Explained : जानिए किस हाल में हैं प्रधानमंत्री मोदी की ये चार महत्वाकांक्षी योजनाएं
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने शपथ ग्रहण के साथ ही देश के विकास का एक नया खाका खींचने की कोशिश की थी. अलग-अलग वक्त पर उन्होंने कई ऐसी महत्वाकांक्षी योजनाओं की घोषणा की, जो अगर पूरी हो जातीं तो देश की शक्ल-ओ-सूरत बदल जाती. पढ़िए क्या है उन महत्वाकांक्षी योजनाओं का हाल.
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प्रधानमंत्री बनने के बाद नरेंद्र मोदी ने समय-समय पर कई बड़ी महत्वाकांक्षी घोषणाएं की हैं. इनमे से कुछ पर काम चल रहा है, तो कुछ का काम शुरू होकर रुक गया है. देखिए इन चार बड़ी महत्वाकांक्षी योजनाओं का हाल.
1. बुलेट ट्रेन : फिलहाल तो पूरा होता नहीं दिख रहा ये सपना भारत जैसे देश में बुलेट ट्रेन चलाना प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का सपना रहा है. इस सपने को हकीकत में बदलने के लिए पीएम मोदी ने जापान के प्रधानमंत्री शिंजो आबे के साथ मुलाकात की और देश में बुलेट ट्रेन लाने की बात की. 10 दिसंबर, 2015 को केंद्रीय कैबिनेट ने भारत में बुलेट ट्रेन परियोजना को मंजूरी दे दी. जापान की कंपनी के साथ इस परियोजना को पूरा करने का करार हुआ. इसके तहत सबसे पहला 508 किलोमीटर लंबा बुलेट ट्रेन ट्रैक मुंबई से अहमदाबाद तक बनना था. सितंबर, 2017 में इस परियोजना के लिए जमीन अधिग्रहण का काम शुरू हुआ और अगस्त 2022 तक इस परियोजना को पूरा करने का लक्ष्य रखा गया. खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जापान के प्रधानमंत्री शिंजो आबे की मौजूदगी में 14 सितंबर, 2017 को अहमदाबाद में इस परियोजना का शिलान्यास किया. भारतीय रेलवे की ओर से आधिकारिक तौर पर कहा गया कि 15 अगस्त, 2022 तक अहमदाबाद और मुंबई के बीच मेट्रो का काम पूरा हो जाएगा.
ये पूरा प्रोजेक्ट करीब 1.08 लाख करोड़ रुपये का था, जिसमें करीब 81 फीसदी का निवेश जापान की कंपनी जापान इंटरनेशनल कोऑपरेशन एजेंसी यानि कि जीका लगा रही थी. जून 2019 में जब प्रधानमंत्री मोदी जी 20 देशों की समिट में शामिल हुए थे, तो उस वक्त भी उन्होंने जापान के प्रधानमंत्री शिंजो आबे से मुलाकात की थी और इस प्रोजेक्ट की प्रगति के बारे में बताया था. लेकिन अब ये प्रोजेक्ट भी अधर में लटका हुआ दिख रहा है. जब तक महाराष्ट्र में देवेंद्र फडणवीस के नेतृत्व में बीजेपी की सरकार थी, जमीन अधिग्रहण का काम चल रहा था. लेकिन साल 2019 में महाराष्ट्र में सरकार बदल गई. शिवसेना, एनसीपी और कांग्रेस गठबंधन के मुखिया बने उद्धव ठाकरे. उन्होंने इस प्रोजेक्ट की नए सिरे से समीक्षा शुरू कर दी और इस परियोजना पर ही सवाल खड़े कर दिए. उन्होंने कहा कि बुलेट ट्रेन हमारा नहीं, किसी और का सपना है. बुलेट ट्रेन का काम रोकते हुए उद्धव सरकार ने ने साफ कर दिया है कि अगर इस प्रोजेक्ट से महाराष्ट्र के लोगों को रोजगार मिलेगा, तभी वो इस प्रोजेक्ट पर आगे बढ़ेंगे. फिलहाल बुलेट ट्रेन का काम महाराष्ट्र में बंद है, वहीं गुजरात में जमीन का अधिग्रहण चल रहा है. नेशनल हाई स्पीड रेल कॉरपोरेशन लिमिटेड में लगाई गई एक आरटीआई से मिली जानकारी बताती है कि दिसंबर, 2019 तक इस पूरे प्रोजेक्ट पर 6247 करोड़ रुपये खर्च हो चुके हैं और इस परियोजना की डेडलाइन 2023 कर दी गई है.
