क्या कोरोना का वायरस कभी खत्म भी हो पाएगा? इस सवाल का जवाब दिया है विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के डॉक्टर माइकल रयान ने. उनका मानना है कि जिस तरह से एड्स का वायरस HIV खत्म नहीं हो पाया है, वैसे ही कोरोना भी कभी खत्म नहीं होगा. फिर भी डॉक्टर और वैज्ञानिक अपनी कोशिश लगातार कर रहे हैं. अमेरिका, ब्रिटेन, जर्मनी, जापान, फ्रांस, चीन और इटली जैसे देशों के डॉक्टर इस वायरस की काट खोजने के लिए वैक्सीन की तलाश में लगे हैं. कुछ देशों ने तो क्लिनिकल ट्रायल भी शुरू कर दिया है, जिसकी निगरानी विश्व स्वास्थ्य संगठन कर रहा है.
क्लिनिकल ट्रायल शुरू करने वाले देशों में अब अपना देश भी शामिल होने जा रहा है. विश्व स्वास्थ्य संगठन की ओर से चलाए जा रहे वैक्सीन के क्लिनिकल ट्रायल के तहत भारत कोविड 19 की चार दवाइयों का ट्रायल करने जा रहा है. खुद इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च ने 13 मई, 2020 को साफ किया है कि चार दवाइयां रेमडेसिवीर, क्लोरोक्वीन, लोपिनावीर-रिटोनावीर और इंटरफेरॉन (बीटा 1a) के साथ लोपिनावीर-रिटोनावीर का ट्रायल किया जाएगा, जो विश्व स्वास्थ्य संगठन की ओर से चल रहे ट्रायल का हिस्सा है. अब कोरोना तो अभी आया है, लेकिन ये दवाइयां पहले से मौजूद हैं. इसका मतलब ये कि ये दवाइयां पहले भी किसी बीमारी के इलाज में काम आ रही होंगी. कौन सी दवाई किस बीमारी के इलाज के काम आती है, उसे भी समझने की कोशिश करते हैं.
लिस्ट में पहली दवाई है रेमडेसिवीर. अमेरिकी कंपनी जीलियड ने इसे साल 2009 में हेपेटाइटिस सी के इलाज के लिए बनाया था. बाद में इसका इस्तेमाल इबोला वायरस और मारबर्ग वायरस से हुए इन्फेक्शन का इलाज करने के लिए किया गया. अप्रैल 2020 से कई देशों ने रेमडेसिवीर को कोरोना वायरस या कोविड 19 से संक्रमित मरीजों के इलाज के लिए इस्तेमाल करने की मंजूरी दी है. इन देशों में अमेरिका और जापान जैसे देश भी शामिल हैं.
लिस्ट में दूसरी दवाई है क्लोरोक्वीन या हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्वीन. इसका इस्तेमाल मलेरिया से संक्रमित लोगों का इलाज करने के लिए किया जाता है. ऑर्थराइटिस जैसी बीमारी में भी दूसरी दवाओं के साथ इसका इस्तेमाल किया जाता है. अब विश्व स्वास्थ्य संगठन की पहल पर इस क्लोरोक्वीन की टेस्टिंग चल रही है कि क्या इस दवाई से कोरोना से संक्रिमत आदमी का इलाज हो सकता है.
तीसरी दवाई है लोपिनावीर-रिटोनावीर. इनका कॉम्बिनेशन एचआईवी के इलाज में काम आता है. अगर किसी की स्किन में सुई के चुभने से कोई घाव हो गया है, तो उसके इलाज में भी लोपिनावीर-रिटोनावीर काम आती है. इसे टैबलेट, कैप्सुल या सॉल्युशन के तौर पर मुंह से लिया जा सकता है. कोरोना के इलाज में ये कितनी कारगर है, इसे देखने के लिए WHO ने इसके क्लिनिकल ट्रायल की मंजूरी दी है, जो शुरू भी हो चुकी है.
चौथी दवाई है इंटरफेरॉन (बीटा 1a). ये हेपेटाइटिस सी के इलाज के काम में आती है. लेकिन अब इस इंटरफेरॉन (बीटा 1a) को लोपिनावीर-रिटोनावीर के साथ मिलाकर इस बात की टेस्टिंग की जा रही है कि क्या इन तीनों दवाइयों का कॉम्बिनेशन कोरोना वायरस या फिर कोविड 19 के वायरस से लड़ने के लिए कारगर है या नहीं.
इन चार दवाइयों में से रेमडेसिवीर को छोड़कर बाकी की तीन दवाइयां भारतीय कंपनियां बनाती हैं. रेमडेसिवीर एक नई दवाई है, जिसे अमेरिकी कंपनी जीलियड बनाती है. जीलियड ने हाल ही में भारत की तीन कंपनियों जुबिलंट, सिप्ला और हेटेरो को अपने यहां दवाई को बनाने और दुनिया के 126 दूसरे देशों में बेचने की मंजूरी दे दी है. इन दवाइयों के ट्रायल का मकसद ये देखना है कि क्या इन दवाइयों से बीमारी को बढ़ने की रफ्तार को कम किया जा सकता है या फिर इनके इस्तेमाल से कोविड 19 का मरीज ठीक हो रहा है. कई देशों में एक साथ ट्रायल करने से जल्दी से जल्दी किसी नतीजे पर पहुंचा जा सकता है और इसीलिए विश्व स्वास्थ्य संगठन ने इस ट्रायल कार्यक्रम की शुरुआत की है.
भारत में WHO के इस कार्यक्रम की नेशनल कोऑर्डिनेटर हैं सीनियर साइंटिस्ट शीला गोडबोले. उनका कहना है कि देश के 9 राज्यों में इस ट्रायल की शुरुआत हुई है. इसके लिए हर तरह की मंजूरी पहले ही ली जा चुकी है. ट्रायल के लिए मरीजों को इकट्ठा किया जाना शुरू हो चुका है. WHO के भारतीय प्रतिनिधि हेंक बेकेडम का कहना है कि इस कार्यक्रम में शामिल होकर भारत के डॉक्टर भी अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कोविड 19 के लिए खोजे जा रहे इलाज वाली टीम का हिस्सा बन रहे हैं और ऐसा करके वो मुश्किल वक्त में दुनिया की मदद कर रहे हैं.