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Explained : भारत और चीन के बीच सीमा पर कहां-कहां और क्यों है विवाद?

भारत और चीन के बीच सीमा पर तनाव की स्थिति है. दोनों ही देशों ने अपने-अपने बॉर्डर पर सेना तैनात कर दी है. वहीं अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप ने इस मामले में मध्यस्थता करने की पेशकश की है, जिसे दोनों ही देशों ने ठुकरा दिया है.

भारत के पड़ोसी देश चीन की ज़मीनी सीमा दुनिया के 14 अलग-अलग देशों के साथ सटी हुई है. इनमें से एक भी ऐसा देश नहीं है, जिसके साथ चीन का सीमा विवाद न हो. लेकिन भारत के साथ चीन को सीमा विवाद करने में शायद ज्यादा ही दिलचस्पी है, इसलिए वो किसी न किसी बहाने से भारत के साथ विवाद करता ही रहता है. भारत और चीन के बीच 3,488 किलोमीटर लंबी सीमा है. इस सीमा को कहा जाता है एलएसी यानि कि लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल या फिर वास्तविक नियंत्रण रेखा. ये एलएसी भारत के राज्यों जम्मू-कश्मीर, लद्दाख, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, सिक्किम और अरुणाचल प्रदेश से होकर गुजरती है. इस 3,488 किलोमीटर लंबी सीमा रेखा को सामरिक दृष्टिकोण से तीन हिस्सों में बांटा जाता है. पहला हिस्सा है पश्चिमी सेक्टर, जिसमें लद्दाख से लगी सीमा शामिल है. ये 1597 किलोमीटर लंबी है. दूसरा है मध्यवर्ती सेक्टर, जिसमें उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश से लगी सीमा शामिल है. ये 545 किलोमीटर लंबी है. तीसरा है पूर्वी सेक्टर, जिसमें अरुणाचल प्रदेश और सिक्किम से लगी सीमा को रखा जाता है. यह 1346 किलोमीटर लंबी है. इस नियंत्रण रेखा को लेकर भारत और चीन के बीच लंबे समय से विवाद चल रहा है. कभी ये विवाद थम जाता है, तो कभी ये विवाद फिर से सिर उठा लेता है. चीन का भारत के साथ कहां-कहां और क्यों सीमा विवाद है, इसे समझने की कोशिश करते हैं.

1. अक्साई चिन अक्साई चीन एलएसी के पश्चिमी सेक्टर में आता है. अक्साई चिन भारत का ही हिस्सा है. जब भारत में जम्मू-कश्मीर से धारा 370 हटाई गई थी और इसको लेकर गृहमंत्री अमित शाह संसद में बयान दे रहे थे तो उन्होंने साफ तौर पर कहा था कि जब जब मैं जम्मू-कश्मीर बोलता हूं तो उसका मतलब पाक अधिकृत कश्मीर और अक्साई चिन भी होता है. 1950 के दशक में चीन ने इस अक्साई चिन में एक सड़क बना ली थी. भारत को इसका पता देर से चला. और दब भारत ने इसका विरोध किया तो उसकी परिणति युद्ध के रूप में हुई. 1962 में भारत-चीन युद्ध हुआ. उस वक्त चीन ने भारत के इस क्षेत्र पर कब्जा कर लिया था. तब से ही अक्साई चिन चीन के कब्जे में है, लेकिन भारत ने इसको लेकर कभी अपना दावा छोड़ा नहीं है. लिहाजा दोनों देशों के बीच अक्साई चिन को लेकर विवाद की स्थिति पैदा होती रहती है.

2. गालवन घाटी चीन और भारत के बीच जो एक्चुअल लाइन ऑफ कंट्रोल है, उसका एक हिस्सा चीनी कब्जे वाले अक्साई चिन और भारत के केंद्र शासित प्रदेश लद्दाख से होकर गुजरता है. इसी एलएसी पर है गालवन घाटी. यह घाटी चीन के शिंजियांग के दक्षिणी हिस्स से लेकर भारत के लद्दाख तक फैली है. हाल के दिनों में भारत इस इलाके में अपनी सैन्य क्षमता को मज़बूत करने के इरादे से सड़क बना रहा है, क्योंकि इसका एक हिस्सा पाकिस्तान से भी जुड़ता है. वहीं चीन अपने कब्जे वाले इलाके में पहले ही सड़क बना चुका है. अब जब भारत की ओर से सड़क बनाई जा रही है, तो चीन आपत्ति जता रहा है. फिलहाल भारत और चीन के बीच जो सीमा विवाद चल रहा है, वो इसी गालवन घाटी को लेकर है. भारत अपनी सड़क न बना सके, इसलिए चीन ने अपनी और सैनिक तैनात कर दिए हैं. भारत ने भी अपने इलाके में सैनिक तैनात कर लिए हैं और सड़क बनाने का काम चल रहा है.

