India Justice Report: देश के इन राज्यों में जल्दी मिलता है न्याय, जजों की कमी के चलते सालों से लंबित पड़े हैं मामले
Case Clearance Rate In Courts: राज्यों के केस क्लीयरेंस रेट की बात करें तो हाईकोर्ट्स में 2018-19 से 2022 के बीच राष्ट्रीय औसत में छह प्रतिशत (88.5 प्रति प्रतिशत से 94.6 प्रतिशत) की बढ़ोतरी हुई है.
Case Clearance Rate In Courts: भारत में लंबित मामलों के चौंकाने वाले आंकड़े सामने आए हैं. इंडिया जस्टिस की रिपोर्ट में बताया गया है कि कैसे देश में तेजी से कैदियों की संख्या बढ़ती जा रही है. इसके साथ ही इंडिया जस्टिस ने भारत की न्यायपालिका को लेकर भी आंकड़े जारी किए हैं, जिनमें बताया गया है कि देश की तमाम अदालतों में जजों की भारी कमी है. रिपोर्ट में ये भी बताया गया है कि देश के किन राज्यों में जस्टिस सिस्टम ने सबसे बेहतरीन काम किया है और कहां न्याय मिलने या मामलों के फैसलों में देरी हो रही है.
इन राज्यों में जल्दी मिलता है न्याय
इंडिया जस्टिस की ताजा रिपोर्ट के मुताबिक साउथ इंडिया के तीन राज्यों कर्नाटक, तमिलनाडु और तेलंगाना ने न्याय तक पहुंच प्रदान करने वाले राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों की लिस्ट में टॉप 3 जगह हासिल की है. इसके अलावा गुजरात और आंध्र प्रदेश को क्रमशः चौथा और पांचवां स्थान दिया गया है. न्याय के मामले में सबसे बुरा प्रदर्शन करने वाले राज्यों में उत्तर प्रदेश टॉप पर है. रिपोर्ट में यूपी को 18 बड़े और ज्यादा जनसंख्या वाले राज्यों में सबसे खराब प्रदर्शन वाला राज्य बताया गया है.
कम आबादी वाले राज्यों में सिक्किम न्याय प्रदान करने के मामले में सबसे ऊपर है. 1 करोड़ से कम आबादी वाले राज्यों में सिक्किम के बाद दो नॉर्थ-ईस्ट राज्यों अरुणाचल प्रदेश और त्रिपुरा का नाम भी शामिल है. गोवा इस लिस्ट में सातवें नंबर पर है.
जजों की भारी कमी
रिपोर्ट में ये भी बताया गया है कि हर एक जज पर लंबित मामलों का कितना भार है. जजों की कमी के चलते ये भार काफी ज्यादा बढ़ गया है. दिसंबर 2022 तक, देश में 10 लाख लोगों पर 19 जज थे और करीब 4.8 करोड़ मामलों का बैकलॉग था. जबकि लॉ कमीशन ऑफ इंडिया की तरफ से 1987 में ही सुझाव दिया गया था कि एक दशक में प्रत्येक 10 लाख लोगों के लिए 50 जज होने चाहिए. देश में कई राज्य ऐसे हैं जहां एक जज पर 15 हजार से ज्यादा मामले लंबित हैं.
राज्यों में कितने सालों से लंबित हैं मामले?
अब अलग-अलग राज्यों के हाईकोर्ट के आंकड़े देखते हैं जहां पर पिछले कई सालों के मामले अब तक लंबित पड़े हैं. इसमें यूपी सबसे टॉप पर है. यहां औसतन 11.34 सालों के केस भी अब तक लंबित हैं. वहीं इसके बाद पश्चिम बंगाल का नंबर आता है, जहां 9.9 साल औसत पेंडेंसी है. इस मामले में सबसे अच्छा प्रदर्शन त्रिपुरा का है, जहां औसत पेंडेंसी करीब एक साल है. इसके बाद सिक्किम (1.9 साल) और मेघालय (2.1 साल) लिस्ट में हैं.
11 राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों की जिला अदालतों में प्रत्येक चार में से एक मामले 5 साल से अधिक समय से लंबित हैं. देश में ऐसे मामलों की सबसे ज्यादा हिस्सेदारी अंडमान और निकोबार द्वीप समूह (53 प्रतिशत), और सिक्किम में सबसे कम (0.8 प्रतिशत) है. बड़े और ज्यादा जनसंख्या वाले राज्यों में पश्चिम बंगाल में ऐसे मामले 48.4 प्रतिशत और बिहार में 47.7 प्रतिशत हैं.
100 फीसदी तक नहीं केस क्लीयरेंस रेट
राज्यों के केस क्लीयरेंस रेट की बात करें तो हाईकोर्ट्स में 2018-19 से 2022 के बीच राष्ट्रीय औसत में छह प्रतिशत (88.5 प्रति प्रतिशत से 94.6 प्रतिशत) की बढ़ोतरी हुई है, लेकिन निचली अदालतों में 3.6 (93 प्रतिशत से 89.4 प्रतिशत) की गिरावट आई है. 2018 से 2022 के बीच त्रिपुरा ही इकलौता राज्य है जहां जिला अदालतों में केस क्लीयरेंस रेट 100 प्रतिशत से ऊपर रहा. हालांकि 2020 में कोरोनाकाल के दौरान त्रिपुरा में भी केस क्लीयरेंस रेट 40 प्रतिशत तक पहुंच गया था.
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