दिल्ली नगर निगम (एमसीडी) के चुनावों में आम आदमी पार्टी और बीजेपी के बीच कांटे का मुकाबला रहा. आखिरकार एग्जिट पोल में आप के जीतने के नतीजे सही साबित हुए हैं. आप ने 134 सीटों पर दर्ज कर बीजेपी को 104, कांग्रेस को 9, और अन्य को 3 सीट पर ही छोड़ दिया. इसके साथ ही ये भी साफ हो गया कि राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में आम आदमी पार्टी अपनी जड़ें जमा चुकी है. बीजेपी पहले ही बीते 24 साल से दिल्ली की गद्दी से बाहर है. अब बीजेपी की एमसीडी से विदाई बहुत कुछ कह रही है.


आखिर ऐसा क्या हुआ कि पीएम मोदी का करिश्मा भी यहां काम नहीं आया. बीजेपी की रणनीति दिल्ली में कहां कमजोर हो गई. देश के अधिकांश राज्यों में जीत का परचम लहराने वाली बीजेपी को आखिर में सत्ता के केंद्र दिल्ली में मुंह की खानी पड़ी है और ये तब है जब उसके नाम ऐसे सूबे में भी सरकार बनाने का खिताब है, जहां उसका सरकार बनाना एक ख्याल से अधिक कुछ नहीं था. साल 2014 में मोदी-शाह की रणनीति ने त्रिपुरा जैसे राज्य में सरकार बना डाली थी. बीजेपी में दिल्ली का ग्राफ लगातार नीचे जाने के पीछे क्या वजहें रही हैं. यहां इस पर नजर डालने की कोशिश करेंगे. 


ढहा 15 साल पुराना बीजेपी का किला


एमसीडी 2022 के एमसीडी चुनावों के नतीजों ने साबित कर दिया है कि आप की राजनीति में आने के 9 साल बीजेपी के 15 साल पर भारी पड़े हैं. एमसीडी में बीजेपी मजबूत रही है. 15 साल तक इस स्थानीय निकाय में उसकी तूती बोलती थी. साल 2007 से लगातार बीजेपी एमसीडी चुनाव  जीतती आ रही थी, लेकिन 1998 से ही वो दिल्ली की सत्ता से बाहर है.


अब 2022 के ताजा चुनाव नतीजों ने एमसीडी से बीजेपी की एक तरह से विदाई कर दी है. हालांकि बीजेपी 2014 और 2019 के लोकसभा चुनावों में दिल्ली की 7 लोकसभा सीट पर जीत का परचम लहरा चुकी है.


एमसीडी में आप से हार के बाद अब बीजेपी यहां विधानसभा चुनावों में बढ़त बनाने और दिल्ली की सत्ता पर काबिज होने की चिंता में है. ये चिंता इसलिए भी वाजिब है कि बीजेपी साल 1998 के बाद से दिल्ली की सत्ता में नहीं आ पाई है. साल 2015 और 2020 में पुरजोर कोशिशों के बाद भी उसे दिल्ली विधानसभा की 3 और 8 सीट पर ही जीत हासिल हो पाई थी. 


दिल्ली में बीजेपी के पास नहीं कोई चेहरा


दिल्ली में आप के पास जहां सीएम मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल और मनीष सिसोदिया पार्टी के चेहरे के तौर पर काम करते हैं. दिवंगत शीला दीक्षित यहां कांग्रेस का चेहरा रही थी, लेकिन दिल्ली में बीजेपी के लिए ऐसा कोई मशहूर चेहरा नहीं है. पिछले कुछ सालों में बीजेपी ने भोजपुरी फिल्मों के अभिनेता मनोज तिवारी, हर्षवर्धन, विजय गोयल तक को दिल्ली में पार्टी का चेहरा बनाया, लेकिन उन्हें आप के अरविंद केजरीवाल और कांग्रेस की दिवंगत नेता शीला दीक्षित जैसी कामयाबी नहीं मिल पाई.


