मिड डे मील: 'कुछ स्पेशल बनवाइये...', बच्चे ने किया मजाक और प्रधान जी ने लिया सीरियसली, अब चर्चा पूरे देश में
Mid Day Meal: स्कूल में 115 से 120 बच्चों का नाम दर्ज है, लेकिन हाजिरी 95-100 बच्चों की ही लगती हैं. इन बच्चों को स्पेशल भोजन करवाने के लिए 2000 से 4000 हजार तक का खर्चा आता है.
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Mid Day Meal: मटर पनीर की सब्जी, पूड़ी, सलाद, मिल्क शेक, सेब और मीठे में आइसक्रीम से सजी थाली अगर किसी सरकारी स्कूल में बच्चों को खाने के लिए दी जाए तो यह एक कल्पना मात्र लगती है. लेकिन उत्तर प्रदेश के जालौन जिले में एक प्राइमरी स्कूल के बच्चों को यह थाली खिलाई जा रही है. अब इस थाली की देशभर में चर्चा है, जो सोशल मीडिया पर जमकर वायरल हो रही है. बच्चों को दी गई इस थाली के बाद यूपी की शिक्षा व्यवस्था और मिड डे मील पर लोग एक बार फिर बातचीत करने लगे हैं.
मिड डे मील योजना के नाम पर कई बार गड़बड़ियों की खबरें पढ़ते रहे हैं. मगर जालौन के मलकपुरा गांव की 'वायरल थाली' ने सरकारों को सोचने पर मजबूर कर दिया है कि बच्चों को अच्छा भोजन भी खिलाया जा सकता है. दरअसल, ये थाली 31 अगस्त को 'तिथि भोजन' यानी 'एड ऑन मिड डे मील' के तहत परोसी गई थी. इस थाली के पीछे कई पहलू ऐसे हैं जिसको देशभर के लोग जानना चाहते हैं. हालांकि यह थाली एक पक्ष है, इसके दूसरे पक्ष में शिक्षा से जुड़ी तमाम सकारात्मक बातें हैं जिसकी सच्चाई सामने आई है. हमने ये व्यवस्था देने वाले ग्राम प्रधान अमित से बात की, जिसमें उन्होंने कई जानकारियां दीं.
शिक्षा के क्षेत्र में सुधार लाने के लिए काम
ग्राम प्रधान अमित ने बताया, "जब मैंने ग्राम प्रधान का चुनाव लड़ा था तो गांव वालों से जारी किए गए अपने मेनिफेस्टो में कहा था कि शिक्षा के क्षेत्र में सुधार किए जाएंगे और इसमें पैसा कभी भी पढ़ाई में बाधा नहीं बनेगा. इन उद्देश्यों के साथ मैंने काम करना शुरू किया. उन्होंने कहा मैं अपनी ग्रामसभा में शिक्षा के क्षेत्र में बहुआयामी सुधार लाने के लिए काम कर रहा हूं, जिसमें मिड डे मील की थाली एक पहलू है."
वायरल थाली कैसे अस्तित्व में आई
वायरल थाली के बारे में ग्राम प्रधान अमित ने बताया, "इस योजना की शुरुआत दिसम्बर-जनवरी (2021-22) हुई. सर्दियों की छुट्टियों के लिए स्कूल बंद होने वाले थे, तभी अमित वहां बच्चों से मिलने पहुंचे. इस दौरान किसी बच्चे ने उन्हें खाना खाता देख कर कहा, प्रधान जी इस बार मिड डे मील में कुछ स्पेशल खाना बनवाइए. पूछने पर बच्चे ने मटर पनीर बनवाने की फरमाइश की. इस पर मैंने बच्चों से वादा किया कि सर्दियों की छुट्टियों के बाद जिस दिन आप लोगों के स्कूल खुलेंगे उस दिन आप लोगों को अच्छा भोजन दिया जाएगा. स्कूल खुलने का बाद बच्चों के कहे अनुसार भोजन की व्यवस्था की गई."
उन्होंने आगे बताया, उस थाली में मटर पनीर, रसगुल्ला, लड्डू, सलाद था. अमित के मुताबिक बच्चों में खाने के प्रति जबरदस्त आकर्षण था. उन्होंने उस दिन ठाना कि इस व्यव्सथा को एक दिन का नहीं बनाना है, बल्कि इसे पूरी व्यवस्था का हिस्सा बना देना है. इसके बाद स्कूल के अध्यापकों के साथ मिलकर एड ऑन मिड डे मील का कॉन्सेप्ट बनाया गया.
ग्राम प्रधान ने एड ऑन मिड डे के बारे में बताया, राज्य सरकार द्वारा बच्चों मिड डे मील का जो मेन्यू दिया जाता है उसी में कुछ चीजें जोड़ दी जाती हैं. जैसे हमने सब्जी में मटर पनीर, फल में आयरन के स्रोत के रूप में सेब, और सलाद को प्रतिदिन कर दिया. वहीं इसमें महीने में दो बार मिठाई जोड़ी गई. इसी के साथ दूध को मॉडिफाई करने का प्रावधान जोड़ा गया. उन्होंने कहा, ये सब किसी सोची समझी रणनीति के तहत नहीं बल्कि एकदम से होता चला गया.