3. पैगोंग त्सो झील भारत और चीन के बीच के सीमा विवाद में पैगोंग त्सो झील का सबसे बड़ा हाथ है. करीब 134 किलोमीटर लंबी इस झील का 45 किलोमीटर का इलाका भारत में है, जबकि 90 किलोमीटर का इलाका चीन के कब्जे वाले इलाके में पड़ता है. करीब 14000 फुट की ऊंचाई पर मौजूद ये झील चीन और भारत के बीच बने एक्चुअल लाइन ऑफ कंट्रोल से होकर गुजरती है, जिसके दोनों ओर चीन और भारत के सैनिक तैनात रहते हैं. यहां दिक्कत इस बात की है चीन यहां पर खुद से लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल तय करने की कोशिश करता है और इसके लिए वो कई बार भारत से भिड़ चुका है. 1962 की लड़ाई में भारत पर हमला करने के लिए चीन ने इस झील का भी इस्तेमाल किया था. भारत और चीन के सैनिक कई बार इस झील में टकरा चुके हैं और हर बार इसकी वजह सीमा विवाद ही बनता है.

3. तवांग तवांग बौद्ध धर्म के कुछ चुनिंदा धार्मिक स्थलों में से एक है. यह भारत का अभिन्न हिस्सा है, जो अरुणाचल प्रदेश में पड़ता है. लेकिन चीन इस तवांग को दक्षिणी तिब्बत का हिस्सा मानता है. साल 1914 में जब भारत में ब्रिटिश राज था और तिब्बत एक स्वतंत्र देश था, तो तिब्बत और ब्रिटिश भारत के बीच एक समझौता हुआ था, जिसमें अरुणाचल प्रदेश के तवांग को ब्रिटिश भारत का हिस्सा माना गया था. लेकिन चीन दावा करता है कि 1914 में हुए समझौते के वक्त वो मौजूद नहीं था और अब तिब्बत उसका हिस्सा है तो तवांग भी उसे मिलना चाहिए. इसको लेकर चीन और भारत के बीच कई बार युद्ध जैसी स्थितियां पैदा हो चुकी हैं, लेकिन कोई भी देश अपना दावा छोड़ने को तैयार नहीं होता है.

4. डोकलाम डोकलाम भारत, चीन और भूटान के बॉर्डर पर है, जो एलएसी के लिहाज से पूर्वी सेक्टर है. भारत में इसकी सीमा सिक्किम से लगती है. अगर 1962 की लड़ाई को छोड़ दें, तो भारत और चीन के बीच सबसे लंबा सीमा विवाद इसी इलाके को लेकर रहा है, जहां दोनों देशों की सेनाएं 73 दिनों तक आमने-सामने युद्ध की स्थिति में खड़ी रही थीं. साल 2017 में चीन इस इलाके में सड़क बना रहा था, भारत ने इसका कड़ा विरोध किया और अपनी सेना तैनात कर दी. चीन ने भी जवाब में अपनी सेना तैनात कर दी. लेकिन भारत ने अपना दावा वापस नहीं लिया. आखिरकार 73 दिनों की बातचीत के बाद मसले को सुलझाया जा सका. हालांकि कभी-कभी यहां स्थितियां तनावपूर्ण हो जाती हैं, क्योंकि भूटान भी डोकलाम पर अपना दावा करता है और भारत भूटान के इस दावे का समर्थन कर देता है. वहीं चीन का दावा है कि डोकलाम उसका हिस्सा है.

5. नाथुला दर्रा भारत की सामरिक दृष्टि के लिहाज से नाथुला दर्रा बेहद अहम है. एलएसी के लिहाज से ये पूर्वी सेक्टर का हिस्सा है. यह भारत के सिक्किम राज्य को दक्षिण तिब्बत में चुंबा घाटी से जोड़ता है. लिपुलेख तक नई सड़क बनने से पहले नाथुला दर्रा ही वो रास्ता था, जिसके जरिए कैलाश मानसरोवर के यात्री तिब्बत में दाखिल होते थे. इसके अलावा इस दर्रे की ऊंचाई करीब 14,200 फीट है, जो भारत के लिए सैन्य दृष्टिकोण से बेहद महत्वपूर्ण है. लेकिन चीन इस दर्रे की सीमा को लेकर भी आपत्ति जताता रहता है. सिक्किम की राजधानी गंगटोक से करीब 54 किलोमीटर दूर इस दर्रे के दोनों ओर तैतान भारत और चीन के सैनिकों के बीच अभी इसी मई महीने के दूसरे हफ्ते में झड़प हुई थी. 1962 में जब भारत और चीन के बीच चुद्ध हुआ था, तो नाथुला दर्रे को बंद कर दिया गया था. लेकिन कारोबार दोनों ही देशों की जरूरत थी और खास तौर से चीन को भारत के साथ कारोबार करना ही था तो साल 2006 में इस दर्रे को खोला गया था.

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