एक्सप्लोरर

Explained : जानिए हॉन्ग कॉन्ग के बनने और चीन के अंदर आने की कहानी को

कोरोना वायरस के मुद्दे पर दुनिया के सामने घिरा हुआ चीन फिलहाल अपने घर में भी घिरा हुआ दिख रहा है. हॉन्ग कॉन्ग के लिए बनाए गए नए नैशनल सिक्योरिटी लॉ के खिलाफ हॉन्ग कॉन्ग में अब बड़े पैमाने पर प्रदर्शन हो रहे हैं.

ये बात है 19वीं सदी की. उस वक्त की, जब कहा जाता था कि ब्रिटेन में कभी सूरज अस्त नहीं होता है. ये इसलिए कहा जाता था कि ब्रिटेन के उपनिवेश पूरी दुनिया में थे. और एक जगह अगर सूरज डूब रहा होता था तो दुनिया के किसी कोने में सूर्योदय हो रहा होता था और उस देश पर अंग्रेजों का कब्जा होता था. अंग्रेज दुनिया के नक्शे पर बने देशों में कारोबार करने की नीयत से घुसते थे और फिर उन देशों पर कब्जा कर लेते थे. कब्जे के लिए कभी बल का सहारा लेते थे तो कभी छल का और आखिर में देश को अपना गुलाम बना लेते थे. ऐसा ही एक देश अपना भारत भी था, जिसपर अंग्रेजों का कब्जा था.

तब चीन के साथ ब्रिटेन के कारोबारी रिश्ते थे. ब्रिटेन तब चीन से रेशम और चाय की खरीदारी करता था. लेकिन चीन इसके बदले कोई सामान न लेकर चांदी लेता था. अंग्रेजों को ये मंजूर नहीं था, लेकिन उनकी मजबूरी थी. तब अंग्रेजों ने एक चाल चली. उन्होंने भारत के किसानों पर जुल्म करके अफीम उगाने को मजबूर कर दिया. और इस अफीम की सप्लाई वो चोरी-छिपे चीन को करने लगे. नतीजा ये हुआ कि जल्दी ही चीन की एक बड़ी आबादी को अफीम की लत लग गई. जब चीन सरकार को इसका पता चला, तो उन्होंने अफीम की खरीदारी पर पाबंदी लगा दी. अब अंग्रेजों ने ताकत का सहारा लिया और चीन के खिलाफ युद्ध का ऐलान कर दिया. इतिहास में इस युद्ध को अफीम युद्ध के नाम से जाना जाता है, जो 1839 से 1842 तक चला. इस लड़ाई में चीन को हार का सामना करना पड़ा. उसे अंग्रेजों के साथ एक संधि करनी पड़ी जिसे कहा जाता है नानजिंग ट्रीटी. इस संधि के तहत चीन को अपना एक द्वीप अंग्रेजों के हवाले करना पड़ा, जिसका नाम था हॉन्ग कॉन्ग आईलैंड.

इस लड़ाई को जीतने के बाद भी अंग्रेज शांत नहीं बैठे. 1856 में चीन के खिलाफ एक और लड़ाई छेड़ दी. इसे दूसरा अफीम युद्ध कहा जाता है. इस लड़ाई में भी चीन की हार हुई और एक बार फिर से चीन का काउलून अंग्रेजों के पास चला गया. हॉन्ग कॉन्ग द्वीप था, जबकि काउलून इस द्वीप के सामने का ज़मीनी इलाका था. अंग्रेजों ने इस काउलून और हॉन्ग कॉन्ग आईलैंड को एक साथ मिला दिया और उसपर अपना झंडा लगा दिया. इसके बाद चीन के साथ ब्रिटेन की एक और लड़ाई हुई. ये लड़ाई हुई 1898 में. इसमें भी चीन की हार हुई और एक बार फिर से चीन को ब्रिटेन के आगे झुकना पड़ा. इस बार चीन को अपनी ज़मीन का एक बड़ा हिस्सा 99 साल की लीज पर ब्रिटेन को देना पड़ा. ब्रिटेन ने इस हिस्से को भी काउलून और हॉन्ग कॉन्ग के साथ मिला दिया. इस पूरे समझौते को नाम दिया गया कन्वेंशन फॉर द एक्सटेंशन ऑफ़ हॉन्ग कॉन्ग टेरेटरी.