स्कूल में और क्या-क्या सुविधाएं
अमित ने बताया कि मलकपुरा गांव के सरकारी प्राइमरी स्कूल में शिक्षा के स्तर में सुधार लाने के लिए कई नवीन कदम उठाए जा रहे हैं, जो अब तक सिर्फ प्राइवेट स्कूलों में मिलती रही है. मलकपुरा गांव के स्कूल में बच्चों को स्मार्ट क्लास, कंप्यूटर लैब, फ्री ट्यूशन जैसी अन्य सुविधाएं दी गई हैं.
योजना का सकारात्मक परिणाम
ग्राम प्रधान के मुताबिक इस योजना के शुरू करने के बाद सकारात्मक परिणाम आने लगे. स्पेशल भोजन की वजह से बच्चे प्रतिदिन स्कूल आने लगे. वहीं इससे ग्रमीण बच्चों में कुपोषण की समस्या दूर की जा सकती है. ये एड ऑन मिड डे मील की व्यवस्था फरवरी से लेकर मई तक चली. मगर एक बार फिर से गर्मियों की छुट्टियां आ गईं.
राष्ट्रीय शिक्षा नीति लागू करने वाला पहला स्कूल
ग्राम प्रधान अमित इस दौरान नई शिक्षा मिली के तहत काम कर रहे थे. अमित के मुताबिक, मेरी ग्राम सभा में राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 को लागू किया जा रहा है और मलकपुरा का ये स्कूल देश में पहला विद्यालय है जहां राष्ट्रीय शिक्षा नीति लागू की गई है.
1 जुलाई से योजना लागू
उन्होंने गुजरात सरकार द्वारा शुरू की गई योजना का जिक्र किया जिसमें ये प्रावधान है कि स्कूलों में कोई भी व्यक्ति, संस्था या समूह किसी खास अवसर पर बच्चों को स्पेशल भोजन करवा सकता है. वहीं गुजरात सरकार के इस कॉनसेंप्ट को केंद्र सरकार ने भी पसंद किया और राज्य सरकारों के लिए स्वैच्छिक बना दिया. अमित ने गुजरात सरकार की इस योजना को अपने ग्राम पंचायत में 1 जुलाई को लागू किया. अब स्कूल में जो भी लोग पैसे से या किसी भी अन्य तरीके से मदद करते हैं उनको धन्यवाद देते हुए बच्चों को स्पेशल भोजन करवाया जाता है.
8 जुलाई से हर महीने स्पेशल खाना
एड ऑन मिड डे मील योजना के तहत 8 जुलाई को दिल्ली-एनसीआर में आईबीएम कंपनी में इंजीनियर की नौकरी करने वाले पीयूष गुप्ता नाम के शख्स ने अपने जन्मदिन पर बच्चों को स्पेशल खाना खिलाया. लेकिन अभी जो सोशल मीडिया में जो थाली वायरल हो रही है वो कानपुर में कैनरा बैंक में ब्रांच मैनेजर सौरभ शुक्ला ने उपल्ब्ध करवाई थी. इस बीच दिल्ली-एनसीआर में ही नाई का काम करने वाले रोशन नाम के शख्स ने अपनी संतान के जन्मदिन के अवसर पर स्कूल में बच्चों को स्पेशल खाना खिलाया था. खाना खिलाने के लिए कोई भी अपने हिसाब से मदद कर सकता है. कोई भी एक चॉकलेट से लेकर पूरे स्पेशल भोजन का खर्च उठा सकता है.
भोजन में कितना आता है खर्च
बता दें कि स्कूल में 115 से 120 बच्चों का नाम दर्ज है, लेकिन हाजिरी 95-100 बच्चों की ही लगती हैं. इन बच्चों को स्पेशल भोजन करवाने के लिए 2000 से 4000 हजार तक का खर्चा आता है. ग्राम प्रधान अमित ने साफ किया कि जो लोग कह रहे हैं कि इसमें सरकार का कोई रोल नहीं है, बेसिक इन्फ्रास्ट्रक्चर हमें राज्य सरकार से ही मिल रहा है. वहीं हमें जालौन प्रशासन का भी सहयोग मिल रहा है. यह काम सभी के प्रयास से ही आगे बढ़ रहा है.
इस काम को करने वाले ग्राम प्रधान अमित ने जालौन से स्कूली शिक्षा ली है. उन्होंने उच्च शिक्षा दिल्ली विश्वविद्यालय और भारतीय जनसंचार संस्थान, दिल्ली से ग्रहण की. शिक्षा ग्रहण करने के बाद अमित ने दूरदर्शन में नौकरी करते हुए विभिन्न मीडिया कंपनियों में सेवाएं दी हैं. पत्रकारिता के जरिए अमित जो बदलाव लाना चाहते थे वो नहीं ला पाए इसलिए वो प्रधानी के चुनाव में उतर गए और चुनाव जीतकर अब बच्चों का भविष्य बनाने के लिए काम कर रहे हैं. बता दें कि ग्राम पंचायत में तीन गांव आते हैं, जिसमें 1059 मतदाता हैं. वहीं जनसंख्या 1800 के आसपास है.
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