कामकाज ने अमेरिका और आर्मी दोनों को नाराज कर दिया
यूरोप को भी किया नाराज!
इमरान ने अमेरिका और आर्मी को तो पहले ही नाराज कर रखा था. रूस-यूक्रेन जंग शुरू होने के बाद उन्होंने यूरोप से भी पंगा ले लिया. इमरान जिस यूरोप को अपनी रैली मे निशाना बना रहे हैं, वो यूरोप पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था के लिए कितना अहम है, ये कुछ आंकड़ों से समझना होगा.
- कारोबार में EU की हिस्सेदारी- 14%
- पाकिस्तान का EU को निर्यात- 28%
(2020 के आंक़ड़े)
पाकिस्तान के कुल कारोबार में EU की हिस्सेदारी 14 फीसदी की है और पाकिस्तान के कुल निर्यात का 28 फीसदी EU पहुंचता है. एक तरफ इमरान कर्ज के लिए मारे मारे फिरते हैं, तो दूसरी ओर वो उन्हीं देशों से रिश्ते खराब करने लगे, जो देश की अर्थव्यवस्था के लिए जरूरी है, यानी यूरोप और अमेरिका. इमरान की इस नीति से पाकिस्तान दिवालिया होने लगा. इससे भी विपक्ष को एकजुट होने का मौका मिला, जिसमें आर्मी की बड़ी भूमिका रही.
गलत आर्थिक नीतियों का खामियाजा
क्या अमेरिका से दूरी बनाने से पाकिस्तान आर्थिक तौर पर कमजोर हो गया, जिसका खामियाजा इमरान को उठाना पड़ रहा है? अमेरिका और यूरोप को लेकर गलत नीतियों के बाद रही सही कसर इमरान और चीन की यारी ने पूरी कर दी. इमरान राज में पाकिस्तान चीन के साथ उन मुद्दों पर खड़ा हो लगा, जो अमेरिका से टकराव वाले थे,.
चिट्टी वाला दांव पड़ा उल्टा
अपनी गलतियों से चौतरफा घिरने के बाद भी इमरान खान नहीं संभले. कुर्सी बचाने के लिए उन्होंने चिट्ठी वाला दांव चल दिया, लेकिन ये दांव भी उन्हें उल्टा पड़ गया. इमरान ने चिट्ठी बम फोड़ने से पहले सेना से बात नहीं की. चिट्ठी बम से अमेरिका-पाकिस्तान के रिश्ते और उलझ गए. चिट्ठी को लेकर सेना इमरान से भड़क गई. जिसके बाद सेना प्रमुख ने इमरान से तीन बार मुलाकात की. माना जा रहा है कि जनरल बाजवा ने इमरान से 'एग्टिज रूट' पर चर्चा की.
अब अकेले पड़े इमरान ने अपनी कुर्सी के लिए पहले विपक्ष से डील करने की कोशिश की, जब बात नहीं बनी तो सदन स्थगित कराने का पैंतरा चला, लेकिन नतीजा ये है कि आज पाकिस्तान में सड़क से सदन तक एक ही नारा लग रहा है- 'इमरान गो बैक.'
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