इस बार बीजेपी एमसीडी चुनावों में पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा सहित कई सूबों के सीएम, बड़ी तादाद में केंद्रीय मंत्रियों, कई सूबों के संगठन पदाधिकारियों को लेकर आई थी, लेकिन ये भी दिल्ली की जनता के ऊपर से आप का रंग नहीं उतार पाए. ये आलम तब था जब पार्टी के स्टार कैंपेनर अरविंद केजरीवाल ने अपना अधिक वक्त गुजरात विधानसभा चुनावों के प्रचार में बिताया और फिर भी आप ने जोरदार जीत हासिल की है.


गौरतलब है कि साल 2004 में स्मृति ईरानी ने चांदनी चौक लोकसभा सीट से चुनाव में हार का सामना किया था, लेकिन बाद में वो बीजेपी और केंद्र की राजनीति में भी छाईं. अगर दिल्ली में बीजेपी को सत्ता में वापसी करनी है, तो उसे केजरीवाल की टक्कर में किसी लोकप्रिय छवि वाले चेहरे को लाना होगा.  इस पर शायद बीजेपी विचार भी कर रही है. माना जा रहा है कि बीजेपी दिल्ली प्रदेश अध्यक्ष आदेश गुप्ता के स्थान पर किसी नए चेहरे को लाने की कवायद भी कर रही है.


एमसीडी पर आप की मजबूत पकड़


परिसीमन के बाद वार्डों की संख्या 272 से घटकर 250 कर दी गई. एमसीडी 2022 के चुनावों में आप ने इन 250 वार्ड में से 134 सीटों पर जीत दर्ज की है. वहीं बीजेपी 104, कांग्रेस  9 और अन्य  3 सीट पर ही सिमट गए. बीजेपी आप से 30 सीट से पिछड़ गई है. इन चुनावों में पिछड़ना बीजेपी लिए एक बड़ा धक्का है, क्योंकि भले ही वो यहां 1998 से दिल्ली की सत्ता में न हो, लेकिन एमसीडी में वह 15 साल से अपना खूंटा गाड़े रही थी.


इस एमसीडी के नतीजों की आवाज केवल दिल्ली तक ही सिमट कर नहीं रहेगी, कुछ हद तक ये आवाज यूपी, बिहार, उत्तराखंड, पंजाब और हरियाणा तक भी पहुंचेगी. दरअसल इन सभी सूबों के मतदाता दिल्ली के बाशिंदे भी हैं. इस नजर से एमसीडी चुनावों के नतीजे बेहद अहमियत वाले हैं. इससे आप की पकड़ दिल्ली में और अधिक मजबूत हुई है.


आप के लिए ये जीत काफी अहम है, क्योंकि साल 2017 के एमसीडी चुनावों में उसे हार का सामना करना पड़ा था. तब एमसीडी  3 भागों में बंटी थी और इसमें 272 वार्ड थे. बीजेपी ने 181 वार्ड में जीत हासिल की थी और आप को 48 पर ही संतोष करना पड़ा था.


हालांकि कांग्रेस उस वक्त भी आप से पीछे ही थी. तब 30 वार्ड कांग्रेस की झोली में आए थे. कांग्रेस आप से 18 वार्ड से पीछे रह गई थी. अन्य ने 13 वार्ड में जीत हासिल की थी. तब इन तीनों पार्टियों में बीजेपी ने 36.8 फीसदी, आप ने 26.23 फीसदी और कांग्रेस ने 21.09 फीसदी वोट हासिल किए थे.


दिल्ली विधानसभा चुनाव और बीजेपी- आप


दिल्ली के सियासी इतिहास में अब तक 7 बार चुनाव हुए हैं. इन चुनावों में  3 बार कांग्रेस, 2 बार आप और 1 बार बीजेपी दिल्ली की सत्ता पर काबिज रही. 2013 में आप और कांग्रेस गठबंधन की सरकार दिल्ली की सत्ता में आई थी. हालांकि आप ने 2013 के चुनावों में 28 सीटों पर जीत हासिल की थी, लेकिन बहुमत न मिलने की वजह से आप कांग्रेस के साथ मिलकर दिल्ली की सत्ता पर आने के लिए मजबूर हुई थी. दिल्ली की सत्ता में 3 बार सीएम बनने का खिताब कांग्रेस की दिवंगत नेता शीला दीक्षित और आप के अरविंद केजरीवाल के नाम है.