अब चीन से जीते हुए इलाके को अंग्रेजों ने एक मुल्क की तरह इस्तेमाल करना शुरू कर दिया और नाम रखा हॉन्ग कॉन्ग. अंग्रेजों ने अपने कारोबारी फायदे के लिए इसका खूब इस्तेमाल किया. और इस्तेमाल की बदौलत हॉन्ग कॉन्ग में बंदरगाह से लेकर नई-नई सड़कें तक बन गईं और इसकी अर्थव्यवस्था भी मजबूत हो गई. लेकिन जब दूसरा विश्वयुद्ध खत्म हुआ और जीत के बाद भी अंग्रेजों को खासा नुकसान उठाना पड़ा, तो ये साफ हो गया कि अब ब्रिटेन का उपनिवेशवादी चरित्र लंबे समय तक कायम नहीं रह सकता है. एक-एक करके ब्रिटेन अपने उपनिवेशों को स्वतंत्र करता गया और अपने फैले हुए दायरे को समेटता गया. बात हॉन्ग कॉन्ग की भी हुई. करार के मुताबिक हॉन्ग कॉन्ग पर ब्रिटेन का कब्जा 1997 तक था, क्योंकि उसी साल 99 साल की लीज की अवधि खत्म हो रही थी.

1997 में ब्रिटेन का हॉन्ग कॉन्ग पर से दावा पूरी तरह से खत्म हो गया. हॉन्ग कॉन्ग वापस चीन को दे दिया गया. लेकिन इसके साथ एक समझौता भी था. समझौते के तहत ये तय हुआ कि चीन को हॉन्ग कॉन्ग के लिए एक अलग व्यवस्था करनी होगी. इसके तहत चीन अगले 50 साल तक हॉन्ग कॉन्ग को राजनैतिक तौर पर आजादी देने के लिए राजी हुआ था. इसे कहा गया वन कंट्री, टू सिस्टम्स. इसके तहत हॉन्ग कॉन्ग के लोगों को कुछ खास मुद्दों पर आजादी हासिल होनी थी, जनसभाएं करने का अधिकार था, अपनी बात कहने का अधिकार था, स्वतंत्र न्यायपालिका का अधिकार था और अपना राष्ट्रीय सुरक्षा कानून लागू करने का अधिकार था, जो चीन के लोगों को हासिल नहीं था. इसका पालन करते हुए चीन ने तब हॉन्ग कॉन्ग को विशेष प्रशासनिक क्षेत्र का दर्जा दे दिया. लेकिन ये सब सिर्फ कहने सुनने की बातें थीं. असली खेल कुछ और ही था, जो चीन हॉन्ग कॉन्ग में खेल रहा था. ब्रिटिश करार के तहत उसने हॉन्ग कॉन्ग को स्वायत्तता तो दे दी, लेकिन वो हॉन्ग कॉन्ग को अपने कब्जे में लेने की कोई कोशिश छोड़ना नहीं चाहता था.

मिली हुई राजनैतिक स्वतंत्रता का फायदा उठाने के लिए हॉन्ग कॉन्ग अपने यहां लोकतंत्र को लागू करना चाहता था. इसके लिए वहां पर चुनाव होने थे, जिसमें हर वयस्क को वोट डालने का अधिकार होना था. साल 2007 में चीन ने कहा कि वो साल 2017 तक हॉन्ग कॉन्ग के हर वयस्क को वोटिंग का अधिकार दे देगा. लेकिन 2014-15 में चीन ने हॉन्ग कॉन्ग में चुनाव सुधार के नाम पर एक नया कानून थोपने की कोशिश की. चीन ने कहा कि हॉन्ग कॉन्ग में होने वाले चुनावों के लिए उम्मीदवार तय करने की जिम्मेदारी 1200 सदस्यों वाली एक कमिटी की होगी. हॉन्ग कॉन्ग के लोगों ने चीन के इस फैसले का विरोध किया. वो सड़क पर उतर आए. प्रदर्शन करने लगे. प्रदर्शनकारियों को हटाने के लिए पुलिस ने पेपर स्प्रे का छिड़काव किया तो लोग छाते से खुद को ढंककर प्रदर्शन करने लगे. कुछ ही दिनों में ये छाता हॉन्ग कॉन्ग में प्रदर्शन का प्रतीक बन गया और इस आंदोलन को नाम दिया गया अंब्रेला मूवमेंट.

