China Challenges: चीन की तानाशाही के खिलाफ लामबंद हो रहे तमाम बड़े देश, जिनपिंग की बढ़ेगी परेशानी
Xi Jinping: एक तरफ सीसीपी अधिवेशन समाप्त हो रहा था तो दूसरी तरफ जापान और अस्ट्रेलिया चीन से मुकाबला करने वाले सुरक्षा समझौते को अपग्रेड कर रहे थे. यूरोप में चीन के खिलाफ आवाज उठ रही है.
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Xi Jinping Challenges: चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग (Xi Jinping) तीसरी बार शीर्ष पद पर काबिज हो गए हैं. चाइनीज कम्युनिस्ट पार्टी (CCP) की सेंट्रल कमेटी ने एक बार फिर जिनपिंग को पार्टी का महासचिव चुना है. चीन में सीसीपी का महासचिव ही राष्ट्रपति बनता है. तीसरे राष्ट्रपति के तौर पर जिनपिंग की आधिकारिक ताजपोशी मार्च 2023 में वार्षिक विधायी सत्र में होगी. सीसीपी ने शी जिनपिंग के नेतृत्व में सात सदस्यीय पोलित ब्यूरो स्थायी समिति भी चुनी है.
चीन के इतिहास में माओत्से तुंग के बाद शी जिनपिंग को सबसे प्रभावशाली शासक माना जा रहा है. इस बार सीसीपी अधिवेशन (कांग्रेस) से पूर्व राष्ट्रपति हू जिंताओ को बाहर किए जाने की खबर भी आई. माना जा रहा है कि चीन में जिनपिंग को चुनौती देने वाला अब कोई नहीं बचा है लेकिन वैश्विक परिप्रेक्ष्य में ऐसा नहीं है.
चीन की तानाशाही के खिलाफ कई बड़े देश लामबंद हो रहे हैं, इससे जिनपिंग की परेशानी बढ़ना तय माना जा रहा है. चीन पर विस्तारवादी नीति पर चलने का आरोप लगता है. भारत समेत पड़ोसियों के साथ उसके सीमा विवाद हैं. ताइवान को वह अपना ही हिस्सा बताता है. चीन का तानाशाही रवैया भारत और अमेरिका को तो पहले से मंजूर नहीं था, अब यूरोप भी उसे सबक सिखाने के लिए लामबंद हो रहा है.
जापान-ऑस्ट्रेलिया का यह कदम बढ़ाएगा चीन की टेंशन
जिस वक्त बीजिंग में सीसीपी कांग्रेस का समापन हो रहा था, उस समय चीन से मुकाबले करने वाले जापान-ऑस्ट्रेलिया सुरक्षा समझौते को अपग्रेड कर लिया गया. दरअसल, 2007 में दोनों देशों ने चीन की आक्रामता के खिलाफ पहली बार सुरक्षा सहयोग समझौते पर हस्ताक्षर किए थे. शनिवार (22 अक्टूबर) को पर्थ के वेस्ट कोस्ट सिटी में जापानी पीएम फुमियो किशिदा और ऑस्ट्रेलियाई प्रधानमंत्री एंथनी अलबानीज ने द्विपक्षीय सुरक्षा समझौते पर हस्ताक्षर कर इसे अपग्रेड कर लिया. ऑस्ट्रेलिया, अमेरिका के बाद दूसरा देश है, जिसके साथ साथ जापान ने यह समझौता किया है.
इस समझौते को चीन के लिए चुनौती के रूप में देखा जा रहा है. जापान-ऑस्ट्रेलिया क्वाड समूह में भी शामिल हैं, जिससे चीन चिढ़ता है. इस समूह में बाकी दो देश भारत और अमेरिका हैं.
जापान-ऑस्ट्रेलिया सुरक्षा समझौते की वजह
2006 में चीन के 22 लड़ाकू विमान जापान के हवाई क्षेत्र में घुस गए थे, तब जापानी वारप्लेन ने उन्हें खदेड़ा था. पिछले साल भी जापानी लड़ाकू विमान ने चीन के कई फाइटर जेट के खिलाफ जवाबी कार्रवीई की थी. इस बार ताइवान जलडमरूमध्य और आसपास युद्धाभ्यास के दौरान चीन की कुछ मिसाइलें जापानी क्षेत्र में भी गिरी थीं. चीन के रवैये से जापान आशंकित है इसलिए उसने ऑस्ट्रेलिया के साथ सुरक्षा समझौता अपग्रेड कर लिया.
वहीं, दक्षिण प्रशांत सागर में सोलोमन आइलैंड के साथ चीन सुरक्षा समझौता कर चुका है. इसका मतलब है कि चीन वहां अपनी नौसेना का बेस बना सकता है. चूंकि यह इलाका ऑस्ट्रेलिया के पूर्वी तट से 2000 किलोमीटर की दूरी पर है, इसलिए उसे चीन की आक्रामक गतिविधियों की आशंका सता रही है.
चीन के खिलाफ यूरोपीय लामबंदी और अमेरिकी रणनीति
यूरोपियन काउंसिल के शिखर सम्मेलन में यूरोप के 27 देश चीन की विदेश और आर्थिक नीति के जवाब में मजबूत रणनीति बनाने पर सहमत दिखे हैं. वहीं, जो बाइडेन प्रशासन ने हाल में अपनी नई राष्ट्रीय सुरक्षा रणनीति जारी की थी, जिसमें चीन को अमेरिका का इकलौता प्रतिद्वंदी बताया गया. इसका मतलब है कि चीन, अमेरिका के लिए रूस से भी बड़ा खतरा है. रूस-यूक्रेन युद्ध के साइड इफेक्ट के कारण अमेरिका में भी महंगाई बम फूटा है. चीन को आक्रामकता से घेरने के लिए अमेरिका के पास पर्याप्त कारण हैं.
जानकारों की मानें को ताइवान को मोहरा बनाकर अमेरिका पहले से ही चीन से लोहा ले रहा है. ऐसी कयासबाजी है कि अमेरिकी मदद से ताइवान में हथियार जुटाए जा रहे हैं, जिससे बड़े पैमाने पर वेपन डिपो तैयार किए जा रहे हैं. जानकारों की मानें तो अमेरिका उइगर मुस्लिमों पर कथित अत्याचार और हांगकांग में चीन के कथित दमनकारी शासन को उजागर करके दूसरे छोर से भी चीन को घेरता रहेगा.
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