India-Iran And Armenia Trilateral Group: पाकिस्तान जहां आर्थिक तंगी से जूझ रहा है और बुरी तरह से बर्बाद होने के कगार पर खड़ा है, वहीं भारत लगातार खुद को वैश्विक तौर पर मजबूत करने में जुटा है. हाल ही में इसका बड़ा उदाहरण देखने को मिला, जब भारत ने आर्मेनिया और ईरान के साथ एक ग्रुप का गठन कर दिया. जिसकी पहली बैठक भी हो चुकी है. तीनों देशों के प्रतिनिधियों ने इस त्रिपक्षीय ग्रुप की बैठक में हिस्सा लिया, जो आर्मेनिया में हुई. इस बैठक में कई अहम मुद्दों पर चर्चा हुई. अब भारत समेत तीन देशों के इस संगठन ने तुर्की और पाकिस्तान की नींद उड़ा दी है. आइए समझते हैं कि कैसे भारत, आर्मेनिया और ईरान विरोधी मुल्कों के लिए परेशानी का सबब बन सकते हैं और पहली बार हुए इस संगठन के क्या मायने हैं. 


इन मुद्दों पर हुई तीनों देशों की बात 
सबसे पहले ये जान लेते हैं कि भारत, ईरान और आर्मेनिया ने एक साथ आने का फैसला क्यों किया और इस नए संगठन का क्या उद्देश्य है. दरअसल इसका मकसद क्षेत्रीय सहयोग को मजबूत करना बताया गया है. आर्मेनिया में हुई इस बैठक में आर्थिक मुद्दों और क्षेत्रीय संचार को लेकर बातचीत हुई. इसके अलावा कई और क्षेत्रों में भी आपसी सहयोग बढ़ाने की बात हुई. इस बैठक में आर्मेनिया के उपविदेश मंत्री ईरान के विदेश मंत्री के सहायक और भारतीय विदेश मंत्रालय के ज्वाइंट सेक्रेट्री जेपी सिंह शामिल हुए.  




क्यों भारत के साथ आया आर्मेनिया
आर्मेनिया की बात करें तो अजरबैजान उसका कट्टर दुश्मन है, जो नागोर्नो कारबाख पर हमेशा अपना दावा पेश करता रहा है. वहीं तुर्किए और पाकिस्तान लगातार इसके लिए अजरबैजान को हथियार और कई तरह की मदद देते आए हैं. 2020 में जब आर्मेनिया और अजरबैजान के बीच जंग शुरू हुई तो उसमें तुर्किए ने अजरबैजान को काफी मदद की थी. उसे दिए ड्रोन्स का नतीजा ये हुआ कि आर्मेनिया को बैकफुट पर आना पड़ा. साथ ही अजरबैजान अब पाकिस्तान से फाइटर जेट्स खरीदने की बात भी कर रहा है. 


उसके बाद ही आर्मेनिया ने भारत की तरफ देखना शुरू किया और उसे मदद भी मिली. साल 2022 में आर्मेनिया और भारत के बीच करीब दो हजार करोड़ की डील हुई थी, जिसके तहत आर्मेनिया को भारत की तरफ से हथियारों की आपूर्ति की जानी है. अब आर्मेनिया फिर से भारत के साथ बड़ी डिफेंस डील करने की सोच रहा है. हाल ही में विदेश मंत्री एस जयशंकर ने आर्मेनिया के विदेश मंत्री से मुलाकात भी की थी. यानी आर्मेनिया भारत और ईरान के साथ मिलकर पाकिस्तान, तुर्किए और अजरबैजान के गठजोड़ का तोड़ निकालने की कोशिश कर रहा है. 


क्या है कश्मीर एंगल 
पाकिस्तान हमेशा से कश्मीर को लेकर अपनी नापाक हरकतें करता रहा है, कश्मीर मुद्दे को हर वैश्विक मंच पर पाकिस्तान की तरफ से उठाया गया है. वहीं भारत का स्टैंड रहा है कि कश्मीर हमेशा से हमारा अभिन्न अंग है. इसके अलावा पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर पर भी लगातार सवाल उठते रहे हैं. जो मौजूदा त्रिपक्षीय संगठन बना है, उसमें भी कश्मीर का एंगल देखा जा सकता है.


