India- Sri Lanka Relations: दक्षिण एशिया में हिन्द महासागर के उत्तरी भाग में स्थित दुनिया के सबसे खूबसूरत देशों में एक श्रीलंका इन दिनों गहरे संकट में है. दो करोड़ 20 लाख की आबादी वाला यह देश सबसे खराब आर्थिक और राजनीतिक दौर से गुजर रहा है. कर्ज में डूबे इस देश के हालात इतने खराब हो गए हैं कि नाराज लोग सड़कों पर उतर आए हैं और देश की सरकार बदलने की लगातार मांग कर रहे हैं.
खराब हालात में श्रीलंका की मदद के लिए भारत आगे आया है. भारत श्रीलंका के साथ हमेशा 'पड़ोसी धर्म' निभाता रहा है. दोनों देशों के बीच के रिश्ते आज से नहीं बल्कि कई सौ साल पुराने हैं. आइए दोनों देशों के बीच रिश्ते कितने पुराने हैं इसको पहले जान लेते हैं...
पौराणिक कथाओं में है जिक्र
श्रीलंका और भारत दो अलग-अलग देश होते हुए भी पौराणिक कथाओं के आधार पर जुड़े हुए हैं. कई प्रचलित कथाओं के आधार पर हम कह सकते हैं कि दोनों देशों के बीच सांस्कृतिक और धार्मिक आधार पर रिश्ते सदियों पुराने हैं. श्रीलंका में रह रहे हिन्दुओं की आबादी देश की कुल आबादी का लगभग 12.60 प्रतिशत है. एक रिसर्च की मानें तो श्रीलंका की प्रमुख जाति सिंघल है और इस सिंघल जाति का संबंध उत्तर भारत के लोगों से है. सिंघल भाषा गुजराती और सिंधी भाषा जैसी ही है. भारत के धनुषकोडी से श्रीलंका की दूरी महज 18 मील है.
श्रीलंका के इतिहास पर नजर डालें तो इस देश का लगभग 3000 वर्षों का लिखित इतिहास मौजूद है. आइए अब उन कथाओं को जान लेते हैं जिसके आधार पर हम कह सकते हैं कि भारत और श्रीलंका का संबंध सदियों पुराना है.
भारत श्रीलंका के पौराणिक रिश्ते
हिंदू प्राचीन कथाओं के अनुसार श्रीलंका को भगवान शिव ने बसाया था. इतिहास में कहा गया है कि भगवान शिव की आज्ञा से विश्वकर्मा ने यहां पार्वती जी के लिए सोने का एक महल बनवाया था. जिसके बाद ऋषि विश्रवा ने शिव के भोलेपन का लाभ उठाकर उनसे लंकापुरी दान में मांग लिया. तब पार्वती ने ऋषि विश्रवा को श्राप दिया कि महादेव का ही अंश एक दिन उस महल को जलाकर कोयला कर देगा और उसके साथ ही तुम्हारे कुल का विनाश आरंभ हो जाएगा.
श्रीलंका को शिव के पांच निवास स्थानों का घर माना जाता है. शिव के पुत्र कार्तिकेय यानी मुरुगन यहां के सबसे लोकप्रिय हिंदू देवताओं में से एक हैं. मुरुगन की पूजा यहां के ना सिर्फ तमिल हिंदू करते हैं बल्कि बौद्ध सिंहली और आदिवासी भी करते हैं. श्रीलंका के अलग अलग स्थानों पर ऐसे कई मंदिर हैं जो हिन्दू और बौद्धों की साझा संस्कृति को दर्शाते हैं.
वाल्मीकि रामायण में बताया गया है कि लंका समुद्र के पार द्वीप के बीच में स्थित है. जिसका मतलब है कि आज की श्रीलंका के मध्य में रावण की लंका स्थित थी. भारतीय महाकाव्यों की परंपरा पर आधारित 'जानकी हरण' के रचनाकार कुमार दास के संबंध में कहा जाता है कि वे कुमार दास महाकवि कालिदास के घनिष्ठ मित्र थे. बता दें कि कुमार दास (512-21ई.) लंका के राजा थे. इसे पहले 700 ईसा पूर्व में श्रीलंका में राम के जीवन से जुड़ी कहानियां घर-घर में प्रचलित रही है. इस कहानी को सिंहली भाषा में सुनाया जाता था. जिसे 'मलेराज की कथा' कहते थे.