2. स्मार्ट सिटिज मिशन : तय वक्त में बचा एक महीने से भी कम वक्त
मोदी सरकार ने अपने पहले कार्यकाल में एक महत्वाकांक्षी प्रोजेक्ट शुरू किया था. इसका नाम रखा गया था नेशनल स्मार्ट सिटिज मिशन. इसका लक्ष्य था कि देश के 100 चुनिंदा शहरों को स्मार्ट बनाया जाए और उन्हें अंतरराष्ट्रीय मानकों के आधार पर विकसित किया जाए. इस योजना को 25 जून, 2015 को खुद प्रधानमंत्री मोदी ने लॉन्च किया था और योजना को पूरा करने के लिए अगले पांच साल का लक्ष्य रखा गया था. तब इस योजना के लिए 48,000 करोड़ रुपये स्वीकृत किए गए थे. इस योजना की कुल लागत करीब 2.05 लाख करोड़ रुपये की थी. इस योजना को 25 जून, 2020 तक पूरा हो जाना था, क्योंकि योजना को लॉन्च करते वक्त ही लक्ष्य पांच साल का रखा गया था. ये योजना कहां तक बढ़ी इसका अंदाजा आप सिर्फ एक क्लिक से लगा सकते हैं. स्मार्ट सिटी की एक वेबसाइट है http://smartcities.gov.in/content/. इस पर क्लिक करने पर आपको वॉट इज न्यू सेक्शन में जो लेटेस्ट खबर दिखाई देगी, वो 23 जून, 2017 की है. यानि कि वेबसाइट आधिकारिक तौर पर मानती है कि 23 जून, 2017 के बाद इस मिशन में कुछ भी नया नहीं है, जिसे वेबसाइट पर अपडेट किया जा सके.
हालांकि 12 फरवरी, 2019 को शहरी विकास मंत्रालय की ओर से लोकसभा में बताया गया कि जिन 100 शहरों को स्मार्ट बनाना है, उन्हें चिन्हित कर लिया गया है और इनके लिए कुल 5,151 प्रोजेक्ट तय कर दिए गए हैं. इन प्रोजेक्ट्स को पूरा करने के लिए करीब 2 लाख करोड़ रुपये की जरूरत है, जिसका एक चौथाई हिस्सा केंद्र और एक चौथाई हिस्सा राज्य सरकारें देंगी. बाकी के पैसे दूसरे शहरी विकास की योजनाओं, लोन और पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप से आएंगे. लेकिन ये सिर्फ बयान है. हकीकत बताई है सेंटर फॉर पॉलिसी रिसर्च ने. उसका कहना है कि अभी तक सिर्फ 17 शहर ही ऐसे हैं, जिनके लिए पैसे का इंतजाम हो पाया है. केंद्र सरकार ने साल 2019 की शुरुआत में कहा था कि 2015 से 2019 तक इस योजना के लिए कुल 166 अरब रुपये दिए गए थे, लेकिन खर्च सिर्फ 35.6 अरब रुपये ही हो पाए, जो कुल आवंटित बजट का मात्र 21 फीसदी है. इसके बाद मई में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दोबारा प्रधानमंत्री पद की शपथ ली, इसके बाद इस योजना पर अभी तक आधिकारिक या अनाधिकारिक किसी भी तरीके से कोई बात नहीं हुई है. योजना कब तक पूरी होगी, पूरी होगी या नहीं होगी, इसका जवाब किसी के पास नहीं है.
3. गांवों को आदर्श बनाने से दूर खड़ी है सांसद आदर्श ग्राम योजना
गांवों के विकास के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने पहले कार्यकाल के पहले ही साल में एक योजना की शुरुआत की थी. इसका नाम रखा गया था सांसद आदर्श ग्राम योजना. इसके तहत लक्ष्य ये था कि देश के लोकसभा के 545 सांसद और राज्य सभा के 245 सांसद एक-एक गांव को गोद लेंगे और एक साल के अंदर उस गांव का सर्वांगिण विकास करेंगे. योजना में ये भी था कि सांसद चाहे तो एक से अधिक गांव को भी गोद लेकर उसका विकास कर सकता है. जय प्रकाश नारायण के जन्मदिन यानि कि 11 अक्टूबर, 2014 को पीएम मोदी ने इस योजना की आधिकारिक तौर पर शुरुआत की. योजना के तहत साल 2016 तक हर सांसद को एक-एक गांव और साल 2019 तक दो या दो से अधिक गांवों का विकास करना था. खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने संसदीय क्षेत्र वाराणसी में पहले जयापुर और फिर नागेपुर गांव को गोद लिया था और उन गांवों में विकास का काम शुरू किया था.