दरअसल पाकिस्तान के इस्लामाबाद में जनवरी 2021 में एक संयुक्त प्रस्ताव पर हस्ताक्षर किए गए थे. जिसमें तुर्की और अजरबैजान भी शामिल थे. जिसमें पैरामिलिट्री डायलॉग की बात कही गई थी. इस समझौते को बाकू डिक्लेरेशन का नाम दिया गया था. इसमें तीनों देशों ने आपसी समझौते के तहत कहा था कि वो सभी एक दूसरे की सीमा संप्रभुता को ध्यान में रखेंगे. यानी अगर पाकिस्तान कहता है कि कश्मीर उसका है तो तीनों देश हर मंच से यही कहेंगे. वहीं तुर्किए साइप्रस पर अपना अधिकार जमाता है, ऐसे ही नागोर्नो कारबाख पर अजरबैजान अपना हक जताता रहा है. यानी सभी के हित इस समझौते में शामिल थे. 


पाकिस्तान-तुर्किए के लिए झटका क्यों?
दरअसल भारत, ईरान और आर्मेनिया की इस नई दोस्ती को पाकिस्तान, तुर्किए और अजरबैजान के लिए झटका इसलिए कहा जा रहा है, क्योंकि ये दुश्मन का दुश्मन दोस्त जैसा एक समझौता है. अजरबैजान को आर्मेनिया का सबसे बड़ा दुश्मन माना जाता है. जिसे पाकिस्तान और तुर्किए लगातार सपोर्ट करता है. इसीलिए अब आर्मेनिया ने ईरान के साथ मिलकर भारत से हाथ मिलाया है. कश्मीर मुद्दे पर आर्मेनिया लगातार भारत को सपोर्ट करता आया है. यानी जहां पाकिस्तान ने तुर्किए और अजरबैजान को अपने पाले में खड़ा किया, वहीं भारत ने भी इसके जवाब में अब आर्मेनिया और ईरान के साथ अपने रिश्तों को औपचारिक कर दिया है. जिससे पाकिस्तान, तुर्किए और अजरबैजान को मिर्ची लग सकती है.


भारत को क्या फायदा?
भारत की तरफ से ईरान से होते हुए रेल और सड़क मार्ग का इस्तेमाल करते हुए आर्मेनिया की तरफ जाने की कोशिश की जा सकती है. जिससे इन सभी देशों के बीच व्यापार में काफी ज्यादा मदद मिल सकती है. इसके अलावा ईरान की बात करें तो यहां स्थित चाबहार पोर्ट भारत के लिए काफी अहम है. इसी चाबहार पोर्ट की मदद से भारत तमाम देशों में व्यापार करता है. ये पोर्ट भारत के इंडिया-पैसिफिक रीजन को यूरोप और एशिया से जोड़ता है. इसे सेंट्रल एशिया में घुसने का दरवाजा भी कहा जाता है. यानी सामान की सप्लाई के लिए ये बंदरगाह भारत के लिए काफी अहम है. 


INSTC कॉरिडोर काफी अहम
आर्मेनिया में हुई त्रिपक्षीय बैठक में INSTC यानी इंटरनेशनल नॉर्थ-साउथ ट्रांसपोर्ट कॉरिडोर पर भी चर्चा हुई. जो भारत ईरान और रूस को जोड़ने वाला एक कॉरिडोर है. जिसमें जहाज, रेल और सड़क मार्ग का करीब 7200 किमी का लंबा नेटवर्क है. रूस-ईरान और भारत की तरफ से इस कॉरिडोर की शुरुआत की गई थी. इस कॉरिडोर के जरिए भारत अपने माल को रूस और बाकी यूरोपीय देशों तक आसानी से पहुंचा सकता है. इसकी मदद से सामान की लागत और उसे पहुंचाने में लगने वाले वक्त में भी काफी कटौती होगी. बता दें कि चाबहार पोर्ट INSTC का एक अहम हिस्सा है. 


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