Karnataka Congress CM Face: कर्नाटक में कांग्रेस को मिले बहुमत के बाद अब सीएम पद को लेकर चल रहा घमासान भी थम गया है. सूत्रों के मुताबिक पार्टी आलाकमान ने सिद्धारमैया को चुना और अब उनकी ताजपोशी होने जा रही है. डीके शिवकु्मार की दावेदारी के बावजूद पार्टी ने अनुभवी नेता सिद्धारमैया को चुना और बताया कि जो ज्यादा ताकतवर होगा, उसे ही गद्दी मिलेगी. अब कर्नाटक की इस पूरी कहानी से एक और राज्य की तस्वीर साफ होती दिख रही है, जहां दो बड़े नेता आपस में टकरा रहे हैं. वो राज्य राजस्थान है, जहां पार्टी के बड़े नेता सचिन पायलट सीएम अशोक गहलोत के खिलाफ लगातार तेवर दिखा रहे हैं. आइए समझते हैं कि कैसे कर्नाटक का फैसला राजस्थान में सचिन पायलट की मुश्किलें बढ़ाने वाला है.
सिद्धारमैया का पलड़ा रहा भारी
सबसे पहले बात कर्नाटक की करें तो यहां 13 मई को विधानसभा चुनाव के नतीजे सामने आए, जिनमें कांग्रेस को 224 विधानसभा वाले कर्नाटक में 135 सीटों पर जीत मिली. यानी भारी बहुमत से कांग्रेस ने राज्य में जीत दर्ज की. इसके बाद सीएम पद को लेकर सिद्धारमैया और डीके शिवकुमार के बीच जंग शुरू हुई. दोनों ने ही आलाकमान के सामने अपनी दावेदारी पेश की, जिसके बाद अब सूत्रों के हवाले से बताया जा रहा है कि सिद्धारमैया के नाम पर मुहर लग चुकी है.
करीब चार दिन तक चले ड्रामे के बाद ये फैसला लिया गया. डीके शिवकुमार भले ही पार्टी के लिए जोशीले अंदाज में काम करते आए हों और संकचमोचक की भूमिका में रहे हों, लेकिन विधायकों की ताकत सिद्धारमैया के पास थी. इसीलिए पार्टी ने डीके की जगह सिद्धारमैया को चुना.
कर्नाटक और राजस्थान में क्या है एक जैसा
अब कर्नाटक में हुए इस घटनाक्रम का राजस्थान से क्या लिंक है ये आपको बताते हैं. दरअसल कर्नाटक के जैसे ही राजस्थान में भी पार्टी के दो बड़े नेताओं के बीच टकराव की स्थिति बनी है. पिछले कई सालों से सचिन पायलट और सीएम अशोक गहलोत अपने तेवर दिखाते रहे हैं. इसे समझने के लिए सचिन पायलट को आप डीके शिवकुमार वाली भूमिका में रख सकते हैं, वहीं अशोक गहलोत को सिद्धारमैया वाली भूमिका में रखा जा सकता है. यानी राज्य में एक वो नेता है जिसके पास ताकत और भारी जनाधार है, वहीं दूसरा युवा नेता है जो लगातार अपनी संभावनाओं को तलाश रहा है.
राजस्थान की तस्वीर होगी साफ
कर्नाटक में अगर सिद्धारमैया के नाम पर अंतिम मुहर लग जाती है और इसका ऐलान हो जाता है तो राजस्थान की तस्वीर भी लगभग साफ है. क्योंकि कर्नाटक की ही तरह राजस्थान में भी कांग्रेस अपने सीनियर और ताकतवर नेता को चुन सकती है. यानी गहलोत के रास्ते का कांटा बने सचिन पायलट के लिए अच्छी खबर नहीं है. सचिन पायलट एक बार पहले ही अपनी ताकत को एक्सपोज कर चुके हैं, जब उनकी बगावत के बाद भी सरकार नहीं गिर पाई थी. गहलोत ने अपने दम पर विधायकों को टूटने से रोका और नंबर गेम अपने हाथों में रखा.
इसके बाद अशोक गहलोत ने आलाकमान को अपनी ताकत तब दिखाई जब उन्हें राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाने की बात हो रही थी और सचिन पायलट का रास्ता साफ हो रहा था. तब अचानक से बसें भरकर विधायक आए और सभी ने सामूहिक तौर पर इस्तीफा देने की धमकी दे दी, नतीजा ये हुआ कि गहलोत सीएम पद पर बने रहे और मल्लिकार्जुन खरगे को अध्यक्ष बना दिया गया. तब आलाकमान ने गहलोत और उनके समर्थक मंत्रियों के खिलाफ कार्रवाई की बात कही थी, लेकिन वो अब तक नहीं हो पाई. यानी गहलोत की ताकत को देख आलाकमान भी राजस्थान की सत्ता से हाथ धोने से घबरा रहा है. यानी राजस्थान में आज भी गहलोत का ही पलड़ा काफी भारी है.
पायलट पर गिर सकती है गाज
जैसे सिद्धारमैया की विधायकों से लेकर तमाम समुदायों में पकड़ है और वो डीके शिवकुमार पर भारी पड़ रहे हैं, ठीक उसी तरह राजस्थान में भी अब सचिन पायलट पर गाज गिर सकती है. अशोक गहलोत के बागी विधायकों पर करोड़ों रुपये लेने के आरोपों के बाद एक बार फिर सचिन पायलट पूरी तरह से बगावत पर उतर आए हैं. जिसका खामियाजा उन्हें चुनाव से पहले भुगतना पड़ सकता है. कांग्रेस गहलोत की ताकत पर भरोसा करते हुए सचिन पायलट पर जल्द एक्शन ले सकती है. ये गहलोत के लिए पैर में चुभ रहा कांटा निकलने जैसा होगा. यानी राजस्थान में युवा नेता की जगह अनुभवी, ताकतवर और वरिष्ठ नेता के भरोसे ही कांग्रेस चुनावी मैदान में उतर सकती है.
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