1991 के दिल्ली राष्ट्रीय राजधानी अधिनियम के तहत दिल्ली विधानसभा बनी थी. इसके बाद दिल्ली में 1993 में विधानसभा चुनाव हुए थे. तब बीजेपी की सरकार केवल एक बार 1993 में दिल्ली की सत्ता में आई थी. तब इस एक ही कार्यकाल में बीजेपी ने दिल्ली को तीन सीएम दिए थे. सबसे पहले मदन लाल खुराना बीजेपी से दिल्ली के सीएम बने थे. दूसरे नंबर पर साहिब सिंह वर्मा तो तीसरे नंबर पर 3 दिसंबर 1998 तक सुषमा स्वराज दिल्ली की सीएम रही थी.


इसके बाद बीजेपी अब तक दिल्ली की सत्ता में वापसी नहीं कर पाई है. हर विधानसभा चुनावों में दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा दिए जाने का मुद्दा हावी रहता है. साल 1998 में दिल्ली विधानसभा चुनावों में बीजेपी को करारी हार का सामना करना पड़ा था. प्याज के चढ़ते दामों ने सच में बीजेपी की आंख से हार के आंसू निकलवा दिए थे.


1998 में कांग्रेस की दिवंगत नेता शीला दीक्षित की अगुवाई में 52 सीट हासिल कर जीत का परचम लहराया था. तब बीजेपी को 15 सीटों पर ही संतोष करना पड़ा था. जनता दल के एक सीट सहित निर्दलीयों को 2 सीटें हासिल हुई थीं. इसके बाद यहां 2003 और 2008 विधानसभा चुनावों में कांग्रेस ने जीत हासिल की थी. कांग्रेस ने 2003 में 47 और बीजेपी को 20 सीटें पर जीत मिली थी. साल 2008 में बीजेपी को केवल 23 सीट ही मिली थीं, जबकि कांग्रेस को 43 और बसपा को 2 सीट पर जीत मिली थी.


2013 में कांग्रेस का विजय रथ धीमा हो गया. उसे केवल 8 सीट ही हासिल हो पाई. तब नई आई आप ने 30 सीटें जीतकर धमाकेदार प्रदर्शन किया था, लेकिन उसे बहुमत नहीं मिल पाया. बीजेपी ने 31 सीटें जीतीं, लेकिन आप और कांग्रेस ने हाथ मिलाकर दिल्ली में सरकार बनाई, लेकिन इस गठबंधन सरकार ने 49 दिन में ही दम तोड़ दिया.


फिर 2015 में दिल्ली विधानसभा की 70 में 67 सीटों पर जीत हासिल कर अरविंद केजरीवाल की सरकार ने जोरदार बहुमत हासिल किया. बीजेपी और कांग्रेस के लिए इस चुनाव में कुछ हासिल करने के लिए नहीं रहा. 2013 से आप का वोट प्रतिशत 30 से बढ़कर 54 फीसदी तक जा पहुंचा और अरविंद केजरीवाल के सिर दोबारा से दिल्ली के सीएम का ताज सजा. 2020 में आप ने फिर से दिल्ली में सरकार बनाई और केजरीवाल तीसरी बार सीएम बने.


70 विधानसभा सीटों में आप ने 62 पर जीत दर्ज की और बीजेपी केवल 8 सीटें ही हासिल कर पाई. कांग्रेस इस विधानसभा चुनाव में एक सीट भी नहीं जीत पाई थी. हालांकि इस चुनाव में आप को 2015 के विधानसभा चुनावों की तुलना में 5 सीट का नुकसान झेलना पड़ा था.


2015 विधानसभा चुनावों में आप ने 67 सीटें जीती थीं. हालांकि बीजेपी को इतनी ही सीट का फायदा पहुंचा. 2015 में 2020 की 8 सीटों के मुकाबले बीजेपी ने महज 3 सीट जीतीं थी. अब एमसीडी में मिली हार के बाद बीजेपी के लिए 2025 के दिल्ली विधानसभा चुनावों से पहले चुनौतियां बढ़ गई हैं.