भारत-श्रीलंका वाणिज्यिक संबंध
दोनों देशों के बीच वाणिज्यिक संबंध भी काफी गहरे और पुराने हैं. भारत श्रीलंका का सबसे करीबी पड़ोसी है और दोनों देश एक समुद्री सीमा साझा करते हैं. दोनों देशों ने 28 दिसंबर 1998 को भारत - श्रीलंका मुक्त व्यापार समझौता (आईएसएफटीए) पर हस्ताक्षर किया था. यह श्रीलंका का पहला द्विपक्षीय मुक्त व्यापार समझौता था. द्विपक्षीय मुक्त व्यापार समझौते पर हस्ताक्षर करने के बाद साल 2000 से भारत श्रीलंका व्यापार बढ़ने लगा. साल 2004 तक भारत-श्रीलंकाई व्यापार 128 प्रतिशत बढ़ गया और साल 2006 तक यह चौगुना होकर यूएस $ 2.6 बिलियन तक पहुंच गया. वहीं साल 2010 दोनों देशों के द्विपक्षीय व्यापार के लिए सबसे अच्छा साल माना जाता है. दरअसल 2010 के पहले सात महीनों में भारत के श्रीलंका के निर्यात में 45% की वृद्धि हुई थी. भारत श्रीलंका में विकास गतिविधियों के कई क्षेत्रों में भी सक्रिय है. भारत द्वारा दिए गए कुल विकास ऋण का लगभग छठा हिस्सा श्रीलंका को उपलब्ध कराया जाता है.
श्रीलंका की चीन के साथ करीबी
हालांकि पिछले कुछ सालों से भारत श्रीलंका रिश्ते में दूरी पैदा हुई है. इस द्वीपीय देश में चीन की पहुंच में नाटकीय ढंग से बढ़ोतरी हुई है. हाल के वर्षों में श्रीलंका विशेष रूप से नौसेना समझौतों के मामले में चीन के करीब चला गया. श्रीलंका ने दो वजहों से चीन से अपनी नजदीकियां बढाई. पहला कारण तमिल मुद्दे के बारे में भारत की नीयत को लेकर श्रीलंका का शक बना हुआ है.
दूसरी वजह भारत में नौकरशाही की प्रक्रिया की धीमी रफ़्तार है जो किसी मंज़ूरी में देर लगाती है. इसके कारण श्रीलंका को लेकर भारत की प्रतिबद्धता वहां संदेह पैदा करती है. हालांकि चीन का कदम न केवल भारत की शक्ति को प्रभावित करता है बल्कि श्रीलंका की संप्रभुता को भी प्रभावित करता है.
श्रीलंका की वर्तमान स्थिति
श्रीलंका फिलहाल गंभीर आर्थिक और राजनीतिक संकट से गुजर रहा है. माना जा रहा है कि श्रीलंका 1948 में ब्रिटेन से आजाद होने के बाद पहली बार गंभीर आर्थिक संकट का सामना कर रहा है. देश में रोजमर्रा के सामानों की कीमत इतनी महंगी है कि आम इंसान उसे खरीदने में सक्षम नहीं है. देश में खाने-पीने के सामान का संकट और ईंधन भी आसानी से नहीं मिल रहा है, देश में 13 घंटे बिजली गुल रह रही है. इन सबके कराण श्रीलंका के आम लोग सड़कों पर उतर कर प्रदर्शन कर रहे हैं.
लगातार हो रहे प्रदर्शन को देखते हुए बीते सप्ताह ही पूर्व प्रधानमंत्री महिंदा राजपक्षे को इस्तीफ़ा देना पड़ा था. उनके बाद श्रीलंका के प्रधानमंत्री बने रानिल विक्रमसिंघे ने कहा है कि स्थिति बेहतर होने से पहले और ज़्यादा ख़राब होंगी. उन्होंने भारत सहित दुनिया के दूसरे देशों से वित्तीय मदद भी मांगी है.
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