Jammu-Kashmir Non Locals Voting Row: जम्मू-कश्मीर में विधानसभा चुनाव (Jammu and Kashmir Assembly Election) के मद्देनजर चुनाव आयोग ने बुधवार को एक अहम एलान किया. इसके तहत नॉन लोकल्स (Non Locals) को मतदाता सूची (Voting List) नाम दर्ज कराने का हक दिया गया है. चुनाव आयोग के इस फैसले से यहां के सियासी गलियारों में हलचल और तकरीर पैदा कर दी है. राज्य के प्रभावशाली नेता चुनाव आयोग के इस फैसले की खिलाफत में उतर आए हैं. इस फैसले पर चर्चा करने के लिए जम्मू -कश्मीर नेशनल कांफ्रेस-जेकेएनसी (Jammu Kashmir National Conference-JKNC) ने 22 अगस्त को एक सर्वदलीय बैठक करने का एलान कर डाला है.शीर्ष कश्मीरी नेताओं ने कहा कि जम्मू-कश्मीर में आगामी चुनावों में गैर-स्थानीय लोगों को वोट देने की अनुमति देना विनाशकारी (Disastrous) होगा और पलड़े को बीजेपी (BJP) के पक्ष में झुकाएगा.आइए यहां जानते हैं चुनाव आयोग (Election Commission) के इस फैसले से कश्मीर के राजनेता नाखुशी क्यों जता रहे हैं?
चुनाव आयोग के फैसले पर एक नजर
जम्मू-कश्मीर के मुख्य चुनाव अधिकारी (Chief Electoral Officer- CEO) हृदेश कुमार (Hirdesh Kumar) ने बुधवार को एक अहम फैसला सुनाया. सीईओ कुमार ने बुधवार 17 अगस्त की प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान कहा कि कश्मीर में काम करने वाले गैर-स्थानीय लोग (Non Locals) जम्मू-कश्मीर में वोट कर सकते हैं, केवल उन्हें अपने मूल राज्यों में अपना वोट रद्द करना होगा. उन्होंने कहा कि अनुच्छेद 370 के निरस्त होने के बाद, कई नए मतदाता सूची में अपना नाम जोड़ सकते हैं जो अस्थायी रूप से जम्मू-कश्मीर में रह रहे हैं और यहां मजदूर, छात्र या यहां व्यवसाय करने वाले लोगों के रूप में काम कर रहे हैं.
सीईओ कुमार ने कहा कि इन बाहरी लोगों को मतदाता सूची में नाम दर्ज कराने के लिए डोमिसाइल की जरूरत नहीं होगी. इस फैसले के बाद राज्य के विधानसभा चुनावों में वोट डालने के लिए अब राज्य से बाहर के लोग भी रजिस्ट्रेशन करा सकते हैं. बस उनकी आयु 1 अक्टूबर 2022 तक 18 साल की पूरी होनी चाहिए. इस फैसले से जम्मू-कश्मीर में तैनात सुरक्षा कर्मी भी आने वाले विधान सभा में वोट डाल सकेंगे.सीईओ कुमार ने बताया कि इस केंद्र शासित प्रदेश में मतदाता सूची में लगभग 25 लाख नए मतदाताओं नाम जुड़ने की उम्मीद है.
गौरतलब है कि नए परिसीमन के बाद जम्मू-कश्मीर विधानसभा में सीटों की संख्या बढ़कर 90 हो गई है. परिसीमन एक्सरसाइज (Delimitation Exercise) के दौरान नई सात सीटें जोड़ी गईं जो जम्मू संभाग में छह और कश्मीर संभाग में एक है. जम्मू-कश्मीर के प्रमुख राजनीतिक दलों के नेताओं ने परिसीमन आयोग पर बीजेपी की मदद करने का आरोप लगाया. नए परिसीमन अभ्यास के बाद, केंद्र शासित प्रदेश में चुनाव कराने की प्रक्रिया शुरू हो गई है और अंतिम मतदाता सूची 25 नवंबर को प्रकाशित की जाएगी. बस चुनाव आयोग का यही फैसला इस केंद्र शासित प्रदेश के प्रभावशाली नेताओं की गले की फांस बन गया है.
