नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने पीएम मोदी के खिलाफ कथित टिप्पणियों को लेकर वरिष्ठ पत्रकार विनोद दुआ के खिलाफ दर्ज राजद्रोह का मामला रद्द करने का आदेश दिया है. कोर्ट ने कहा कि 1962 के एक फैसले के तहत राजद्रोह के मामलों में पत्रकारों को सुरक्षा का अधिकार है. एफआईआर में आरोप लगाया गया था कि दुआ ने यह झूठी जानकारी प्रसारित करने की कोशिश की कि सरकार के पास कोविड-19 की पर्याप्त जांच सुविधाएं नहीं हैं.


क्या है राजद्रोह कानून
आईपीसी की धारा 124 A का मतलब है सेडिशन यानी कि राजद्रोह. अगर कोई अपने भाषण या लेख या दूसरे तरीकों से भारत सरकार के खिलाफ नफरत फैलाने की कोशिश करता है तो उसे तीन साल तक की कैद हो सकती है. कुछ मामलों में ये सजा उम्रकैद तक हो सकती है. यहां ये साफ करना जरूरी है कि भारत सरकार का मतलब संवैधानिक तरीकों से बनी सरकार से है, न कि सत्ता में बैठी पार्टी या नेता.


क्या सरकार की आलोचना करना राजद्रोह?
राजद्रोह पर 1962 में सुप्रीम कोर्ट ने ऐतिहासिक फैसला सुनाया. केदारनाथ सिंह बनाम बिहार मामले में सुप्रीम कोर्ट ने वैसे तो इस धारा को बनाए रखा. उसे असंवैधानिक घोषित कर रद्द कर देने से मना कर दिया. लेकिन इस धारा की सीमा तय कर दी. कोर्ट ने साफ कर दिया कि सिर्फ सरकार की आलोचना करना राजद्रोह नहीं माना जा सकता. जिस मामले में किसी भाषण या लेख का मकसद सीधे-सीधे सरकार या देश के प्रति हिंसा भड़काना हो, उसे ही इस धारा के तहत अपराध माना जा सकता है. बाद में 1995 में बलवंत सिंह मामले में सुप्रीम कोर्ट ने खालिस्तान के समर्थन में नारे लगाने वाले लोगों को भी इस आधार पर छोड़ दिया था कि उन्होंने सिर्फ नारे लगाए थे.


कहां दर्ज हुए राजद्रोह के सबसे ज्यादा केस
साल 2010 से 2020 तक कुल 816 राजद्रोह के मामलों में 10,938 भारतीयों को आरोपी बनाया गया है. इनमें 65 फीसदी मामले एनडीए सरकार में दर्ज किए गए. साल 2010-14 के बीच 3762 भारतीयों के खिलाफ 279 मामले दर्ज किए गए. वहीं 2014-20 के बीच 7136 लोगों के खिलाफ 519 केस दर्ज हुए. इन 10 सालों में सबसे ज्यादा 65 फीसदी (534) केस पांच राज्यों में दर्ज हुए. ये राज्य हैं- बिहार, कर्नाटक, झारखंड, उत्तर प्रदेश और तमिलनाडु. बिहार में 168, तमिलनाडु में 139, उत्तर प्रदेश में 115, झारखंड में 62 और कर्नाटक में 50 केस दर्ज किए गए.


राजद्रोह केस सबसे ज्यादा कब दर्ज हुए
राजद्रोह के सबसे ज्यादा केस यूपीए सरकार के दौरान साल 2011 में दर्ज हुए थे. तब कुंदन कॉलम न्यूक्लियर प्रोटेस्ट चल रहा था. कुल 130 केस दर्ज हुए थे. इसके बाद सबसे ज्यादा केस 2019 और 2020 में दर्ज हुए, जब देशभर में संशोधित नागरिकता कानून (सीएए) के खिलाफ विरोध प्रदर्शन चल रहा था. 2019 में 118 और 2020 में 107 केस दर्ज हुए. 2020 में दिल्ली दंगे, कोरोनो संकट और हाथरस रेप केस की वजह से भी राजद्रोह कानून चर्चाओं में रहा है.


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