Karnataka Election: कर्नाटक में कांग्रेस के लिए हिट साबित हो सकता है ये फॉर्मूला, दूसरे राज्यों के लिए भी बन सकता है नजीर
Karnataka Election: कर्नाटक में मिली बड़ी जीत के बाद अब कांग्रेस के सामने मुख्यमंत्री चुनने की चुनौती है, पार्टी के दो बड़े नेता डीके शिवकुमार और सिद्धारमैया अपनी-अपनी दावेदारी पेश कर रहे हैं.
कर्नाटक विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की बड़ी जीत के बाद अब मुख्यमंत्री पद की दौड़ शुरू हो चुकी है. जिसमें कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष डीके शिवकुमार और पूर्व सीएम सिद्धारमैया के बीच मुकाबला है. कांग्रेस फिलहाल ये तय नहीं कर पा रही है कि आखिर किस नेता को राज्य की कमान सौंपी जाए. इसके लिए अब डीके और सिद्धारमैया को दिल्ली बुलाया गया है. हालांकि इसी बीच एक फॉर्मूले की खूब चर्चा है, जिस पर कांग्रेस आलाकमान मुहर लगा सकता है. कहा जा रहा है कि इस फॉर्मूले पर पूर्व सीएम सिद्धारमैया भी राजी हैं, ऐसे में आलाकमान भी दिल्ली में इसे डीके के सामने रख सकता है.
दरअसल कर्नाटक में कांग्रेस के दो बड़े नेताओं के बीच टकराव की स्थिति देखी जा रही है, टिकट बंटवारे से लेकर तमाम मुद्दों पर दोनों नेताओं के बीच पहले भी तनातनी देखी गई. अब मुख्यमंत्री की कुर्सी को लेकर भी दोनों ही नेता अपनी दावेदारी पेश कर रहे हैं. ऐसे में कांग्रेस के सामने ये बड़ी चुनौती है कि किसे तवज्जो दी जाए और मुख्यमंत्री पद सौंपा जाए.
दो मुख्यमंत्री वाला फॉर्मूला हो सकता है हिट
कांग्रेस की इसी मुसीबत से निपटने के लिए एक फॉर्मूला सामने आया है, जिसमें कहा गया है कि पहले दो साल पूर्व मुख्यमंत्री सिद्धारमैया को सीएम की कुर्सी पर बिठा दिया जाए और इसके बाद आखिरी के तीन साल डीके शिवकुमार मुख्यमंत्री पद पर रहें. सिद्धारमैया कैंप की तरफ से भी इसी फॉर्मूले को लेकर चर्चा हो रही है. फिलहाल जो स्थिति बन रही है, उसे देखते हुए कांग्रेस के लिए भी ये फॉर्मूला हिट साबित हो सकता है. इससे पार्टी में बगावत की संभावनाएं भी कम हो जाएंगी और दोनों बड़े नेताओं को संतुष्ट भी कर लिया जाएगा. अब समझते हैं कि कैसे ये फॉर्मूला कांग्रेस के लिए फायदेमंद साबित हो सकता है.
सिद्धारमैया कर चुके हैं रिटायरमेंट का ऐलान
कांग्रेस के सीनियर नेता और पांच साल तक मुख्यमंत्री का कार्यकाल पूरा कर चुके सिद्धारमैया चुनाव से पहले ही साफ कर चुके थे कि ये उनका आखिरी चुनाव है, उन्होंने जनता से वोट भी इसी पर मांगे थे. उन्होंने कहा था कि इसके बाद वो राजनीति से रिटायर हो जाएंगे. ऐसे में डीके शिवकुमार का धड़ा ये तर्क दे रहा है कि अगर सिद्धारमैया मुख्यमंत्री बनते हैं तो आने वाले चुनावों में पार्टी को नुकसान हो सकता है. क्योंकि पांच साल तक काम करने वाला मुख्यमंत्री अगले चुनाव में रिटायर हो जाएगा. ऐसे में जनता के बीच जाकर किस चेहरे पर चुनाव लड़ा जाएगा.
इसीलिए अगर कांग्रेस 2-3 वाले फॉर्मूले पर काम करती है तो इस खतरे से बचा जा सकता है. यानी पहले दो साल सिद्धारमैया बतौर मुख्यमंत्री काम करेंगे और उसके बाद अगले चुनावों तक डीके शिवकुमार सीएम पद पर रहेंगे. जनता आने वाले चुनावों में डीके के चेहरे और कामकाज पर वोट करेगी. वहीं डीके शिवकुमार जिनका अभी सिर्फ पूरे राज्य में जनाधार नहीं है, उन्हें तीन साल में इसे बनाने का भी वक्त मिल जाएगा.
आने वाले चुनावों में नुकसान की संभावना कम
अब कांग्रेस के सामने एक चुनौती डीके शिवकुमार के खिलाफ चल रहे ईडी और सीबीआई के मामले भी हैं. मनी लॉन्ड्रिंग मामले में डीके गिरफ्तार भी हो चुके हैं और करीब दो महीने जेल भी काटी है. ऐसे में राजनीति जानकारों का कहना है कि कांग्रेस डीके को अभी सीएम बनाने से बच सकती है. क्योंकि मुख्यमंत्री रहते अगर वो गिरफ्तार होते हैं तो आने वाले राज्यों के चुनावों और लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को इसका नुकसान झेलना पड़ सकता है. ऐसे में 2-3 साल वाला फॉर्मूला यहां कांग्रेस की मदद कर सकता है.
क्योंकि आने वाले महीनों में राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ जैसे राज्यों में चुनाव हैं और इसके ठीक बाद लोकसभा चुनाव होने हैं. तब तक सिद्धारमैया मुख्यमंत्री रहेंगे तो कर्नाटक में जीत को भुनाया जा सकता है, वहीं ये सब निपटने के बाद डीके के हाथों में पार्टी आसानी से कमान सौंप सकती है. तब तक उन्हें डिप्टी सीएम का पद दिया जा सकता है.
कांग्रेस के लिए नाजुक वक्त
कर्नाटक चुनाव के नतीजों ने कांग्रेस कार्यकर्ताओं के टूटते मोरल को एक बार फिर बूस्ट करने का काम किया है, वहीं राष्ट्रीय राजनीति में भी कांग्रेस मजबूत हुई है. ऐसे में पार्टी ये बिल्कुल भी नहीं चाहेगी कि कर्नाटक में कुछ भी गड़बड़ हो. क्योंकि आने वाले वक्त में छत्तीसगढ़ और राजस्थान में भी चुनाव होने हैं, जहां कर्नाटक जैसी ही स्थिति है. यानी यहां भी पार्टी के दो बड़े नेता आपस में टकरा रहे हैं. अगर कांग्रेस कर्नाटक में जीत के बाद सब कुछ ठीक से मैनेज कर लेती है तो ये इन दोनों राज्यों के लिए भी एक सीख होगी. वहीं अगर कर्नाटक में मिली इतनी बड़ी जीत के बावजूद कुछ गड़बड़ हुई तो पहले से ही मुश्किलों में घिरी कांग्रेस के लिए इससे उभर पाना काफी मुश्किल होगा.