बीजेपी की वोटर आयात करने की नीति
जम्मू-कश्मीर नेशनल कॉन्फ्रेंस-जेकेएनसी (JKNC) नेता और सूबे के पूर्व सीएम उमर अब्दुल्ला (Omar Abdullah) ने ट्वीट किया, ‘‘क्या भारतीय जनता पार्टी (BJP) जम्मू कश्मीर के वास्तविक मतदाताओं के समर्थन को लेकर इतनी आशंकित और असुरक्षित है कि उसे यहां सीटें जीतने के लिए अस्थायी मतदाताओं को आयात करने की जरूरत आन पड़ी है? जब जम्मू-कश्मीर के लोगों को अपने मताधिकार का इस्तेमाल करने का मौका दिया जाएगा तो इनमें से कोई भी चीज बीजेपी की मदद नहीं कर पाएगी.’’
जेकेएनसी ने बुला डाली है बैठक
सूबे के पूर्व सीएम और जेकेएनसी के अध्यक्ष फारूक अब्दुल्ला (Farooq Abdullah) भी इस फैसले को लेकर खासी चिंता में है. उन्होंने मतदाता सूची में गैर-स्थानीय लोगों को शामिल करने के चुनाव आयोग के फैसले पर चर्चा करने के लिए जम्मू-कश्मीर के सभी राजनीतिक दलों के नेताओं को बैठक का न्यौता दिया है. उन्होंने इस मसले पर सूबे के सभी नेताओं से निजी तौर पर बात भी की. जेकेएनसी के अध्यक्ष ने सभी नेताओं से सोमवार 22 अगस्त को सुबह 11 बजे बैठक में शिरकत करने का अनुरोध किया है.
जेकेएनसी ने बताया ‘मताधिकार का हनन’
जेकेएनसी के मुख्य प्रवक्ता तनवीर सादिक ने जम्मू कश्मीर की मतदाता सूची में बाहरी मतदाताओं को शामिल करने के फैसले को भूतपूर्व राज्य के लोगों के ‘मताधिकार का हनन’ करार दिया है. जेकेएनसी का कहना है कि किसी भी बाहरी व्यक्ति को सिर्फ इसलिए मतदान करने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए कि वे यहां अस्थायी रूप से रहने आए हैं. पार्टी के प्रवक्ता तनवीर सादिक ने संवाददाताओं से कहा, ‘‘मुख्य निर्वाचन अधिकारी (CEO) ने क्या कहा है, इस पर कोई स्पष्टता नहीं है. सामान्य रूप से रहने वाले किसी नागरिक की योग्यता क्या है? क्या पर्यटकों सहित कोई भी यहां अपना वोट दर्ज करा सकता है?’’
उन्होंने कहा कि लोगों में आशंकाएं हैं और सरकार को स्थिति स्पष्ट करनी चाहिए. सादिक ने कहा,‘‘अहम बात यह है कि देश में ऐसे कई राज्य हैं, जहां अभी चुनाव नहीं हुए हैं. वे राज्य अपने लोगों को यहां भेज सकते हैं, वे खुद को मतदाता के रूप में पंजीकृत कर सकते हैं, फिर मतदान कर सकते हैं और फिर यहां अपना पंजीकरण रद्द कर सकते हैं, जिसके बाद वे फिर से अपने राज्यों में अपना पंजीकरण करा लेंगे.’’ उन्होंने कहा, ‘‘लोगों के मन में यह आशंका है क्योंकि स्पष्टता नहीं है...अंदेशा है कि यह सब एक योजना के तहत किया जा रहा है.’’
सुरक्षा बल मतदाता सूची में शामिल होने पर भी एतराज
सुरक्षा बलों के जवानों द्वारा खुद को मतदाता के रूप में पंजीकृत कराने के मुद्दे का जिक्र करते हुए जेकेएनसी के मुख्य प्रवक्ता तनवीर सादिक ने कहा कि नियमों के मुताबिक सुरक्षा बल शांतिपूर्ण सैन्य स्थलों में ही मतदाता के तौर पर पंजीकरण करा सकते हैं. उन्होंने सवाल किया, ‘‘जम्मू कश्मीर में सशस्त्र बल विशेष अधिकार कानून-आफ्स्पा (Armed Forces Special Powers Act) लागू है, जिसका अर्थ है कि जम्मू कश्मीर को अशांत राज्य घोषित किया गया है.इसलिए यह शांति वाला स्थान नहीं है ऐसे में सुरक्षा बल यहां स्थानीय मतदाता के तौर पर कैसे पंजीकरण करा सकते हैं.’’ हालांकि सीईओ के बयान के बाद आतंकवादी समूहों की धमकी जेकेएनसी के नेता ने कहा कि बाहरी लोगों की सुरक्षा भी एक अहम मुद्दा है.