लेकिन इसका नतीजा क्या हुआ. कुछ भी नहीं. चीन जो चाहता था वही हुआ. साल 2017 में हॉन्ग कॉन्ग में चुनाव हुए और वैसे ही हुए जैसे चीन चाहता था. 1200 प्रतिनिधियों के जरिए कैरी लैम को हॉन्ग कॉन्ग का चीफ एग्जीक्यूटिव चुना गया. इन प्रतिनिधियों में आधे सदस्य सीधे तौर पर चुने प्रतिनिधि होते हैं, जबकि आधे पेशेवर या समुदाय विशेष के लोगों की ओर से चुने जाते हैं. यहां की संसद को लेजिस्लेटिव काउंसिल कहा जाता है. इसकी मुखिया के तौर पर कैरी लैम को चीन ने कुर्सी पर बैठाया था, तो उन्हें बात चीन की ही सुननी थी. कैरी लैम को कुर्सी पर बिठाने के बाद चीन लगातार हॉन्ग कॉन्ग में नए-नए कानूनों के जरिए अपना दखल बढ़ाने की कोशिश करता रहता है.

साल 2019 में चीन ने हॉन्ग कॉन्ग के लिए प्रत्यर्पण कानून लागू करने की कोशिश की, जिसके तहत हॉन्ग कॉन्ग के लोगों को चीन ले जाकर उनके ऊपर मुकदमा चलाया जा सकता था. इसको लेकर हॉन्ग कॉन्ग में खूब बवाल हुआ. लाखों लोग सड़क पर उतर आए. चीन की ओर से दलील भी दी गई कि सिर्फ गंभीर अपराध करने वालों को ही चीन ले जाया जाएगा और इसके लिए पहले हॉन्ग कॉन्ग के एक जज से मंजूरी ली जाएगी, लेकिन हॉन्ग कॉन्ग के लोग झुकने को तैयार नहीं हुए. आंदोलन बढ़ता ही गया. और फिर चीन को इस प्रत्यर्पण कानून को वापस लेना पड़ा.

इसके एक साल बाद यानि कि साल 2020 में चीन अब फिर से हॉन्ग कॉन्ग के लिए एक नया कानून लेकर आया है. इसका नाम है नैशनल सिक्यॉरिटी लॉ. चीन के अखबार साउथ चाइना मॉर्निंग पोस्ट का दावा है कि इस कानून के जरिए हॉन्ग कॉन्ग में विदेशी हस्तक्षेप, आतंकवाद और देश विरोधी गतिविधियों पर रोक लगाई जा सकेगी. जबकि हकीकत ये है कि इस कानून के जरिए अब चीन के पास ये अधिकार चला जाएगा कि वो तय कर सके कि कौन देशद्रोही है और कौन सरकार गिराने की कोशिश कर रहा है. और इसका खामियाजा हॉन्ग कॉन्ग में लोकतंत्र की बहाली के लिए लड़ रहे लोगों को उठाना पड़ेगा.