सांसद आदर्श ग्राम योजना की वेबसाइट के मुताबिक पहले फेज के लिए लोकसभा और राज्यसभा के कुल सांसदों ने 703 गांवों का चयन किया था, दूसरे फेज के लिए 497 गांवों का चयन किया गया था और तीसरे फेज के लिए 311 गांवों का चयन किया गया था. 3 जुलाई 2019 तक सांसदों के गोद लिए गए गांवों में से कुल 1297 ग्राम पंचायतों ने अपना ब्योरा दिया था, जिसमें 68,407 परियोजनाएं थीं. इनमें से जुलाई 2019 तक 38,021 परियोजनाएं ही पूरी हो पाई थीं. ये कुल काम का करीब 56 फीसदी ही थी. और चौथा चरण आते-आते तो इस योजना ने दम ही तोड़ दिया. 31 दिसंबर, 2019 तक सिर्फ 252 सांसदों ने ही गांव गोद लिए और ये हाल तब था, जब 2019 के लोकसभा चुनाव के बाद जीते हुए सांसदों को गांवों को गोद लेकर उनका विकास करने की ट्रेनिंग तक दी जा चुकी थी. ग्रामीण विकास मंत्रालय बार-बार सांसदों को पत्र लिखकर गांवों को गोद लेने की बात कह रहा है, लेकिन सांसदों ने इस योजना में बेरुखी दिखानी शुरु कर दी है. बाकी जिन गांवों को गोद लिया गया है और उनमें विकास के दावे किए गए हैं, वो आदर्श तो हैं, लेकिन सिर्फ कागजों पर. अगर आप इन गांवों में जाएंगे तो कुछ गांवों को छोड़कर कोई ये नहीं कह सकता कि सांसद के गोद लिए गांवों की हालत इतनी भी खराब हो सकती है.
4. बड़ी धूमधाम से शुरू हुआ था मेक इन इंडिया
मेक इन इंडिया प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का एक और महत्वाकांक्षी ड्रीम प्रोजेक्ट है, जिसकी शुरुआत 25 सितंबर, 2014 को हुई थी. इसका मकसद था कि विदेश की बड़ी-बड़ी कंपनियां भारत में आएं और यहीं पर अपने प्रोडक्ट बनाएं. इससे होना ये था कि इसके जरिए भारत में विदेशी निवेश आएगा. जब विदेशी निवेश आएगा तो अर्थव्यवस्था मजबूत होगी. और जब अर्थव्यवस्था मजबूत होगी तो जीडीपी की दर भी बढ़ेगी और देश में रोजगार के नए-नए अवसर भी पैदा होंगे. इसके लिए एफडीआई यानि कि प्रत्यक्ष विदेशी निवेश की सीमाओं को बढ़ाया गया. इस योजना की लॉन्चिंग के दौरान सरकार की ओर से मोटा-माटी तीन लक्ष्य तय किए गए थे. पहला मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर में 12-14 फीसदी की सालाना बढ़ोतरी, दूसरा 2022 तक जीडीपी में मैन्युफैक्चरिंग की हिस्सेदारी को 16 फीसदी से बढ़ाकर 25 फीसदी करना और तीसरा 2022 तक मैन्युफैक्चरिंग में 10 करोड़ नए रोजगार का अवसर देना.
अब अगर इन तीनों लक्ष्यों को देखें तो एक भी लक्ष्य फिलहाल 2022 तक पूरा होता नहीं दिख रहा है. भारत के इंडस्ट्रियल प्रोडक्शन का करीब 75.5 फीसदी हिस्सा मैन्युफैक्चरिंग का है. और मार्च 2020 में मैन्युफैक्चरिंग में 20.6 फीसदी की गिरावट हुई है. बात इंडस्ट्रियल प्रोडक्शन की करें तो फरवरी 2020 में ये 4.5 फीसदी था. अब इंडस्ट्रियल प्रोडक्शन की हालत ऐसी है तो आसानी से मैन्युफैक्चरिंग का अंदाजा लगाया जा सकता है. रही बात जीडीपी में मैन्युफैक्चरिंग की हिस्सेदारी की तो ये अब भी 16 फीसदी के आस-पास ही है. और अब कोरोना का असर कहें या फिर उससे पहले के भी आंकड़ों पर नजर डालें तो मैन्युफैक्चरिंग भी लगातार गिरती जा रही है और जीडीपी भी. लक्ष्य कैसे पूरा होगा, किसी को नहीं पता.
रही बात मेक इन इंडिया के आखिरी लक्ष्य रोगजार की तो खुद सांख्यिकी विभाग का आंकड़ा कहता है कि 31 मई, 2019 को भारत में बेरोजगारी 45 साल के सबसे ऊंचे स्तर पर है, जो तब 6.1 फीसदी थी. रही सही कसर कोरोना ने पूरी कर दी है. सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी (CMIE) का कहना है कि 3 मई, 2020 को भारत में बेरोजगारी की दर देश के इतिहास में सबसे अधिक 27.11 फीसदी हो गई है. यानि कि देश का हर चौथा नागरिक बेरोजगार है. सीएमआई के मुताबिक शहर में बेरोजगारी की दर 29.22 फीसदी है, जबकि गांव में ये आंकड़ा 26.69 फीसदी का है. सीएमआई ने इस बात की भी आशंका जताई है कि भविष्य में बेरोजगारी का ये आंकड़ा और ज्यादा हो सकता है, क्योंकि कोरोना की वजह से जो मजदूर शहर छोड़कर गांव लौट गया है, वो जल्दी शहर जाने की हिम्मत नहीं जुटा पाएगा. ऐसे में मेक इन इंडिया का सपना टूटता हुआ दिख रहा है.
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