कश्मीरियों को कमजोर करना है मकसद
पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी-पीडीपी (Peoples Democratic Party-PDP) अध्यक्ष महबूबा मुफ्ती (Mehbooba Mufti) ने भी चुनाव आयोग के इस फैसले पर अपनी नाराजगी जताई है. पीडीपी अध्यक्ष मुफ्ती ने इस फैसले को बीजेपी के पक्ष में संतुलन बनाने का घिनौना हमला करार दिया. पीडीपी अध्यक्ष ने ट्वीट किया, “जम्मू-कश्मीर में चुनावों को टालने का भारत सरकार का फैसला, बीजेपी के पक्ष में पलड़े को झुकाने और अब गैर-स्थानीय लोगों को वोट देने की अनुमति देने से चुनाव नतीजों को प्रभावित करने की रणनीति है. असली मकसद स्थानीय लोगों को शक्तिहीन कर जम्मू-कश्मीर पर सख्ती से शासन करना जारी रखना है.
पीपुल्स कांफ्रेंस ने कहा खतरनाक है ये कदम
पीपुल्स कांफ्रेंस (Peoples Conference) के अध्यक्ष और पूर्व मंत्री सज्जाद लोन (Sajad Lone) ने कहा कि गैर-स्थानीय लोगों को विधानसभा चुनाव में वोट देना 1987 की धांधली के समान विनाशकारी होगा. जम्मू-कश्मीर के मुख्य चुनाव अधिकारी के इस बयान पर लोन ने कहा कि जम्मू-कश्मीर में रहने वाले देश के हर नागरिक को विधानसभा चुनावों (Assembly Elections)में वोटिंग का हक हो सकता है,लेकिन ऐसा कदम 1987 का रिप्ले होगा.
माइक्रोब्लॉगिंग प्लेटफॉर्म ट्विटर (Twitter) पर सज्जाद ने कहा, “यह खतरनाक है. मुझे नहीं पता कि वे क्या हासिल करना चाहते हैं. यह शरारत से कहीं ज्यादा है. लोकतंत्र एक अवशेष है, खासकर कश्मीर के संदर्भ में. कृपया 1987 को याद करें. हम अभी तक इससे बाहर नहीं आए हैं. 1987 को दोबारा न दोहराएं. यह उतना ही विनाशकारी होगा."
बीजेपी ने किया इस फैसले का स्वागत
बीजेपी ने भारतीय चुनाव आयोग के इस फैसले का स्वागत किया है और इसे ईसीआई (ECI) का एक बड़ा कदम बताया. बीजेपी के राज्य प्रवक्ता अल्ताफ ठाकुर (Altaf Thakur) ने कहा,“विधानसभा चुनावों में गैर-स्थानीय मजदूरों, या जो लोग पढ़ाई के लिए आए हैं,और जो सुरक्षा उद्देश्यों के लिए यहां आए हैं, उन्हें मतदान का अधिकार देना यह चुनाव आयोग का एक महान कदम है. दुर्भाग्य से, क्षेत्रीय दल वास्तविक लोकतंत्र की गर्मी महसूस कर रहे हैं.”
भारत सरकार ने भी साफ किया अपना रूख
सरकार के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया, “ अनुच्छेद 370 को निरस्त करने और जन प्रतिनिधित्व अधनियम, 1950 और 1951 के लागू होने के साथ ही, भारत का कोई भी नागरिक जो निर्धारित उम्र का हो चुका है और किसी स्थान पर 'सामान्य रूप से निवास कर रहा है', वह उस स्थान की मतदाता सूची में पंजीकृत होने के लिए पात्र है.” अधिकारी ने कहा कि अनुच्छेद 370 को निरस्त किये जाने से पहले प्रदेश में विधानसभा चुनाव के लिए मतदाता सूची जम्मू कश्मीर जनप्रतिनिधित्व अधिनियम 1957 के तहत तैयार की जाती थी, जिसमें केवल स्थायी निवासी ही पंजीकृत होने के पात्र होते थे.
उन्होंने कहा कि इस संदर्भ में मीडिया को जानकारी दी गई थी कि जो भी व्यक्ति मतदाता सूची में पंजीकरण कराने के लिए आवश्यक पात्रता को पूरा करता है और वह केंद्र शासित प्रदेश में (व्यवसाय, पढ़ाई या पदस्थापन जैसे किसी भी वजह से रह रहा है), वह जम्मू कश्मीर की मतदाता सूची में अपना नाम दर्ज करा सकता है. अधिकारी ने कहा कि बशर्ते, उसे अपना नाम उस क्षेत्र की मतदाता सूची से हटवाना होगा, जहां उसका नाम पहले से दर्ज है, क्योंकि दो स्थानों पर मतदाता सूची में नाम दर्ज कराने की कानून के तहत इजाजत नहीं है.
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