और देखें
Advertisement
Advertisement
25°C
New Delhi
Rain: 100mm
Humidity: 97%
Wind: WNW 47km/h
Advertisement

टॉप हेडलाइंस

सरदारों पर अब नहीं बनेंगे जोक? सुप्रीम कोर्ट ने बताया अहम मसला, सुझाव सौंपने को भी कहा
सरदारों पर अब नहीं बनेंगे जोक? सुप्रीम कोर्ट ने बताया अहम मसला, सुझाव सौंपने को भी कहा
Delhi Assembly Elections: BJP-कांग्रेस के लिए क्यों खास है केजरीवाल की पहली लिस्ट?
BJP-कांग्रेस के लिए क्यों खास है केजरीवाल की पहली लिस्ट?
Axis My India Exit Poll 2024: मराठवाड़ा से मुंबई तक, महाराष्ट्र के किस रीजन में कौन मार रहा बाजी? एग्जिट पोल में सबकुछ साफ
मराठवाड़ा से मुंबई तक, महाराष्ट्र के किस रीजन में कौन मार रहा बाजी? एग्जिट पोल में सबकुछ साफ
जब होटल में वरुण धवन ने किया था विराट कोहली को इग्नोर, जानिए ऐसा क्या कर बैठे थे अनुष्का शर्मा के पति
जब होटल में वरुण ने किया था विराट कोहली को इग्नोर, जानिए दिलचस्प किस्सा
Advertisement
ABP Premium

वीडियोज

America में अनमोल बिश्नोई की गिरफ्तारी, भारत लाने की तैयारी! | ABP NewsChitra Tripathi : ट्रंप की वजह से अदाणी टारगेट ? । Gautam Adani Case ।  Maharashtra Election'The Sabarmati report' पर सियासत तेज, फिल्मी है कहानी या सच की है जुबानी? | Bharat Ki BaatAdani Bribery Case: अदाणी पर अमेरिकी केस की इनसाइड स्टोरी! | ABP News

फोटो गैलरी

पर्सनल कार्नर

टॉप आर्टिकल्स
टॉप रील्स
सरदारों पर अब नहीं बनेंगे जोक? सुप्रीम कोर्ट ने बताया अहम मसला, सुझाव सौंपने को भी कहा
सरदारों पर अब नहीं बनेंगे जोक? सुप्रीम कोर्ट ने बताया अहम मसला, सुझाव सौंपने को भी कहा
Delhi Assembly Elections: BJP-कांग्रेस के लिए क्यों खास है केजरीवाल की पहली लिस्ट?
BJP-कांग्रेस के लिए क्यों खास है केजरीवाल की पहली लिस्ट?
Axis My India Exit Poll 2024: मराठवाड़ा से मुंबई तक, महाराष्ट्र के किस रीजन में कौन मार रहा बाजी? एग्जिट पोल में सबकुछ साफ
मराठवाड़ा से मुंबई तक, महाराष्ट्र के किस रीजन में कौन मार रहा बाजी? एग्जिट पोल में सबकुछ साफ
जब होटल में वरुण धवन ने किया था विराट कोहली को इग्नोर, जानिए ऐसा क्या कर बैठे थे अनुष्का शर्मा के पति
जब होटल में वरुण ने किया था विराट कोहली को इग्नोर, जानिए दिलचस्प किस्सा
Border Gavaskar Trophy: ट्रेनिंग में ही दो टी20 मैच खेल जाते हैं विराट कोहली, बॉर्डर-गावस्कर ट्रॉफी से पहले बड़ा खुलासा
ट्रेनिंग में ही दो टी20 मैच खेल जाते हैं विराट कोहली, बॉर्डर-गावस्कर ट्रॉफी से पहले बड़ा खुलासा
बुजुर्गों को अक्सर निमोनिया क्यों होता है? जानें इस गंभीर इंफेक्शन  के लक्षण और बचाव का तरीका
बुजुर्गों को अक्सर निमोनिया क्यों होता है? जानें इस गंभीर इंफेक्शन के लक्षण और बचाव का तरीका
‘इंडिया की बाइक्स चला रहे और पाकिस्तानियों पर लगा दिया बैन‘, यूएई के शेख पर भड़की PAK की जनता
‘इंडिया की बाइक्स चला रहे और पाकिस्तानियों पर लगा दिया बैन‘, यूएई के शेख पर भड़की PAK की जनता
10 मिनट स्पॉट जॉगिंग या 45 मिनट वॉक कौन सी है बेहतर, जानें इसके फायदे
10 मिनट स्पॉट जॉगिंग या 45 मिनट वॉक कौन सी है बेहतर, जानें इसके फायदे
Embed widget